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इधर इशारा-उधर प्रमोशन, 283 निरीक्षक बने

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इंदौर। निजाम बदलने से कोई खुश हो न हो पुलिसवाले बड़े खुश नजर आ रहे हैं। ट्रांसफर-पदोन्नति जैसे कार्यों में अब कोई अड़ंगा नहीं लगा रहा। शनिवार को ही पुलिस मुख्यालय ने 283 उपनिरीक्षकों को निरीक्षक के पद पर पदोन्नति दे दी। प्रमोशन तो पूर्व में भी नियमानुसार ही होते थे, लेकिन तत्कालीन गृहमंत्री डा. नरोत्तम मिश्रा की सहमति के बगैर फाइल टस से मस नहीं होती थी। सहज रूप से उपलब्ध होने के कारण हरेक पुलिसकर्मी सुविधानुसार पोस्टिंग भी मांग लेता था। कई बार इस कारण भी फाइलें महीनों अटक जाती थी। डा. मोहन यादव ने शपथ लेने के दूसरे दिन पुलिसकर्मियों के प्रमोशन की चिंता जताई। जैसे ही डीजीपी कार्यालय से इशारा हुआ जिलों के एसपी ने सूची मुख्यालय भेज दी। सबसे ज्यादा 32 निरीक्षक इंदौर के हैं। इसमें भी 14 महिलाएं हैं।

कमिश्नर के पत्र से सुधर रहे डीसीपी

पुलिस आयुक्त मकरंद देऊस्कर की कार्यप्रणाली हर किसी को समझ में नहीं आती। आयुक्त बोलते कम और लिखते ज्यादा हैं। इसी का परिणाम है कि डीसीपी को ढर्रा सुधारना पड़ा। दरअसल, पुलिस आयुक्त कार्यालय में प्रतिदिन आवेदकों की भीड़ लगने लगी थी। आवेदकों में ज्यादातर थानों से निराश ही रहते हैं। आयुक्त ने बाकायदा रजिस्टर बनाया और एक रिपोर्ट बनानी शुरू कर दी कि किस जोन और थाने से ज्यादा आवेदन आ रहे हैं। आयुक्त ने चारों डीसीपी को पत्र लिखना शुरू किया और साथ में रिपोर्ट भी भेज दी। नतीजा यह रहा कि डीसीपी ने न सिर्फ कार्यालयों में समय देना शुरू किया बल्कि आवेदकों की सुनवाई भी करना शुरू कर दी। जिन थानों में गड़बड़ चल रही थी वहां एडिशनल डीसीपी और एसीपी को समीक्षा की जिम्मेदारी सौंप दी।

इस साल लोकायुक्त पुलिस का बोलबाला

वर्ष-2023 लोकायुक्त पुलिस के लिए बेहतर रहा। उसने भ्रष्टाचार के मामलों में खूब धाक जमाई। न सिर्फ आइएएस-टीआइ और सहकारिता अफसरों को लपेटा बल्कि चालान पेश करने में रिकार्ड बना डाला। पिछले वर्ष यानी साल 2022 में 30 प्रकरणों में घूसखोरों को रंगे हाथ पकड़ा था। 2023 में यह संख्या 20 रह गई। अफसर इसे रिश्वत पर अंकुश मान रहे हैं। चालान पेश करने में भी लोकायुक्त ने बाजी मारी है। भ्रष्टाचार के मामलों में फंसे अफसर-कर्मचारियों ने जिन फाइलों को वर्षों तक दबा कर रखा वो इस वर्ष कोर्ट जा पहुंची। लोकायुक्त ने 87 प्रकरणों में चार्जशीट दायर की है। इसके अलावा छह प्रकरण राजसात के तैयार किए और सामान्य प्रशासन और शासन से स्वीकृत भी करवा लिए। लोकायुक्त इस साल सख्त रहे हैं। उनके समक्ष कोई प्रकरण एक बार पहुंच गया तो उसका निराकरण होना तय है। आइएएस अभय बेड़ेकर के साथ भी ऐसा ही हुआ है।

पुलिस की छवि बिगाड़ रही ‘प्राइवेट पुलिस’

चंदन नगर थाने में पुलिसकर्मी योगेश सिंह और दीपक यादव की गिरफ्तारी से स्पष्ट हो गया कि अभी भी थानों में ‘प्राइवेट पुलिस’ का बोलबाला है। ये लोग थानों से लेकर वरिष्ठ अफसरों के लिए अवैध वसूली और तोड़बट्टा भी कर रहे हैं। जोन-2 के डीसीपी तो ऐसे ही एक शख्स को गिरफ्तार कर चुके हैं। आजकल जोन-3 और जोन-4 में ज्यादा लूटपाट चल रही है। योगेश और दीपक भी ऐसे ही नेटवर्क का हिस्सा रहे हैं। जफर पठान और समीर मंसूरी ने 14 लाख रुपये लूटने की टिप पुलिसवालों को दी बल्कि साथ भी गए। सिपाहियों की गिरफ्तारी को एक धड़ा सही बता रहा है जबकि दूसरा धड़ा चाहता है कि वरिष्ठ कार्यालयों में ड्राइवर-रीडर के माध्यम से चल रही धांधली उजागर होनी चाहिए।

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