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कोलकाता कांडः देरी और लापरवाही से उलझा केस, CBI की जांच में बाधक बन रहीं ये समस्याएं

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केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) कोलकाता में ट्रेनी डॉक्टर के साथ रेप-मर्डर केस की जांच कर रही है. सीबीआई ने कल गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपनी स्टेटस रिपोर्ट में बताया कि मामले की जांच करते समय उसे कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ा. सीबीआई ने नाराजगी जताते हुए कहा कि राज्य सरकार की पुलिस ने क्राइम सीन को सील नहीं किया था, जिसकी वजह से कई सारे सबूत मिट गए थे. साथ ही रेप और हत्या के मामले को भी छिपाने की कोशिश की गई.

सीबीआई के सामने सबसे बड़ी चुनौती ये है कि एजेंसी उन्हीं सबूतों पर जांच करने को मजबूर है जो कोलकाता पुलिस से उसे मिले हैं. सीबीआई के सामने वो क्या चुनौती है जिसके चलते उसे एक दो नहीं बल्कि 6-6 लोगों के पॉलीग्राफ टेस्ट कराने की जरुरत हुई.

क्या संजय रॉय ही असली कातिल?

जांच एजेंसी के सामने यह पता लगाना भी है क्या वास्तव में संजय रॉय ही कातिल है, या फिर कोई और कातिल है? क्या कत्ल एक से ज्यादा लोगों ने मिलकर किया. सवाल यह भी उठता है कि कत्ल सजंय रॉय ने किया और सबूत किसी और ने मिटाए. आखिर क्या सच जानना चाहती है सीबीआई? कोलकाता पुलिस की थ्योरी भी सीबीआई के गले नहीं उतर रही है. आखिर ऐसा कौन सा राज उन 35 मिनट में छुपा है जिसे सीबीआई पिछले 10 दिनों में भी नहीं जान सकी.

सीबीआई को यह भी पड़ताल करनी है कि क्या तत्कालीन प्रिंसिपल डॉक्टर संदीप घोष 8-9 अगस्त की रात सच जानते हैं या फिर वो सच छुपा रहे हैं. यही नहीं पीड़िता को आखिरी बार जिंदा देखने वाले वो चार डॉक्टरो के पॉलीग्राफ टेस्ट से सीबीआई को क्या हासिल हो सकता है?

सीबीआई की दलीलः इस केस को लेकर सीबीआई ने दावा किया है कि राज्य पुलिस की वजह से क्राइम सीन को पूरी तरह खराब कर दिया गया. इसलिए उनको क्राइम सीन से ज्यादा एविडेंस नहीं मिल सके.

सच्चाई: इस केस में सीबीआई की दलील को इसलिए नहीं माना जा सकता क्योंकि शायद ही सीबीआई को जांच के लिए मिलने वाला कोई केस इतनी जल्दी मिल गई. घटना के 5 दिनों के अंदर ही कलकत्ता हाई कोर्ट ने सीबीआई को जांच का जिम्मा सौंप दिया था. ऐसे में जिस केस की जांच करने के बाद सीबीआई यह दावा कर रही है कि उसे ये केस बहुत देर से मिला. हालांकि ये दावा ही उसकी सबसे बड़ी कमजोरी थी.

क्राइम सीन को प्रिजर्व ना करना

सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में इस बात को लेकर दावा किया कि कोलकाता पुलिस ने क्राइम सीन को सुरक्षित नहीं रखा. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि सीबीआई ने जिस क्राइम सीन की सीएफएसएल के एक्सपर्ट के जरिए जांच करवाई, क्या वो छुपे हुए सबूत ढूंढने के काबिल नहीं थे. अगर काबिल थे तो कोलकाता पुलिस की जांच पर सवाल खड़े क्यों कर दिए?

क्या राज्य सरकार की मशीनरी ने मिलकर केस के सबूत या तो छुपा दिया… या नष्ट कर दिया, सीबीआई के सामने सबसे बड़ी चुनौती इस बात को लेकर थी कि पश्चिम बंगाल सरकार केस को दबाने में लगी हुई थी. पूरी सरकारी मशीनरी हत्या को आत्महत्या बनाने पर आमादा थी. इसलिए सबूतों को नजरंदाज किया गया. मतलब साफ था कि क्राइम सीन पर जब FSL को बुलाया गया तो सभी के बीच ये बात फैलाई गई कि पीड़िता ने सुसाइड किया था जिसके कारण FSL ने इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर सबूत जुटाए.

ट्रेनी डॉक्टर के शव का अंतिम संस्कार

सीबीआई के सामने सबसे बड़ी परेशानी इस बात को लेकर भी है कि उसे जो पोस्टमार्टम केस डायरी मिली है. उसमें जो बातें लिखी हैं, उसे मानने के अलावा उसके पास कोई चारा नहीं है क्योंकि पीड़िता का अंतिम संस्कार कर दिया गया है. इस वजह से अब उसका दोबारा पोस्टमार्टम नहीं किया जा सकता और पोस्टमार्टम में जो बातें लिखी है उसका भी खंडन नहीं किया जा सकता है.

डीएनए टेस्ट की रिपोर्ट का कोई विकल्प नहीं

सीबीआई के सामने सबसे बड़ी चुनौती इस बात को लेकर भी है कि एक तरफ तो उसे लगता है कि राज्य के पूरे सरकारी तंत्र ने जांच को काफी प्रभावित किया है. उसी कड़ी में डीएनए की जांच रिपोर्ट भी है क्योंकि अब पीड़िता का डीएनए सैंपल दोबारा नहीं लिया जा सकता या नए सैंपलों की प्रोफाइलिंग करने की संभावना भी खत्म हो चुकी है. लिहाजा अब सीबीआई के पास कोलकाता पुलिस के द्वारा बनवाई गई डीएनए रिपोर्ट पर ही भरोसा करना पड़ेगा.

पॉलीग्राफी टेस्ट करवाना बन गया था मजबूरी

सीबीआई के सामने अब साइंटिफिक टेस्ट करवाना ही मजबूरी बन गई है क्योंकि सीबीआई को अब तक पूर्व प्रिंसिपल और ट्रेनी डॉक्टरों ने उस रात की जो कहानी सुनाई है उस कहानी का सच जानने के लिए पॉलीग्राफी टेस्ट जरूरी हो गया है. अभी तक की जांच में किसी भी दूसरे शख्स की भूमिका रेप और मर्डर में सामने नहीं आई है.

ऐसे में सीबीआई इस टेस्ट के जरिए यह पता लगाना चाहती है कि कहीं ये सभी लोग जानबूझकर कुछ छुपाने की कोशिश तो नहीं कर रहे है. सीबीआई को भी यह पता है कि पॉलीग्राफी टेस्ट कोर्ट में मान्य नहीं होता, लेकिन उस टेस्ट के दौरान जांच को एक दिशा मिल जाती है. टेस्ट के दौरान बताई गई बातों के आधार पर अगर कोई रिकवरी या सच्चाई पता चलती है तो उसको कोर्ट मानता है.

मुश्किल हो गया जांच कर नतीजे देना

इस पूरी वारदात को अकेले संजय रॉय ने अंजाम दिया होगा, इस बात को कोई भी नहीं मान सकता इसलिए ये केस सीबीआई को दिया गया था. लेकिन सीबीआई भी अभी तक किसी दूसरे की भूमिका को सामने नहीं ला पाई है. ऐसे में सीबीआई से जिस सच को सामने लाने की उम्मीद की जा रही थी उसको पब्लिक के सेंटीमेंट्स के हिसाब से सामने लाना और कोर्ट में साबित करना भी एक बड़ी चुनौती है.

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