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मुख्य न्यायाधीश ने हाई कोर्ट प्रशासन मांगा जवाब, सिविल जज भर्ती नियम में संशोधन के चुनौती का मामला

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जबलपुर। हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर सिविल जज भर्ती नियम में किए गए संशोधन की वैधानिकता को चुनौती देने के मामले में बुधवार को सुनवाई हुई। संशोधित नियम के तहत सिविल जज भर्ती परीक्षा के लिए सामान्य वर्ग के लिए एलएलबी में न्यूनतम 70 प्रतिशत अंक निर्धारित किए गए हैं। वहीं एससी-एसटी के लिए 50 अंक की योग्यता है।

हाई कोर्ट प्रशासन को जवाब पेश करने के निर्देश

सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश रवि मलिमठ व न्यायमूर्ति विशाल मिश्रा की युगलपीठ ने आश्वासन दिया कि ओबीसी वर्ग को भी आरक्षित (एससीएसटी) वर्ग में शामिल करके न्यूनतम अंक निर्धारण में छूट दी जाएगी। कोर्ट ने अगली सुनवाई तक हाई कोर्ट प्रशासन को हर हाल में जवाब पेश करने के निर्देश दिए। अगली सुनवाई एक दिसंबर को होगी।

न्यूनतम अंक 60 प्रतिशत निर्धारित करने की मांग

नरसिंहपुर निवासी अधिवक्ता वर्षा पटेल ने याचिका दायर कर न्यायिक सेवा नियमों में किए गए संशोधन को चुनौती दी गई थी। इसके अलावा जयपुर के देवांश कौशिक व प्रदेश के अन्य जिलों के उम्मीदवारों ने भी याचिकाएं दायर कर नियमों को चुनौती दी है। इन मामलों में वरिष्ठ अधिवक्ता नमन नागरथ ने दलील दी कि न्यूनतम 70 फीसदी अंक निर्धारित करना अवैज्ञानिक है क्योंकि देश की नेशनल ला यूनिवर्सिटीज में भी इतने अंक नहीं आते हैं। उन्होंने मांग की कि 70 की जगह 60 प्रतिशत किया जाए।

70 प्रतिशत से कम अंक प्राप्त करने वाले योग्य

जनहित याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर व विनायक प्रसाद शाह ने दलील दी कि उक्त संशोधन के तहत एलएलबी में 70 प्रतिशत से कम अंक प्राप्त करने वाले अभ्यर्थियों को तीन साल की वकालत के अनुभव के बाद सिविल जज परीक्षा के लिए योग्य माना है, जो कि अनुचित है।

उन्होंने बताया कि सिविल जज के साक्षात्कार परीक्षा में 50 अंकों में से न्यूनतम 20 अंक प्राप्त किए जाने पर ही सिविल जज के पद के योग्य मान्य किया गया है। याचिका में सिविल जज परीक्षा में ओबीसी तथा सामान्य वर्ग को एलएलबी में न्यूनतम 70 प्रतिशत योग्यता बाले नियम को आरक्षण नीति के विरुद्ध बताया गया है। यह दलील भी दी गई कि उक्त नियमों में कहीं भी यह प्रविधान नहीं किया गया है कि अनारक्षित पदों को परीक्षा के प्रथम व द्वितीय चरण में कैसे भरा जाएगा।

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