उज्जैन। एक जनहित याचिका पर 16 अगस्त को सुनवाई के लिए राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने चार जिलों (उज्जैन, इंदौर, देवास, रतलाम) के कलेक्टरों से प्रदूषित शिप्रा नदी की ताजा सर्वे रिपोर्ट मांगी थी। ये रिपोर्ट देवास, इंदौर, रतलाम के कलेक्टर दे चुके हैं। सिर्फ उज्जैन कलेक्टर की ओर से ही रिपोर्ट जमा नहीं हुई है। जानकारी लगने पर कलेक्टर ने गुरुवार को विभिन्न अफसरों संग बैठक की।
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी को शिप्रा में उपलब्ध जल में व्याप्त प्रदूषण, कैचमेंट एरिया में हुए अतिक्रमण और सुधार के लिए प्रचलित एवं स्वीकृत योजनाओं की ताजा रिपोर्ट उपलब्ध कराने के निर्देश दिए। क्षेत्रीय अधिकारी हेमंत तिवारी ने एक-दो दिन में रिपोर्ट देने का आश्वासन दिया है।
मामला विक्रम विश्वविद्यालय की कार्य परिषद के सदस्य सचिन दवे द्वारा इसी वर्ष फरवरी माह में शिप्रा में व्याप्त प्रदूषण एवं सतत जल प्रवाह को लेकर एनजीटी दायर जनहित याचिका से जुड़ा है। याचिका के बाद 13 जुलाई 2023 को एनजीटी ने चार जिलों के कलेक्टरों को आदेश जारी कर शिप्रा नदी के कैचमेंट एवं जलप्रवाह क्षेत्र में आर्थिक गतिविधियों से हो रहे प्रभाव, पानी के दोहन एवं नदी मं सीधे नालों का पानी मिलने की ताजा सर्वे रिपोर्ट चाही थी।
ये है ताजा स्थिति
देवास के उद्योगों, इंदौर के नालों का पानी शिप्रा का मिलने से शिप्रा का समूचा चल दूषित रहता है। प्रदूषण बोर्ड की नजर में शिप्रा का पानी डी ग्रेड का है। इसका मतलब है कि पानी आचमन छोड़ स्नान करने लायक भी नहीं है। शिप्रा का स्वरूप 20 वर्षों में काफी बदल गया है। नदी किनारे कई होटल तन गए हैं, जिनका वेस्ट सीधे शिप्रा में मिलता है। नदी किनारे हरित क्षेत्र भी घटा है।
इस वर्ष भी यहां पौधारोपण नहीं हुआ है। सरकार ने क्षिप्रा के 200 मीटर दायरे में मठ, आश्रम, रिजार्ट, धर्मशाला के निर्माण करने का प्रस्ताव तो विलोपित कर दिया, मगर जमीनी पर तौर पर ऐसे कई आश्रम, रिजार्ट, धर्मशाला शिप्रा किनारे देखने को मिलते हैं, जो व्यावसायिक द्ष्टि से खूब फल-फूल भी रहे हैं।
उज्जैन मास्टर प्लान में शिप्रा नदी का किनारा (रिवर फ्रंट) आकर्षक बनाने का प्रस्ताव शामिल न होना भी न सिर्फ खलता है, बल्कि जिम्मेदाराें की जिम्मेदारी पर सवाल भी उठाता है।
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