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भोपाल गैस त्रासदी पीड़ितों के इलाज व पुनर्वास से जुड़े मामले में 16 को हाई कोर्ट का फैसला

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जबलपुर। भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों के इलाज और पुनर्वास संबंधी आदेश का पालन नहीं करने के मामले में अतिरिक्त मुख्य सचिव मोहम्मद सुलेमान और राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र के दो अधिकारी अवमानना के आरोप में घिरे हैं। इन्हें अवमानना के प्रकरण में सजा होगी या राहत मिलेगी, इसका फैसला 16 जनवरी को होगा।

अवमानना से मुक्त करने का आवेदन

दरअसल, इन अधिकारियों ने अपने विरुद्ध लगे अवमानना के आरोपों से मुक्त करने का आवेदन कोर्ट को दिया है। कोर्ट इस पर अगली सुनवाई के दौरान विचार करेगी। प्रशासनिक न्यायाधीश शील नागू व न्यायमूर्ति जस्टिस विनय सराफ की युगलपीठ के समक्ष अवमानना मामले की सुनवाई हो रही है। इस मामले में कोर्ट मित्र नमन नागरथ ने कोर्ट को बताया कि सरकार मानिटरिंग कमेटी के वकील को स्वीकृति नहीं दे रही है।

उन्होंने दलील दी कि कमेटी सरकार के अधीन नहीं है। कमेटी कोर्ट के आदेश पर जांच कर रिपोर्ट पेश करती है, इसलिए सरकार और कमेटी का एक ही वकील नहीं हो सकता। कोर्ट ने सरकार को इस संबंध में अगली सुनवाई पर जवाब पेश करने के निर्देश दिए। मानिटरिंग कमेटी की अनुशंसाओं पर नहीं हुआ कोई काम सुप्रीम कोर्ट ने 2012 में भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन सहित अन्य की याचिका पर सुनवाई की थी।

हाई कोर्ट का निर्देश

गैस पीड़ितों के उपचार और पुनर्वास के संबंध में 20 निर्देश दिए थे। इनका क्रियान्वयन सुनिश्चित कर मानिटरिंग कमेटी गठित करने के आदेश दिए थे। इस कमेटी को हर तीन माह में अपनी रिपोर्ट हाई कोर्ट के सामने पेश करने को कहा गया था, साथ ही रिपोर्ट के आधार पर केंद्र और राज्य सरकारों को आवश्यक दिशा-निर्देश दिए जाने थे। मानिटरिंग कमेटी की अनुशंसाओं पर कोई काम न होने का आरोप लगाते हुए अवमानना याचिका दायर की गई थी। गैस पीड़ितों के हेल्थ कार्ड तक नहीं बने सरकारी अधिकारियों पर आरोप है कि उन्होंने कोर्ट के आदेश की अवहेलना की है।

अवमानना याचिका में कहा गया कि गैस पीड़ितों के हेल्थ कार्ड तक नहीं बने हैं। अस्पतालों में आवश्यकता अनुसार उपकरण व दवाएं उपलब्ध नहीं हैं। बीएमएचआरसी के भर्ती नियम तय नहीं होने से डाक्टर व पैरामेडिकल स्टाफ स्थाई तौर पर सेवाएं प्रदान नहीं कर रहे हैं। इस कारण पीड़ितों को उपचार के लिए भटकना पड़ रहा है।

पिछली सुनवाई में हाईकोर्ट की युगलपीठ ने कहा था कि कम्प्यूटरीकरण और डिजिटलीकरण की जिम्मेदारी राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र की थी। प्रक्रिया पूरी करने की जिम्मेदारी अतिरिक्त मुख्य सचिव मोहम्मद सुलमान की थी। युगलपीठ ने पूर्व में पारित आदेश का हवाला देते हुए कहा कि आदेश के बाद भी मानिटरिंग कमेटी को स्टेनोग्राफर तक उपलब्ध नहीं कराया। बीएमएचआरसी को एम्स में नहीं बदला गया।

बीएमएचआरसी के लिए स्वीकृत 1,247 पदों में से 498 पद रिक्त पड़े हैं। राज्य सरकार के रवैये से नाराज था कोर्ट युगलपीठ ने आदेश में कहा था कि इन अधिकारियों ने गैस पीड़ितों को बेसहारा छोड़ दिया है। सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के आदेश के परिपालन में तत्परता व ईमानदारी से काम नहीं हुआ है। गैस पीड़ितों के प्रति असंवेदनशीलता दिखाई गई है। इस मामले में ढिलाई बरती जा सकती है। युगल पीठ ने अवमानना के तीनों दोषियों को जवाब पेश करने के निर्देश जारी किए थे।

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