95 बरस की उम्र में देश के बड़े वकील और कानून की समझ के लिहाज से अपने आप में कई संस्थान के बराबर फली एस नरीमन (Fali S. Nariman Passes Away) का आज 21 फरवरी, बुधवार को निधन हो गया. 1929 में म्यांमार नहीं, बर्मा हुआ करता था. यहीं के रंगून में जन्मे नरीमन अगले सात दशक तक भारतीय संविधान, कानून और दुनिया-जहान के विवादों के मध्यस्थ के तौर पर अपनी पहचान कायम करते रहे.
नरीमन ने कानून की औपचारिक पढ़ाई-लिखाई मुंबई के गवर्मेंट लॉ कॉलेज से की. फिर बॉम्बे हाईकोर्ट में बरसों तक प्रैक्टिस करते रहे. बाद में इंदिरा गांधी ने जब उन्हें एडिशनल सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) नियुक्त किया तो दिल्ली चले आए. 1972 से 1975 तक देश के एएसजी रहे, आगे भी उनका कार्यकाल जारी रहता लेकिन आपातकाल लगाए जाने का विरोध किया और अपने पद से इस्तीफा दे दिया.
कानून से लेकर समाज के दूसरे दिग्गजों ने नरीमन के इस ‘साहसिक कदम’ की समय-समय पर सराहना की और संवैधानिक संकटों के लिहाज से हर मुश्किल समय में इसको एक नजीर के तौर पर पेश किया.
अवॉर्ड, राज्यसभा और ऑटोबायोग्राफी
एडिशनल सॉलिसिटर जनरल के पद से इस्तीफे के बाद वे सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करते रहें. 1991 से अगले दो दशक तक वे बार एसोसिएशन के अध्यक्ष रहें. देश के सर्वोच्च पुरस्कारों में से एक पद्म भूषण से 1991 में जबकि पद्म विभषण से 2007 में उन्हें सम्मानित किये गए.
साथ ही, 1999 से 2005 के दौरान राज्यसभा के सदस्य भी रहे. नरीमन साहब ने अपनी आत्मकथा भी लिखी है. जिसका शीर्षक है, Before Memory Fades – बिफोर मेमरी फेड्स (स्मृति धूमिल होने से पहले).
पुरस्कार, सम्मान और पदों से इतरएक वकील की पहचान उसकी दलीलें, उसके लड़े केस होते हैं. फली एस. नरीमन को उनकी शानदार दलीलों और कई ऐतिहासिक मामलों में पेशी के लिए याद किया जाता रहेगा.
पूर्व मुख्यमंत्री जे. जयललिता को जमानत दिलाने से लेकर, जजों की नियुक्ति वाले कॉलेजियम सिस्टम की स्थापना तक, कई गंभीर और संवैधानिक सवालों पर जिरह नरीमन की मौजूदगी ही में हुई जिसके वे भी भागीदार रहेें.
ऐतिहासिक फैसले जिनका वे हिस्सा रहें
पहला – फली एस नरीमन को इस बात का हमेशा अफसोस रहा कि वे ‘भोपाल गैस त्रासदी’ मामले में यूनियन कार्बाइड की ओर से अदालत के सामने पेश हुए. नरीमन साहब ने ‘द हिंदू’ को एक इंटरव्यू में माना कि कम उम्र में हर किसी की ये हसरत होती है कि उसको बड़ा केस मिले और उन्होंने भी उम्र के उस पड़ाव पर उन्हीं महत्त्वकांक्षाओं के कारण यूनियन कार्बाइड का मुकदमा लड़ा.
मगर समय के साथ उनको ये अंदाजा हो गया कि ये कोई केस नहीं था बल्कि एक त्रासदी थी और त्रासदी के दौरान कौन सही था-कौन गलत, ये बातें बहुत पीछे छूट जाती हैं. हालांकि, इस मामले में अदालत से बाहर यूनियन कार्बाइड और पीड़ितों के बीच मुआवजे को लेकर एक करार हुआ और नरीमन इसके अहम हिस्सा रहे. इस समझौते ही की बदौलत कंपनी ने पीड़ित परिवारों को 470 मिलियन डॉलर की रकम दी.
दूसरा – 2014 में आय से अधिक संपत्ति मामले में एआईएडीएमके की मुखिया जे. जयललिता की सजा का केस लड़ा और आखिरकार तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री को जमानत दिलाने में कामयाब रहे. उनकी कामयाबी इसलिए काबिल-ए-गौर थी क्योंकि उससे पहले कोर्ट ने इसी केस में जयललिता की जमानत याचिका ठुकरा दी थी. कर्नाटक हाईकोर्ट ने इसी केस में जयललिता पर 100 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया था जिसकी तब खूब चर्चा हुई थी.
तीसरा – नेशनल ज्युडिशियल एपॉइंटमेंट कमीशन फैसला और ‘सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन’ मामले में भी नरीमन साहब की खासी भागीदारी रही. ‘सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन’ का ही हासिल रहा कि सुप्रीम कोर्ट ने उच्च अदालतों में जजों की नियुक्ति के फैसले को अपने हाथ में ले लिया और कॉलेजियम सिस्टम वजूद में आया.
चौथा – नर्मदा पुनर्वास मामले में नरीमन गुजरात सरकार के वकील थे. हालांकि बाद में ईसाई समुदाय के लोगों की जान जाने पर उन्होंने इस केस से खुद को अलग कर लिया. बार एंड को बेंच को दिए एक इंटरव्यू में नरीमन ने बताया था कि ईसाईयों के साथ ज्यादती के सवाल को गुजरात के तत्कालीन मंत्री के सामने उठाया था पर वह नहीं हो सका जो वे चाहते थे.
पांचवा – 1967 के मशहूर गोलक नाथ केस में फली एस. नरीमन की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही. इस केस का ही नतीजा था कि सुप्रीम कोर्ट ने संवैधानिक संशोधनों से भी ऊपर ज्यूडिशियल रिव्यू को रखा. इस फैसले में सर्वोच्च अदालत ने अपने ही एक आदेश को पलट दिया जिसमें कहा गया था कि संसद मौलिक अधिकार समेत संविधान के सभी प्रावधानों को संशोधित कर सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने गोलक नाथ केस में 6:5 के बहुमत से तय कर दिया कि संसद मूलभूत अधिकारों पर किसी भी सूरत में कैंची नहीं चला सकती.
इसके अलावा मशहूर टीएमए पाई मामले में भी फली नरीमन बतौर वकील पेश हुए. इस केस ने अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक समुदाय के अधिकारों को नए सिरे से परिभाषित किया था.
किसने किस तरह किया याद?
फैजान मुस्तफा – चाणक्य नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर और कानून के जानकार फैजान मुस्तफा ने फली एस नरीमन को याद करते हुए 1975 में आपातकाल लागू होने के बाद बतौर एएसजी उनके इस्तीफे को याद किया. फैजान मुस्तफा ने इस बात को रेखांकित किया कि सुप्रीम कोर्ट की आलोचना करने में भी नरीमन साहब ने कभी संकोच नहीं किया. फैजान साहब ने नरीमन के निधन को कानून बिरादरी के लिए बहुत बड़ी क्षति कहा.
Nation’s legendary conscience keeper Fali Nariman who had resigned as ASG on the imposition of emergency in 1975 is no more with us. He never hesitated in criticising even the SC. It is a huge loss for the legal fraternity.May God rest his soul in peace. pic.twitter.com/meiLck8VQ2
— Faizan mustafa (@ProfFMustafa) February 21, 2024
प्रशांत भूषण – सीनियर एडवोकेट प्रशांत भूषण ने नरीमन को याद करते हुए उन्हें वकील समुदाय का भीष्म पितामह कहा है. भूषण ने नरीमन साहब को वरिष्ठ वकील के साथ अपने परिवार का बेहद खास दोस्त कहा है.
Very sad news. Eminent Jurist Fali S Nariman Passes Away. He was also regarded as the Bhishma Pitamah of the Lawyer community. A great lawyer & close friend of our family. His passing away at this critical juncture is an enormous loss for our country https://t.co/VsTCFTSCNK
— Prashant Bhushan (@pbhushan1) February 21, 2024
नरीमन साहब के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर, सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी और कई लोगों ने शोक व्यक्त किया है.
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