जबलपुर। ऊपर से खींची गई लकीर का मातहत तो अनुसरण करेंगे ही, फिर हाय तौबा किस लिए। लाल बिल्डिंग में भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। फिजूलखर्ची पर रोक लगाने वाले साहब खुद ही मोह माया के वशीभूत वाहन पर वाहन बदल रहे हैं। उनके मातहत भी उनका अनुसरण करने में पीछे नहीं है। नतीजतन लाल बिल्डिंग की माली हालात पतली हो रही है। बीते नौ माह में दो बार अपना वाहन बदल चुके हैं साहब अब तीसरे लग्जरी वाहन का सुख उठा रहे हैं। उनके मातहत भी वाहन सुख भोगने में पीछे नहीं है, जरूरत न होते हुए भी कमीश्न के चक्कर में वाहन बदले जा रहे हैं, कोई रोकने-टोकने वाला नही। अफसरशाही की इस फिजूलखर्ची का खामियाजा शहर की जनता को भुगतना पड़ रहा है। भुगतान के फेर में पापड़ जैसी सड़कें बनाई जा रही जो कुछ महीने में भी टूट कर बिखर रही है।
आयोजनों से दूरियां बनाने में ही समझदारी
नवरात्र महापर्व के साथ ही लोकतंत्र के सबसे बड़े त्योहार में सभी लीन है। दुर्गा पंडालों में आकर्षक झांकियां सज चुकी है, चौतरफ गरबा रास की धूम मची है। हर कोई इसमें शामिल होकर धर्म लाभ अर्जित कर रहा है, लेकिन इस बार इन धार्मिक आयोजनों से नेताओं के चेहरे गायब है। हर त्योहार में नागरिकों को शुभकामनाएं देते उनके बैनर-पोस्टर तक नजर नही आ रहे हैं। नेता त्योहारी सीजन काे भुनाना तो चाह रहे पर आचार संहिता की बेड़ियां उनके मंसूबे पूरे नहीं होने दे रही। उन्हें डर है नेतागिरी चमकाने के चक्कर में कहीं दुर्गा समितियों के पंडाल या धार्मिक आयोजनों का खर्च उनके गले न पड़ जाए। क्योंकि लोकतंत्र त्योहार में लगे अफसरों की नजरें धार्मिक आयोजनों पर भी बराबर टिकी हुई है। यही कारण है कि राजनीतिक दलों से जुड़े नेता इन धार्मिक आयोजनों से दूरी बनाए रखने में भी भलाई समझ रहे है।
आप करें तो लीला, हम करें तो….
एक फिल्म का गाना अनायस ही उन लोगों के मन में कौंध रहा है जो हेलमेट न लगाने के चक्कर में न सिर्फ पुलिस वालाें की बेज्जती झेल रहे हैं बल्कि जेब भी हल्की कर रहे हैं। दरअसल मतदान के प्रति जागरूकता लाने प्रशासनिक स्तर पर स्वीप प्लान के तहत जागरूकता कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, नुक्कड़ नाटक, रैलियां निकाली जा रही है। गत दिवस भी जिले के मुखिया के आव्हान पर वाहन रैली निकाली गई। रैली तो ठीक पर पर वाहन चालकों के सिर पर हेलमेट की जगह सफेद टोपी रही। वाहन रैली सड़कों से गुजरती रही पर किसी पुलिस वाले ने उन्हें रोक कर नहीं पूछा हेलमेट कहां है? सारे नियम-कायदे धरे के धरे रह गए। वहीं दूसरी तरफ प्रमुख चौराहों पर खाकी-सफेद वर्दी धारी दो पहिया वाहन चालकों को रोक-रोक कर हेलमेट पूछते रहे और अंटी ढीली कराते रहे, ऐसे में लोगों ने कहा वाह रे लीला।
वाहनों की रेलमपेल, इंजीयरिंग हो गई फेल
शहर के चौराहों को स्मार्ट बनाने के नाम पर करोड़ों रुपये के वारे-न्यारे कर दिए गए। जहां जो मन गया गढ़ दिया गया। कुछ चौराहों का पूरी तरह से नक्शा ही बदल दिया गया, जरूरत नही फिर भी चौराहों में बेमतलब के आइलैंड खड़े कर दिए गए। लाल बिल्डिंग और स्मार्ट सिटी के अधिकारियों ने दावा किया था चौराहों का विकास नेशनल ट्रैफिक इंजीनियरिंग के तहत किया जा रहा है। चौराहे खूबसूरत और सुविधाजनक हो जाएंगे। अब हाल ये है कि वाहनों की रेलमपेल में इंजीनियरिंग फेल हो गई। बिना जांचे-परखे चौराहे पर बनाए गए लेफ्ट टर्न, आइलैंड अब राहगीरों के लिए मुसीबत बन रहे हैं। कई जगह तो अब दुर्घटनाएं भी होने लगी है। चौराहो पर ‘जाम’ लगना आम हो गया है। स्मार्ट सिटी के दिन लद चुके है इसलिए अब कुछ सुधार हो भी नहीं सकता, उनकी इंजीनियरिंग के ये नमूने अब ऐसे ही सताते रहेंगे।
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