भोपाल। चुनाव से पहले दलबदल नई बात नहीं है लेकिन इन दिनों पार्टी छोड़कर जाने वाले कई दिग्गज नेताओं ने भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व की चिंता बढ़ा दी है। पार्टी का प्रादेशिक नेतृत्व डैमेज कंट्रोल नहीं कर पा रहा है। बुधवार को बालाघाट- सिवनी से सांसद रहे बोध सिंह भगत ने भाजपा छोड़ दी। दरअसल, भगत का लंबे समय से कैबिनेट मंत्री गौरीशंकर बिसेन से विवाद चल रहा है। बिसेन भी बालघाट से ही हैं।
विवाद नहीं सुलझा पा रही नई पीढ़ी के नेताओं की टीम
पार्टी संगठन चला रही नई पीढ़ी के युवा नेताओं की टीम विवाद सुलझा नहीं पाई। इससे पहले भी पूर्व सांसद और कद्दावर आदिवासी नेता मकन सिंह सोलंकी और पूर्व विधायक भंवर सिंह शेखावत भाजपा छोड़ चुके हैं। कुछ दिन पहले पार्टी के दिग्गज नेता शिवप्रकाश ने भी कोर ग्रुप की बैठक में यह प्रश्न उठाया था कि नेता पार्टी क्यों छोड़ रहे हैं? भाजपा के संस्थापकों में शामिल पूर्व मुख्यमंत्री स्व. कैलाश जोशी के बेटे दीपक जोशी भी भाजपा छोड़ चुके हैं। माना जा रहा है कि भाजपा संगठन में पीढ़ी परिवर्तन के बाद जो नए पदाधिकारी बने, वे सबको साथ लेकर चल नहीं पा रहे हैं।
सिंधिया गुट के आने से भाजपा नेताओं के भविष्य पर प्रश्नचिह्न
हाल ही में भाजपा विधायक वीरेंद्र रघुवंशी और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष डा. सीतासरन शर्मा के भाई और पूर्व विधायक गिरिजाशंकर शर्मा ने भी भाजपा को अलविदा कर कांग्रेस का दामन थाम लिया था। पार्टी के नेताओं का मानना है कि केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ आए कांग्रेस नेताओं के कारण भाजपा के कई नेताओं के राजनीतिक भविष्य पर प्रश्नचिह्न लग गया है। कुछ नेताओं के विधानसभा क्षेत्र पर अन्य दलों से आए नेताओं का कब्जा हो गया है, ऐसे नेता भी भाजपा छोड़ सकते हैं।
नाराज नेताओं को मनाने में असफल
भाजपा को भी अपने नाराज नेताओं के बारे में जानकारी है। प्रदेश के 14 बड़े नेताओं को पांच-पांच जिले सौंपकर सभी नाराज नेताओं के साथ संवाद भी करवाया गया था लेकिन मामला संवाद तक ही रह गया। अब विधानसभा चुनाव सिर पर हैं और नाराज कार्यकर्ताओं की पीड़ा सुनने वाला कोई नहीं है। पहले ऐसे नेताओं की पीड़ा सुनने के लिए कैलाश जोशी, कप्तान सिंह सोलंकी या कई अन्य बुजुर्ग नेता रहते थे। अब संगठन पदाधिकारियों का मामला पत्र लिखने से लेकर जन्मोत्सव मनाने तक सीमित हो गया है।
बड़े नेताओं ने खोया कार्यकर्ताओं का भरोसा
दूसरी बड़ी वजह यह है कि अंचल के बड़े नेताओं ने भी कार्यकर्ताओं का भरोसा खो दिया है, जिसके चलते वे उनके सामने अपनी बात नहीं रखते हैं। ज्यादातर मामलों में कार्यकर्ताओं की नाराजगी का कारण मात्र उपेक्षा रहती है। इसके अलावा एक बड़ा कारण संगठन में पीढ़ी परिवर्तन के कारण युवाओं के हाथ आई बागडोर भी है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से आई युवा टीम ने संगठन की अनुभवी टीम का स्थान तो पा लिया लेकिन उनसे समन्वय बनाने में वे सफल नहीं हो पाए।
चुनावी राजनीति के दौर में विचार केंद्रित राजनीतिक बातों का युवा राजनेताओं में महत्व कम हुआ है। हमें पूरा विश्वास है कि युवा नेताओं में मोदी जी- शिवराज जी के प्रति जो आकर्षण है, वह हमें भाजपा में उनके विश्वास को बनाए रखने में मजबूती प्रदान करता है।
डा. हितेष वाजपेयी, प्रवक्ता, मध्य प्रदेश भाजपा
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