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घर बैठे लिखी सफलता की कहानी, काम आई इच्छाशिक्त और बुद्धिमानी

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इंदौर। कई महिलाएं ऐसी होती हैं जो परिवार को संभालने के साथ ही हुनर के बल पर खुद का व्यवसाय शुरू कर देती हैं। इससे वे आत्मनिर्भर बनती हैं, वहीं बाधाओं से लड़ने के मामले में समाज में उदाहरण बन जाती हैं। ऐसी कई महिलाएं हैं , जिन्होंने घर पर बैठकर ही खुद का व्यवसाय शुरू किया और आज उनका लाखों रुपये का वार्षिक टर्नओवर है।

हम बात कर रहे हैं अलीशा चौहान की, जिन्होंने लाकडाउन में होम डेकोर का स्टार्टअप आइकीरु नाम से शुरू किया। 2.50 लाख रुपये से प्रारंभ इस स्टार्टअप का सालाना टर्नओवर कई गुना बढ़ गया है। ये बताती हैं कि लाकडाउन में घर की सजावट की चीजों की जरूरत लगी तो ऐसा प्लेटफार्म तैयार किया, जिसमें घर बैठे इंडियन, जापानी थीम पर होम डेकोर की सामग्री मिल जाए।

शुरुआत में लोग इसे समझ नहीं पा रहे थे, लेकिन आज देशभर के हजारों ग्राहक हमसे जुड़ चुके हैं। साथ ही घर बैठे शुरू की इस कंपनी में अब सेलिब्रिटी मनीष पाल, विक्की कौशल आदि भी ग्राहकों में शामिल हैं। उनका मानना है कि महिलाओं को यदि बाहर जाने का मौका न मिले, तो घर पर रहकर भी व्यवसाय करने के विकल्प खुला होता है।

पराली पर मशरूम उगाने के आइडिया ने दिलाई देशभर में पहचान

देश को कुपोषण और प्रदूषण से दूर रखने के आइडिया ने इंदौर के बेटी स्टार्टअप को देशभर में पहचान दिलवा दी है। इसकी संचालिका डा. पूजा पांडे ने टिशु कल्चर के जरिए पराली पर ओयस्टर किस्म का मशरूम उगाने की तकनीक विकसित की। इससे न सिर्फ प्रदूषण से बचाव होता है, अपितु मशरूम खाने से कुषोषण से भी बचा जा सकता है। इससे किसानों को आय भी होती है।
डा. पांडे ने बताया कि पढ़ाई के दौरान पता चला कि मशरूम ही इकलौती ऐसी फसल है जिसमें उच्च गुणवत्ता के प्रोटीन और पोषक तत्व मौजूद हैं और यह फसल एग्रीकल्चर के अवशिष्ट एवं कचरे पर आसानी से उगाई जा सकती है। मुंबई के टाटा कैंसर रिसर्च सेंटर में भी शोध करते हुए ख्याल रहा कि पराली प्रदूषण और अन्य समस्या की वजह बन रही है। लिहाजा किसान इसे अनुपयोगी मानकर खेतों में ही जला देते हैं।
उस पराली पर ही मशरूम की फसल लेकर पैसा भी बना सकते हैं। इसे शुरू करने के लिए नौकरी छोड़ कर इंदौर आ गई। 80 हजार रुपये में शुरू किए इस स्टार्टअप से अब सालाना करीब 12 लाख रुपये की कमाई हो रही है। उल्लेखनीय है कि डा. पूजा किसानों को मशरूम उगाने का निश्शुल्क प्रशिक्षण दे रही हैं। जिस पराली को जलाया जाता था, उससे भी अब कमाई भी होने लगी है। इसके साथ ही महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बनाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है।

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