गुना। जिला मुख्यालय से करीब 40 किमी दूर आरोन तहसील के बमूरिया गांव के निवासी फूल सिंह चंदेल उर्फ पप्पू की मृत्यु बस अग्नि हादसे में हो चुकी है। चंदेल बस के चालक थे। उनकी पत्नी अर्चना बाई और वृद्ध मां पुनिया बाई को तीन दिन बाद भी उनकी मौत की जानकारी नहीं है, क्योंकि उनका शव घर नहीं आया है।
पप्पू के शव की पहचान के लिए जब फारेसिंक टीम ने उनकी मां और भाई का ब्लड सैंपल लिया तो पत्नी को लगा कि उपचार के लिए यह प्रक्रिया की जा रही है। उन्होंने रोते हुए इतना ही कहा कि ‘भइया, उनको अच्छो इलाज करइयो।’ बस अग्नि हादसे में जान गंवाने वाले 11 मृतकों के परिवार की स्थिति भी कमोबेश ऐसी ही है।
अंतिम संस्कार की परंपरा न निभा पाने का दर्द
एक ओर ‘अपनों’ को खोने की पीड़ा है तो दूसरी ओर अंतिम संस्कार की परंपरा न निभा पाने का दर्द भी है। बस हादसे में जिंदा जले 11 व्यक्तियों के स्वजन संस्कारों की बात कहते हुए बताते हैं कि अंतिम संस्कार के बाद ही उन्हें मुक्ति मिलेगी, वे मोक्ष के लिए तरस रहे हैं। मृतकों के स्वजनों का ब्लड सैंपल लिया गया है। हालांकि, डीएनए रिपोर्ट सात दिन में आने की बात कही गई है, लेकिन रिपोर्ट आने तक का एक-एक दिन स्वजनों पर भारी पड़ रहा है।
बता दें कि 27 दिसंबर की रात बजरंगगढ़ थाना क्षेत्र की घूम घाटी में हुए बस हादसे में मृत व्यक्तियों के कुछ के स्वजन अस्पताल परिसर में ही डेरा डाले हुए हैं। स्वजनों के लिए रेडक्रास भवन का हाल भी खोला गया है, जहां वे रात में रुककर सुबह अस्पताल चौकी में डीएनए रिपोर्ट आने की जानकारी लेते हैं, कुछ दिन में गांव चले जाते हैं तो कुछ शव लिये बिना जाना नहीं चाहते।
मां और पत्नी को अब भी महेश के आने का इंतजार
आरोन के वार्ड-7 स्थित किला गली में रहने वाला महेश सिलावट (41) मजदूरी करता था। घटना वाले दिन बड़ी बेटी से मिलने गुना आया था, जिनकी भी बस हादसे में मौत हो चुकी है। प्रशासन ने महेश की मां और भाई का ब्लड सैंपल लिया है। हालांकि, पुरुषों को मालूम है कि महेश अब दुनिया में नहीं है, लेकिन उसकी पत्नी और मां को अस्पताल में इलाज होने की जानकारी दी गई है। यही वजह है कि महिलाओं को अब भी ‘अपने’ के आने का इंतजार है। बच्चों को अहसास ही नहीं है कि उनके सिर से पिता का साया उठ चुका है।
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