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कहीं आरुषि कांड की राह पर तो नहीं कोलकाता डॉक्टर रेप केस, क्यों करानी पड़ रही है 6 लोगों की पॉलीग्राफी?

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सीबीआई कोलकाता डॉक्टर रेप केस पश्चिम बंगाल पुलिस से टेकओवर कर चुकी है. उसे जांच करते हुए दस दिन गुजर चुके हैं, बावजूद इसके सीबीआई को अब तक कोई ठोस परिणाम तक नहीं मिला है, जिससे केस को आगे बढ़ाया जा सके. यह स्थिति उस समय है जब सीबीआई ने घटना के सबूत जुटाने के लिए फोरेंसिक विशेषज्ञों की पूरी टीम उतार दी. हालात को देखते हुए नोएडा का आरुषि कांड सहज ही याद आ जा रहा है. इस मामले में भी सीबीआई आज तक ना तो कोई सबूत ढूंढ पायी और ना ही कोई गवाह. इसके चलते आज भी सवाल कायम है कि आरुषि को किसने मारा?

कोलकाता डॉक्टर रेप केस की जांच कर रही सीबीआई का कहना है कि क्राइम सीन डिस्टर्ब होने की वजह से अब पॉलीग्राफी टेस्ट से ही थोड़ी बहुत उम्मीद बची है. कोशिश यह है कि इस टेस्ट के जरिए वारदात की पूरी कहानी निकाली जाए. यदि इसमें सफलता मिल जाती है तो इसी कहानी के आधार पर नए सिरे से क्राइम सीन रिक्रिएट करने की कोशिश की जाएगी. इस टेस्ट से परिस्थितजन्य साक्ष्य भी क्रिएट होने की पूरी संभावना है.

लोकल पुलिस पहले खराब कर चुकी है केस

यदि ऐसा हुआ तो मामले का खुलासा होने में टाइम नहीं लगेगा. हालांकि इसमें भी सफलता के चांस 40 फीसदी से भी कम है. ऐसे हालात में तमाम विशेषज्ञ यह आशंका जाहिर कर रहे हैं कि कहीं यह मामला आरुषि कांड की तरह ना हो जाए. उत्तर प्रदेश पुलिस में रिटायर्ड डिप्टी एसपी पीपी कर्णवाल के मुताबिक इस केस को पहले ही लोकल पुलिस खराब कर चुकी है. पहले तो बिना एफआईआर पोस्टमार्टम करा दिया. यही नहीं, डॉक्टर के शव का अंतिम संस्कार भी होने दिया. और तो और, क्राइम सीन को भी प्रिजर्व करने की कोशिश नहीं की.

सीबीआई अफसरों के विवेक पर निर्भर हुआ केस

यह सीधे तौर पर कोलकाता पुलिस द्वारा जानबूझकर मामले को डायवर्ट करने के उद्देश्य से की गई लापरवाही है. सीबीआई ने भी कोर्ट में दाखिल स्टेटस रिपोर्ट में यही बात कही है. पूर्व डीएसपी कर्णवाल के मुताबिक अब यह मामला सीबीआई के काबिल अफसरों के विवेक पर निर्भर हो गया है. सीबीआई चाहे तो परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर ही मजबूत चार्जशीट तैयार कर सकती है और कोर्ट में आरोपियों को कड़ी से कड़ी सजा भी दिला सकती है.

सीबीआई के सामने ये है चुनौती

  1. सीबीआई ने कोलकाता पुलिस द्वारा पकड़े गए आरोपी संजय रॉय से पूछताछ की है. हालांकि अब तक संजय रॉय ने उतनी ही बातें बताई हैं, जितनी कोलकाता पुलिस ने सीबीआई को बताई थी. हालांकि संजय रॉय के बयान में कई झोल पाए गए हैं. इसलिए सीबीआई ने उसका साइक्लोजिकल टेस्ट भी कराया है. इसमें यह तो साफ हो गया है कि संजय रॉय पॉर्न वीडियो देखता था और इस दौरान वह वहसी बन जाता था.
  2. सीबीआई के सामने दूसरी चुनौती क्राइम सीन को लेकर है. दरअसल जिस स्थान पर यह घटना हुई, उसको आनन फानन में रिनोवेट करा दिया गया. इसके अलावा उस स्थान पर काफी लोगों को आने जाने दिया गया. इसकी वजह से आरोपी के फुट प्रिंट नष्ट हो चुके हैं. हालांकि सीबीआई में क्राइम सीन का 3डी मैपिंग कराया है, लेकिन घटना के इतने दिन इस तकनीक से भी कुछ खास नहीं मिला है.
  3. सीबीआई को अब उन्हीं तथ्यों के आधार पर अपनी जांच आगे बढ़ानी हैं, जो कोलकाता पुलिस ने दिए थे. चूंकि कोलकाता पुलिस शुरू से ही मामले की लीपापोती में लगी रही, इसलिए इसमें ऐसा कुछ नहीं है, जिससे केस को खड़ा किया जा सके.
  4. सीबीआई के पास अब तक इस वारदात का कोई गवाह नहीं है. जो लड़कियां वारदात से ठीक पहले डॉक्टर के साथ थीं, वह भी वही भाषा बोल रही हैं, जो पुलिस कह रही. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या सीबीआई इनसे सच उगलवा पाएगी?

सवाल मांगते जवाब

  1. रिपोर्ट में भी झोल: इस वारदात की पोस्टमार्टम रिपोर्ट और पुलिस का दावा समान है. इसमें कहा गया है कि रेप का आरोपी अकेले संजय रॉय है. उसी ने ट्रेनी डॉक्टर के साथ रेप किया. अब जब सीबीआई ने फोरेंसिक जांच कराई तो इसमें पता चला है कि डॉक्टर के साथ गैंगरेप हुआ था. ऐसे में सवाल यह है कि कहीं असली आरोपियों को बचाने के लिए डॉ. संजय राय को बलि का बकरा तो नहीं बनाया जा रहा? यदि नहीं तो संजय रॉय के साथ डॉक्टर के साथ रेप करने वाले अन्य लोग कौन हैं?
  2. वारदात के मोटिव पर सवाल: इस वारदात की मोटिव को लेकर बड़ा झोल है. अभी तक यह साफ नहीं हो सका है कि वारदात का मोटिव केवल डॉक्टर का सेक्सुअल असाल्ट करना था या कुछ छिपाने की कोशिश हो रही है. यदि कुछ छिपाने की कोशिश हो रही है तो वह क्या चीज है. दरअसल पहले इस अस्पताल पर अंग तस्करी के आरोप लग चुके हैं.
  3. एफआईआर की टाइमिंग को लेकर सवाल: इस मामले में शव की ऑटोप्सी में जल्दबाजी दिखाई गई. मुकदमा भले ही 9 अगस्त की रात में साढ़े 11 बजे दर्ज किया गया, लेकिन पोस्टमार्टम दो घंटे पहले ही करा दिया गया था. पोस्टमार्टम हुआ भी तो बिसरा क्यों सुरक्षित नहीं किया गया.
  4. क्राइम स्पॉट से छेड़छाड़: डॉक्टर की मौत को कोलकाता पुलिस भी अनहोनी मान रही थी. इसके चलते क्राइम स्पॉट को तुरंत टेकओवर भी कर लिया. बावजूद इसके पुलिस ने क्राइम स्पॉट को प्रिजर्व करने की कोशिश नहीं की. बल्कि घटना स्थल पर आने से किसी को नहीं रोका गया. यही नहीं इतनी बड़ी घटना के बाद क्राइम स्पॉटो रिनोवेट करने दिया गया. जबकि किसी भी तरह की घटना होने पर पुलिस की पहली जिम्मेदारी क्राइम स्पॉट को सुरक्षित करने की होती है.
  5. पुलिस ने कैसे बरती लापरवाही: इस मामले में पुलिस की लापरवाही साफ तौर पर इशारा कर रही है कि कुछ छिपाया जा रहा है, लेकिन क्या? इस लापरवाही से यह भी जाहिर हो रहा है कि किसी को बचाया जा रहा है, लेकिन कौन? इसी के साथ यह भी जाहिर हो रहा है कि घटना स्थल पर घटना के काफी सबूत थे, लेकिन उन्हें जान बूझकर मिटाने का प्रयास किया गया. दावा किया जा रहा है कि सबूत मिटाने का काम अस्पताल प्रबंधन ने किया, लेकिन फिर सवाल उठता है कि पुलिस ने ऐसा होने कैसे दिया.

आरुषि कांड जैसा हाल तो नहीं

इस तरह की तमाम घटनाओं में जांच कर चुके कई वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को आशंका है कि कहीं यह केस भी आरुषि कांड जैसा ना हो जाए. उस मामले में तो जब केस सीबीआई को मिला था, उस समय तक कुछ भी पुलिस के हाथ में नहीं था. परिणाम यह हुआ कि आज भी यह ब्लाइंड केस ही है. रिटायर्ड डीएसपी पीपी कर्णवाल के मुताबिक इस मामले में कम से कम इतना तो है कि आरोपी और उसके साथी पुलिस की गिरफ्त हैं. ऐसे में सीबीआई के अफसर अपने विवेक से परिस्थतिजन्य साक्ष्यों को इकट्ठा कर सकते हैं.

6 डॉक्टरों की होगी पॉलीग्राफी

सीबीआई के अधिकारियों के मुताबिक 6 डॉक्टरों के पॉलीग्राफी टेस्ट के लिए अर्जी दाखिल की गई है. इसमें एक तो खुद डॉ. संजय रॉय है. वहीं दूसरा संदीप घोष के अलावा वो 4 ट्रेनी डॉक्टर्स भी हैं, जो वारदात से ठीक पहले मृतका के साथ थीं. इस टेस्ट के जरिए सीबीआई उसके स्टेटमेंट में मिले झोल को पहचान करने की कोशिश करेगी. इसमें यह भी देखा जाएगा कि कहीं इन सभी 6 लोगों ने जो बयान दिया है, उसके पीछे किसी का कोई दबाव तो नहीं. सीबीआई के अधिकारियों के मुताबिक भले ही पॉलीग्राफी टेस्ट को कोर्ट में चैलेंज किया जा सकता है, लेकिन परिस्थतिजन्य साक्ष्य हों तो इसे नकारा भी नहीं जा सकता.

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