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बिना सर्जरी हृदय के सिकुड़े वाल्व को डाक्टर्स ने दोबारा खोलकर किया उपचार

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भोपाल। भोपाल मेमोरियल हास्पिटल एंड रिसर्च सेंटर के डाक्टरों ने एक 61 वर्षीय बुजुर्ग महिला के हृदय के सिकुड़े वाल्व को बिना सर्जरी किए दोबारा खोल दिया है। डाक्टरों के लिए यह मुश्किल काम था, क्योंकि उक्त महिला का पूर्व में भी इस प्रक्रिया से उपचार किया जा चुका था। अब महिला ठीक है और उन्हें अस्पताल से छुट्टी भी दे दी गई है।

माइट्रल स्टेनोसिस बीमारी से पीड़ित थी बुजुर्ग

बीएमएचआरसी के हृदय रोग विभाग में सहायक प्रोफेसर डा. आशीष शंखधर ने बताया कि महिला सांस फूलने और चलने में परेशानी होने पर बीएमएचआरसी आई थीं। ईकोकार्डियोग्राफी जांच में पता चला कि महिला के हृदय का माइट्रल वाल्व सिकुड़ा हुआ है। इस बीमारी को माइट्रल स्टेनोसिस कहा जाता है।

इस तरह के मामलों में (बैलून माइट्रल वैल्वोटोमी बीएमवी) तकनीक से तार को मरीज के सिकुड़े हुए वाल्व तक पहुंचाकर बैलून से फुला दिया जाता है, जिससे मरीज की परेशानी खत्म हो जाती है। हालांकि इस मामले में मरीज की मेडिकल हिस्ट्री से पता चला कि 20 साल पहले ही उनकी बीएमवी हो चुकी है। दोबारा बीएमवी करने का फैसला किया गया, लेकिन ऐसा करना काफी जटिल कार्य होता है, क्योंकि इस दौरान वाल्व फट सकता है।

प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के तहत मरीज का बीएमएचआरसी में निशुल्क उपचार हुआ। सर्जरी करते तो ठीक होने में लगता समय इस बीमारी के इलाज के लिए पहले सामान्य तौर पर सर्जरी की जाती थी। इसे क्लोज्ड माइट्रल वाल्वोटोमी कहा जाता है। सर्जरी में मरीज को चीरा लगाया जाता है। इसके बाद कई दिन अस्पताल में भर्ती रहना पड़ता है, जबकि बीएमवी में मरीज जल्दी रिकवर हो जाता है।

क्या होती है माइट्रल स्टेनोसिस बीमारी

हृदय में प्रवाहित होने वाला रक्त वाल्व से होकर अलग-अलग चैंबरों के बीच से गुजरता है। हृदय में चार वाल्व होते हैं- माइट्रल, ट्राइकसपिड, एओर्टिक और पल्मोनरी। हृदय की बाएं ओर दो चैंबरों के बीच स्थित वाल्व को माइट्रल वाल्व कहते हैं। जब माइट्रल वाल्व खुलता है, तो रक्त ऊपरी चैंबर से निचले चैंबर तक बहता है। माइट्रल स्टेनोसिस का मतलब है कि वाल्व ठीक से नहीं खुल पा रहा, जिससे शरीर में पर्याप्त रक्त की सप्लाई नहीं होती। इससे मरीज को सांस फूलना, चलने में तकलीफ आदि तरह की समस्याएं होने लगती हैं। क्यों होती है यह बीमारी वयस्कों में माइट्रल स्टेनोसिस मुख्यत: रूमेटिक हृदय रोग की वजह से आने वाले रूमेटीक फीवर के कारण होता है।

यह प्रक्रिया स्ट्रेप्टोकोकल बैक्टीरिया के कारण गले के इंफेक्शन से शुरू होती है। यदि इसका इलाज नहीं किया जाए तो गले का यह इंफेक्शन रूमेटिक बुखार में बदल जाता है। बार-बार रूमेटिक बुखार से ही रूमेटिक हृदय रोग विकसित होता है। रूमेटिक फीवर आने के पांच साल बाद माइट्रल स्टेनोसिस के लक्षण दिखने शुरू हो सकते हैं। कम आयु वर्ग के बीच यह बीमारी अधिक होती है, क्योंकि वे गले का इंफेक्शन या अन्य तकलीफ होने पर इलाज नहीं कराते।

क्या हैं लक्षण

वयस्कों में कई बार कोई लक्षण नहीं दिखते, लेकिन हो सकता है कि व्यायाम, खेलकूद के बाद लक्षण नजर आने लगें।सामान्य तौर पर 20-50 वर्ष उम्र के लोगों में ये लक्षण दिखने लगते हैं।

  • थकान -सांस लेने में तकलीफ होना
  • बार-बार रेस्पिरेटरी संक्रमण होना
  • कफ में खून आना
  • सीने में जकड़न जो कंधे, गले या जबड़े तक पहुंच जाती है।

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