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अयोध्या से चली राम लहर ने इंदौर में जमा दी भाजपा की जड़ें

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इंदौर ने सुमित्रा महाजन को अपनी ताई मानकर लगातार आठ बार लोकसभा में भेजा। बीते लोकसभा चुनाव (2019) में भले ताई मैदान में न थीं, किंतु इंदौर ने फिर भाजपा को आशीर्वाद दिया और शंकर लालवानी को रिकार्ड मतों से जिताकर नया इतिहास रचा। अब तो भाजपा मानो इंदौर की रगाें में लहू बनकर दौड़ती है। हाल ही में विधानसभा चुनाव में इंदौर ने नौ की नौ सीटें भाजपा को दीं। भाजपा ने भी बीते तीन दशक में इंदौर की तस्वीर ही पलटकर रख दी है।

जब जनता चौक पर सो गए अटल जी

आज की राजनीति भले सुविधा संपन्न है, किंतु गुजरे जमाने में बड़े नेता भी किस सादगी से कर्तव्य को महत्व देते थे, यह अटलबिहारी वाजपेयी ने इंदौर में बताया था। हुआ यूं था कि 1984 के चुनाव में अटल जी इंदौर आए थे। ट्रेन तय समय से काफी देरी से पहुंची। इतनी रात को किसी कार्यकर्ता के घर न जाते हुए, वे खजूरी बाजार के पास बने जनता चौक पहुंच गए। उन्हें वहीं पर सभा को संबोधित करना था। वे वहीं एक चबूतरे पर सो गए। यह जानकारी जब भाजपा के वरिष्ठ नेता नारायण राव धर्म और राजेंद्र धारकर तक पहुचीं, तो वे पहुंचे और अटल जी से घर चलने का आग्रह किया। अटलजी ने रात अधिक होने का हवाला दिया, तब उन्हें तत्कालीन भाजपा कार्यालय ले जााय गए और वहां ठहरने की व्यवस्था की।

टिकट कटा भी तो संगठन के लिए जुटे रहे

वर्तमान दौर में संगठन, साधन और कार्यकर्ताओं की लंबी फौज वाली भाजपा के लिए एक दौर ऐसा भी था जब पार्टी के पास केवल एक मोटरसाइकिल थी। वह भी वरिष्ठ नेता राजेंद्र धारकर की। बाद में नारायण राव धर्म और शिव वल्लभ शर्मा ने एक पुरानी जीप का इंतजाम किया और उससे 84 व 89 के चुनाव में प्रचार किया। 1989 के चुनाव में जब वरिष्ठ भाजपा नेता धारकर का टिकट काटकर सुमित्रा महाजन का नाम तय किया, तब धारकर एक अखबार के कार्यालय में बैठे थे। वहीं पर फैक्स से सूचना मिली कि उनका टिकट बदल दिया गया है। इस पर धारकर ने वहां मौजूद कार्यकर्ताओं से मुस्कुराकर कहा- चलो, अब सुमित्रा का चुनाव प्रचार करना है। खूब मेहनत करनी है, सब लोग जुट जाओ।

71 वर्षों से देवी अहिल्या के आदर्शों को जी रहा शहर

मां अहिल्या के इंदौर ने 1952 में पहला संसदीय चुनाव देखा। तब लोगों को चुनाव में बूथ तक लाना आसान नहीं था। किंतु इंदौर ने संवैधानिक व्यवस्था को तेजी से स्वीकारा और नंदलाल सूर्यनारायण जोशी को पहला सांसद चुना। तब कांग्रेस बेहद मजबूत थी, फिर भी इंदौर ने हमेशा व्यक्ति और उसके कार्यों को देखकर चुना। यही कारण रहा कि 1962 में हुए तीसरे चुनाव में ही भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार और मजदूर नेता होमी दाजी को सांसद चुन लिया।

इस परिवर्तन से इंदौर देशभर में राजनीतिक सुर्खियों में रहा। 1977 में इंदौर ने फिर बड़े दलों को किनारे करते हुए भारतीय लोकदल के कल्याण जैन को चुनकर फिर चौंकाया। इंदौर ने कर्मठ नेताओं को खूब प्यार भी दिया। मप्र के मुख्यमंत्री रहे प्रकाशचंद सेठी को चार बार सांसद चुना। फिर सुमित्रा महाजन को भी लगातार आठ बार सांसद बनाया।

एक किस्सा ऐसा भी

वरिष्ठ भाजपा नेता सत्यनारायण सत्तन बताते हैं, इंदौर राजनीतिक रूप से सदैव जागरूक रहा। यही कारण रहे कि शहर ने मजदूर व कम्युनिस्ट नेता होमी दाजी को चुनकर संसद भेजा। दाजी वाकचातुर्य के धनी थे। उनके बोलने के अंदाज की प्रशंसा तो तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भी संसद में करते थे। बाद में जब जब प्रकाशचंद सेठी लगातार दो बार सांसद चुने गए, तब कुशाभाऊ ठाकरे ने मुझे (सत्यनारायण सत्तन) और निर्भयसिंह पटेल में से किसी एक को चुनाव लड़ने के लिए तैयार रहने को कहा था।

फिर उसी दौरान नए चेहरे को मैदान में उतारने की बात पर सहमति बनी और ताई को प्रत्याशी बनाया गया। फिर ताई ने मैदान संभाला और इंदौर को मूलभूत सुविधाएं दिलवाईं। तब तक इंदौर देश के अन्य शहरों से सड़क, रेल और हवाई मार्ग से ठीक से जुड़ा भी नहीं था। सबसे पहले इसी पर कार्य शुरू किया। फिर अच्छे स्कूल, कालेज खुलें, इसकी कोशिशें कीं।

होमी दाजी और लालवानी के रिकार्ड

इंदौर में सबसे कम मतों से जीत का रिकार्ड पूर्व सांसद होमी दाजी के नाम रहा। उन्होंने 1962 में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में कांग्रेस के रामसिंह भाई वर्मा को छह हजार वोटों से हराया था, जबकि 2019 में भाजपा प्रत्याशी शंकर लालवानी ने कांग्रेस के पंकज संघवी को 5 लाख 47 हजार 754 वोटों से हराकर सबसे अधिक वोटो से जीतने का रिकार्ड बनाया।।

कुछ ऐसा है इंदौर लोकसभा क्षेत्र

– आठ विधानसभा हैं- क्रमांक एक, दो, तीन, चार, पांच के अलावा राऊ, देपालपुर व सांवेर।

– कुल मतदाता – 2475468

– पुरुष मतदाता – 1250586

– महिला मतदाता – 1224782

– थर्ड जेंडर मतदाता – 100

1952 से अब तक इन्होंने किया प्रतिनिधित्व

1952 : कांग्रेस के नंदलाल जोशी जीते।

1957 : कांग्रेस के कन्हैयालाल खादीवाला ने भारतीय जनसंघ के किशोरीलाल को हराया।

1962 : भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के होमी दाजी ने कांग्रेस के रामसिंह भाई को हराया।

1967 : कांग्रेस के प्रकाशचंद सेठी ने होमी दाजी को पराजित किया।

1971 : प्रकाश चंद सेठी (कांग्रेस) ने जनसंघ के सत्यभान सिंघल को हराया।

1975 : उपचुनाव में कांग्रेस के रामसिंह भाई ने सोशलिस्ट पार्टी आफ इंडिया के कल्याण जैन को शिकस्त दी।

1977 : भारतीय लोकदल के कल्याण जैन ने कांग्रेस के नंदकिशोर भट्ट को हराया।

1980 : कांग्रेस के प्रकाशचंद सेठी ने शीलकुमार निगम (जेएनपी) को पराजित किया।

1984 : कांग्रेस के प्रकाशचंद सेठी भाजपा के राजेन्द्र धारकर को हराया।

(यहां से भाजपा का दौर शुरू)

1989 : भाजपा की सुमित्रा महाजन ने पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाशचंद सेठी (कांग्रेस) को हराया।

1991 :दूसरे चुनाव में ललित जैन को शिकस्त दी।

1996 : कांग्रेस के पूर्व महापौर मधुकर वर्मा को पराजित किया।

1998 : कांग्रेस प्रत्याशी पंकज संघवी को हराया।

1999 : पूर्व मंत्री महेश जोशी (कांग्रेस) को पराजित किया।

2004 : पूर्व मंत्री रामेश्वर पटेल (कांग्रेस) को हराया।

2009 : सत्यनारायण पटेल (कांग्रेस) को हराया।

2014 : शंकर लालवानी ने विधायक सत्यनारायण पटेल (कांग्रेस) को हराया।

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