इंदौर में हुई रिकार्ड तोड़ बारिश ने शहर और आवास नियोजन की पोल तो खोली ही, दो दशक से ज्यादा पुराने कई व्यावसायिक कांप्लेक्स की बदहाली भी सामने ला दी। कई कांप्लेक्स के तलघर में ऐसा जलजमाव हुआ कि कई दिन तक पानी निकाला नहीं जा सका। बिजली के मीटर आदि तलघर में ही लगाए जाने की पुरानी परंपरा है इसलिए पूरा कांप्लेक्स ही कई दिन अंधेरे में डूबा रहा। ऐसे ही प्रदेश के सबसे बड़े बाजार दवा बाजार में सार्वजनिक गलियारों और सीढ़ियों के हाल बदहाल रहते हैं। ऐसे व्यावसायिक कांप्लेक्स के तलघरों में गाड़ी पार्क करने वालों का सामना जर्जर खंभों, छतों और सीढ़ियों से होता है। शहर के पुराने बांशिदों के लिए यह निराशाजनक इसलिए है कि कभी इनकी शान थी और मुंहमांगे दामों पर दुकान, आफिस बेचे गए। इनकी कमजोर हालात नागरिकों की सुरक्षा को भी खतरे में डालती है। प्रशासन को इसकी भी चिंता करनी चाहिए।
संसाधनों के भरपूर उपयोग का ज्ञान-गणित
कुछ चीजें अभियान का हिस्सा नहीं आदत बनें
तू डाल-डाल, मैं पात-पात
अपनी व्यवस्था में प्रशासनिक अधिकारियों का दखल बर्दाश्त न कर पाने वालों में सरकारी अस्पतालों के डाक्टर आगे हैं। चूंकि ये स्वास्थ्य संबंधी अहम मामलों के विशेषज्ञ होते हैं और इनके बिना काम नहीं चल सकता इसलिए ये झुकते भी नहीं। उधर, सभी को झुकाने में विश्वास रखने वाले प्रशासनिक अधिकारियों की डाक्टरों से खुन्नस भी इसी बात को लेकर रहती है इसलिए अस्पतालों का दौरा उनका पसंदीदा कार्य होता है। बीते दिनों एमवाय इसी कहानी से गुजरा था। फिर एक विभाग के आपरेशन थियेटर में पानी टपकना शुरू हुआ। सर्जरी बंद हुए 10 दिन हो गए। पीड़ित ने कलेक्टर से कहा। कलेक्टर ने डाक्टरों को। पता चला मेटेनेंस करने वाली कंपनी ठीक से काम नहीं कर रही। बुलाने पर आ नहीं रही। तो समझ में आया न कि स्वास्थ्य का मसला जटिल है और यहां ‘तू डाल-डाल, मैं पात-पात’ की आदत और गुंजाइश भी कम नहीं है।
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