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बीजेपी के साथ का इरादा या सपा पर दबाव का दांव, RLD में अंदरखाने क्या चल रहा है?

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बिहार के बाद अब उत्तर प्रदेश में भी विपक्षी इंडिया गठबंधन को बड़ा झटका लगने की पठकथा लिख दी गई है. इंडिया गठबंधन में शामिल राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) प्रमुख जयंत चौधरी के पाला बदलकर बीजेपी नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन में जाने की कयासबाजी तेजी से चल रही है. बीजेपी की तरफ से आरएलडी को चार सीटें दिए जाने के ऑफर की चर्चा है. अखिलेश यादव के साथ सीट बंटवारे की डील करते-करते जयंत चौधरी आखिर किस मजबूरी में बीजेपी के साथ हाथ मिलने के लिए तैयार हो गए हैं. सवाल यह उठता है कि जयंत की सियासी मजबूरी है या फिर सपा पर प्रेशर पॉलिटिक्स बनाने का दांव?

उत्तर प्रदेश में इंडिया गठबंधन का हिस्सा कांग्रेस, सपा और आरएलडी हैं. सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने सीट शेयरिंग में आरएलडी को सात लोकसभा सीटें देने का ऐलान किया था और कांग्रेस को 11 सीटें देने की घोषणा की थी. लखनऊ में अखिलेश और जयंत चौधरी की मुलाकात हुई थी, जिसमें सपा ने बागपत, मुजफ्फरनगर, कैराना, मथुरा, बिजनौर अमरोहा और हाथरस सीट दी थी. अखिलेश ने आरएलडी के साथ सीट बंटवारे का ऐलान किया था तो जयंत चौधरी ने भी उसका स्वागत करते हुए अपनी स्वीकृति दी थी.

सपा और RLD में क्यों मतभेद

आरएलडी कोटे वाली लोकसभा सीटों पर सपा के अपने नेताओं के चुनाव लड़ने वाले फॉर्मूले पर सियासी पेंच फंसा हुआ था, जिसके बाद सुलझाने की कोशिश हो रही थी. जयंत चौधरी के बीजेपी के साथ नजदीकी बढ़ने की खबरों ने INDIA गठबंधन में सियासी हलचल मचा दी है. कहा जा रहा है कि जयंत चौधरी की बीजेपी के साथ लगभग डील फिक्स हो गई है और उन्हें पश्चिम यूपी की चार सीटें देने की बात हुई है, जिसमें हाथरस, बागपत, मथुरा और अमरोहा की सीट शामिल है. जयंत चौधरी मुजफ्फरनगर और कैराना में से एक सीट और चाह रहे हैं.

जयंत चौधरी के बीजेपी के साथ जाने की चर्चा को आरएलडी के प्रेशर पॉलिटिक्स से जोड़कर भी देखा जा रहा है. कहा जा रहा है कि सीट शेयरिंग को लेकर सपा पर दबाव बनाने के रणनीति का ये हिस्सा है क्योंकि आरएलडी को इंडिया गठबंधन में सूबे की जो 7 लोकसभा सीटें मिली है, उसमें से पांच सीट पर सपा अपने नेताओं को आरएलडी के टिकट पर चुनाव लड़ाने का दांव चली थी. आरएलडी के पास सिर्फ बागपत और मथुरा सीट ही अपने नेताओं के लिए बच रही थी.

आरएलडी के टिकट पर सपा ने अपने जिन नेताओं को चुनाव लड़ाने का प्लान बना रखा है. उसमें कैराना सीट से इकरा हसन, मुजफ्फरनगर सीट से हरेंद्र मलिक, बिजनौर सीट से रुची वीरा और अमरोहा सीट से सरजीत सिंह को चुनाव लड़ाने की रणनीती होने की बात कही जा रही है. मेरठ सीट से योगेश वर्मा या हाथरस सीट से रामजी लाल सुमन में से किसी एक सीट पर सपा ने आरएलडी के सिंबल पर अपने प्रत्याशी को उतारने का प्लान बनाया था.

कठपुतली नहीं बनना चाहती RLD

2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में भी सपा ने आरएलडी को 33 सीटें दी थी और उनमें से 8 सीट पर अपने नेताओं को चुनाव लड़ाया था, जिसे लेकर बहुत ज्यादा विरोध हुआ था. सपा के नेता आरएलडी के टिकट पर 2022 में मीरापुर, पुरकाजी और सिवालखास से विधायक चुने गए. अब फिर से सपा वही दांव लोकसभा चुनाव में आजमाना चाहती है. जयंत चौधरी को सपा की यह शर्त कतई स्वीकार नहीं है, क्योंकि आरएलडी के नेता गठबंधन के इस फॉर्मूले का खुलकर विरोध कर रहे हैं.

आरएलडी नेता नवाजिश आलम खुलकर कैराना में इकरा हसन का विरोध कर रहे हैं तो बिजनौर सीट पर भी आरएलडी नेताओं ने विरोध शुरू कर रखा है. अमरोहा से लेकर मुजफ्फरनगर सीट तक पर सपा नेता के आरएलडी के सिंबल से चुनाव लड़ाने के पक्ष में जयंत नहीं है. आरएलडी खुद को सपा की कठपुतली के तौर पर नहीं रखना चाहती है और अपनी सीट पर अपने नेताओं को ही चुनाव लड़ाने के पक्ष में है.

पाला बदलेंगे या प्रेशर पॉलिटिक्स?

बीजेपी के साथ गठबंधन की चर्चा पर आरएलडी की तरफ से न ही कोई अधिकारिक बयान आया है और न ही खंडन किया गया है. जयंत चौधरी ने पूरी तरह से खामोशी अख्तियार कर रखी है. यही वजह है कि इसे प्रेशर पॉलिटिक्स के तहत भी देखा जा रहा है. विधानसभा सत्र बीच में ही छोड़कर आरएलडी विधायकों को दिल्ली बुला लिया गया था, लेकिन फिर ऐन वक्त पर इंतजार करने के लिए कह दिया गया.

जयंत चौधरी के बीजेपी के साथ गठबंधन की चर्चाओं के बीच दिल्ली से दोबारा संदेश दिया गया कि अभी इंतजार करें. माना जा रहा है कि आरएलडी नेतृत्व अपने विधायकों से अलग-अलग राय लेकर ही अगला कदम उठाएगा. बागपत के छपरौली में 12 फरवरी को होने वाले कार्यक्रम को भी फिलहाल के लिए स्थागित कर दिया गया है, जहां पर चौधरी अजित सिंह की 10 फिट ऊंची मूर्ती लगनी थी.

RLD का फायदा किस में?

आरएलडी नेताओं ने इंडिया गठबंधन में अपने हिस्से में आई सभी सीटों पर जो सर्वे कराया, उसमें अपने ही प्रत्याशी लड़ाने की बात भी सामने आई थी. जिसके बाद असमंजस की स्थिति है. आरएलडी का कोर वोटबैंक जाट समुदाय है, इस समुदाय का एक तबका बीजेपी के साथ जाने के लिए दवाब बना रहा है, जिसके चलते भी जयंत चौधरी कशमकश में हैं. सूत्रों की माने तो शामली से आरएलडी विधायक प्रसन्न चौधरी बीजेपी के साथ गठबंधन के सबसे बड़े समर्थकों में से एक हैं. उन्हें लगता है कि इंडिया गठबंधन से ज्यादा बीजेपी के साथ गठबंधन करने का सियासी फायदा आरएलडी को मिलेगा?

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