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ममतामयी मां राजमाता विजया राजे सिंधिया

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ग्वालियर। राजमाता विजयाराजे सिंधिया का परिवार साधारण तो नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि राजमाता की मां नेपाली सेना के पूर्व कमांडर इन चीफ जनरल राजा खड्ग शमशेर जंग बहादुर की राणा की बेटी थीं, जो कि नेपाल के राणावंश के संस्थापक जंग बहादुर कुंवर राणा के भतीजे थे। राजमाता के पिता ठाकुर महेंद्रसिंह ठाकुर जालौन जिला के डिप्टी कलेक्टर थे, इसलिए राजमाता का लालन-पालन राज परिवार की तरह तो नहीं हुआ था। एक साधारण नौकरीपेशा परिवार में हुआ था। माता-पिता ने उन्हें नाम दिया लेखा दिव्येश्वरी। किंतु सिंधिया स्टेट के तत्कालीन महाराज जीवाजी राव सिंधिया के साथ विवाह होने के बाद उन्हें ग्वालियर स्टेट में पहचान मिली विजयाराजे सिंधिया के रूप में। अगर हम उनके राजनीतिक जीवन पर गौर करें तो वास्तविकता में ममतामयी मां थीं। उनके इस उजले पक्ष को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अंचल में दिये गये अपने भाषणों में कई बार उजागर कर चुके हैं। कैसे वे पार्टी के साधारण से साधारण कार्यकर्ता का ध्यान एक मां की तरह रखती थीं।

राजमाता का जीवन परिचय

राजमाता विजयाराजे सिंधिया का जन्म 1919 सागर, मध्य प्रदेश के राणा परिवार में हुआ था। तिथि के अनुसार उनका जन्मदिन करवा चौथ को माना जाता है। भाजपा भी इसी दिन उनका जन्मदिन मानती है। विजया राजे सिंधिया के पिता महेन्द्रसिंह ठाकुर जालौन ज़िला के डिप्टी कलेक्टर थे, और विजयाराजे सिंधिया की माता ”विंदेश्वरी देवी” थीं। विजयाराजे सिंधिया का विवाह के पूर्व का नाम ”लेखा दिव्येश्वरी” था। विजयाराजे सिंधिया का विवाह 21 फ़रवरी, 1941 में ग्वालियर के महाराजा जीवाजी राव सिंधिया से हुआ था। सिंधिया स्टेट की गिनती देश के समृद्ध और शक्तिशाली राजपरिवारों में होती थी। किंतु समृद्ध स्टेट की महारानी होने के बाद उन्होंने अपने ममतत्व का मूल गुण राजपरिवार की चकाचौंध में कभी गुम नहीं होने दिया। इकलौते बेटे से राजनीतिक विचारधार को लेकर अनबन होने पर उन्होंने अपना ममत्व कार्यकर्ताओं पर जमकर लुटाया।

राजपथ से लोकपथ का सफर

विजयाराजे सिंधिया अपने पति जीवाजी राव सिंधिया की मृत्यु के बाद राजपरिवार की धरोहर को संभालने की उन पर बड़ी जिम्मेदारी थी। राजमाता के रूप में राजपथ को छोड़कर लोकपथ का रास्ता चुनना उनका एक बड़ा फैसला था। क्योंकि उस समय देश को आजाद हुये कुछ समय ही हुआ था। लोकतंत्र के पोषकों के निशाने पर राजपरिवार होते थे। पहली बार पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से मिलने के बाद कांग्रेस के टिकट पर संसद सदस्य बनीं थीं। अपने सैद्धांतिक मूल्यों के दिशा निर्देश के कारण विजयाराजे सिंधिया कांग्रेस छोड़कर जनसंघ (भाजपा) में शामिल हो गईं। विजयाराजे सिंधिया का रिश्ता एक राजपरिवार से होते हुए भी वे अपनी ईमानदारी, सादगी और प्रतिबद्धता के कारण पार्टी में सर्वप्रिय बन गईं। और पार्टी में शक्ति स्तंभ थीं।

एक मां की तरह कार्यकर्ताओं का ध्यान रखती थीं राजमाता

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कई बार राजमाता विजयाराजे सिंधिया के ममत्व के उजले पक्ष को कई बार अपने शब्दों से रेखांकित किया है। प्रधानमंत्री अंचल के प्रवास के दौरान अपने भाषणों में इस बात का जिक्र करते हैं। मैं संघ का साधारण स्वयं सेवक था। उस समय गुजरात से एक टोली शिवपुरी आई थी। उस टोली में भी था। रात को हम लोग राजमाता के शिवपुरी स्थित निवास पर विश्राम कर रहे थे। रात का समय था। अचानक किसी ने हमारे दरवाजे पर दस्तक दी। दरवाजा खोलने पर देखा राजमाता स्वयं दूध के गिलास हाथों में लिये खड़ीं थीं। उनका हम लोगों से सवाल था कि सोने से पहले दूध पीया की नहीं। उस समय हम लोगों के सामने एक मां खड़ी थी, जो कि हर कार्यकर्ता पर अपने बेटों की तरह स्नेह और प्यार लुटाती थीं।

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