बिना केमिकल लुग्दी तैयार करते हैं पेपर
राजस्थान से आए चेतन प्रकाश ने बताया कि में हैंडमेड पेपर वर्क पर काम करते हैं, जो कि जयपुर की एक कला है। इसके लिए हम काटन का उपयोग करने वाले उद्योगों से बचे हुए काटन के टुकड़े खरीदते हैं, फिर उसकी छोटी-छोटी कटिंग करते हैं, फिर उसकी लुग्दी बनाते हैं। फिर दो लोग मिलकर एक लकड़ी के फ्रेम के जरिए पेपर बनाते हैं। पेपर का स्टैंडर्ड साइज 22×30 इंच की बनाते हैं। ये पूरी तरह ईको फ्रेंडली हैं इसमें किसी भी तरह का कोई केमिकल यूज नहीं होता है। फिर इसके बाद कई तरह के प्रोडक्ट बनाते हैं, जिसमें डायरी, बाक्स, राइटिंग पेपर, पेन स्टैंड आदि बनाते हैं।
एक्रेलिक कलर से तैयार होती है भील पेंटिंग
झाबुआ जिले के बाबू ताहेड़ पिछले आठ साल से पेंटिंग कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि मैंने पेंटिंग करना अपनी बड़ी मम्मी से सीखा। जो जनजातीय संग्रहालय में काम करती हैं।पहले भील पेंटिंग प्राकृतिक रंगों से होती थी लेकिन मैं पेपरशीट पर ऐक्रेलिक कलर से पेंटिंग बनाता हूं, हालांकि समय ज्यादा लगता है।छोटी पेंटिंग पांच सौ से दो हजार तक की जबकि बड़ी की कीमत 15 से 20 हजार तक भी होती है।भील पेंटिंग में आदिवासी पूजा-पाठ, पेड़- पौधे और वहां के जानवरों को पेंटिंग में दर्शाते हैं। एक पेंटिंग को बनाने में कम से कम तीस से चार दिन का समय लगता है।
लोहे की तार में मोती पिरोकर बनाते हैं डेकोरेटिव आइटम
दिल्ली से आए मोहम्मद शाहिद लोहे के एक तार में मोतियों को पिरोते हैं। इसके लिए तार का दूसर छोर घर का अन्य सदस्य पकड़ता है।फिर तार को मोडकर लडियों से कुंडली बनाई जाती है।मोती वर्क वाली इन कुंडलियों को टेबल टाप का रूप दिया जाता है, जो देखने में बहुत सुंदर लगता है।लाख को गर्म करके पिघलने के बाद जमीन पर बिछाया जाता है। इस लाख में कांच के टुकड़े, चूड़ी के टुकड़े, बिंदी और आर्टिफिशियल ज्वैलरी को लाख अच्छी तरह से चिपकार छोटे-छोटे टुकड़े काट लिए जाते है। इन टुकड़ों में रिफील पर लेपेट दिया जाता है, जिससे पेन, पेन स्टैंड, दीये आदि तैयार किए जाते हैं।
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