Breaking News in Hindi
ब्रेकिंग
मंदिर में शिल्पा शेट्टी के फोटो खिंचवाने पर बवाल, सेवादार और एक अधिकारी को नोटिस बाढ़ प्रभावित किसानों के खाते में ₹101 करोड़ जारी… दिवाली पर CM नीतीश कुमार की बड़ी सौगात एनसीआर में मेथ लैब का भंडाफोड़, तिहाड़ जेल वार्डन, मैक्सिकन नागरिक सहित 5 गिरफ्तार दिल्ली में आयुष्मान से बेहतर फरिश्ता, बम से उड़ाने की धमकी पर केंद्र चुप क्यों… AAP का BJP पर हमला गाजीपुर: 65 साल के बुजुर्ग ने लगाई जीत की झड़ी, सेना के पूर्व कैप्टन ने जमाया 9 मेडल पर कब्जा हिजबुल्लाह का नया चीफ बना नईम कासिम, नसरल्लाह की लेगा जगह, दोनों कर चुके हैं साथ काम चमड़े के बैग पर ट्रोल हो रही थीं जया किशोरी, अब खुद दिया ये जवाब जेपीसी की बैठक में क्या हुआ था, जिसके बाद हुई झड़प…कल्याण बनर्जी ने बताई पूरी घटना यूपी उपचुनाव: साइलेंट प्लेयर की भूमिका में कांग्रेस, सपा के लिए सियासी नफा या फिर नुकसान राजस्थान: पुलिया से टकराई बस, 11 लोगों की मौत, 20 से अधिक लोग घायल

निमाड़ से होकर ही गुजरेगी मध्य प्रदेश में सत्ता की चाबी, यह 16 सीटें तय करेगी किसकी बनेगी सरकार

9

खंडवा : मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में सत्ता तक पहुंचाने के लिए निमाड़ से होकर गुजरना पड़ेगा। मध्य प्रदेश का निमाड़ रीजन इस चुनाव में भी सबसे महत्वपूर्ण माना जा रहा है। क्योंकि निमाड़ विज़न में 16  विधानसभा आती है। जहां पर अधिकतर आदिवासी बहुल वोटर अपने वोट के माध्यम से सत्ता की चाबी जनप्रतिनिधियों को सौंपेंगे। पंजाब केसरी की इस खास रिपोर्ट में आप जानेंगे निमाड़ रीजन में कौन किसके सामने मुकाबले में है और निमाड़ का पिछले चुनाव में क्या इतिहास रहा है। बता दे कि पूरे निमाड़ रीजन 2018 में 16 में से तकरीबन 11 सीटों पर कांग्रेस यह कांग्रेस समर्थित जनप्रतिनिधियों का कब्जा रहा है। हालांकि कमलनाथ सरकार गिरने के बाद उपचुनाव में कुछ सीटें भाजपा के पास चली गई थी।

इस विधानसभा चुनाव 2023 में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि, निमाड़ में अधिकतर सीटों पर पिछली बार अपने-अपने राजनीतिक दलों से बागी होकर चुनाव लड़े उम्मीदवारों को इस बार पार्टी सिंबल पर चुनाव लड़ाया जा रहा है।  तो वहीं कुछ सीटों पर कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए जनप्रतिनिधि चुनाव लड़ रहे हैं।  बता दे कि निमाड़ में कांग्रेस के वह जनप्रतिनिधि जो भाजपा में शामिल हुए  वह कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव के करीबी माने जाते थे। इनमें मांधाता विधानसभा सीट के नारायण पटेल, बड़वाह विधानसभा से सचिन बिरला और नेपानगर से सुमित्रा कसडेकर के नाम शामिल है। यह सभी अरुण यादव के बेहद करीबी माने जाते हैं। इतना ही नहीं हाल ही में कांग्रेस की एक नेत्री छाया मोरे भी बीजेपी में शामिल हो गई। छाया मोरे भी अरुण यादव की करीबी रही है। 2018 में अरुण यादव के समर्थन सहित उन्हें कांग्रेस पार्टी ने टिकट दिया था। हालांकि वह अपना चुनाव हार गई थी। इस बार भी उन्होंने टिकट की मांग की लेकिन टिकट नहीं मिला और वह बीजेपी में शामिल हो गई। अब बीजेपी ने उन्हें पंधाना विधानसभा से अपना प्रत्याशी बनाया है।

इसी तरह खंडवा जिले की मांधाता विधानसभा सीट से 2018 में कांग्रेस के सिंबल से चुनाव लड़े नारायण पटेल ने कमलनाथ सरकार गिरने के बाद भाजपा का दामन थाम लिया था। हालांकि उपचुनाव में उन्होंने भाजपा से चुनाव लड़कर एक बार फिर अपनी जीत का परचम लहराया था। इस बार फिर भाजपा ने नारायण पटेल पर अपना भरोसा जताते हुए उन्हें उम्मीदवार बनाया है। तो वहीं कांग्रेस ने एक बार फिर मांधाता के पूर्व विधायक राजनारायण के पुत्र उत्तम पाल सिंह पुरनी को मुकाबले में खड़ा किया है। बता दे कि उपचुनाव में नारायण पटेल लोग उत्तम पाल सिंह आमने-सामने थे। इस बार फिर दोनों ही जोड़ी विधानसभा चुनाव में आमने-सामने मुकाबला कर रही है।

खंडवा में विधानसभा में चार बार के भाजपा विधायक देवेंद्र वर्मा का टिकट काटकर जिला पंचायत अध्यक्ष कंचन तनवे को टिकट दिया है। लंबे समय से विधायक रहे देवेंद्र वर्मा का विरोध खुद बीजेपी के कार्यकर्ता और नेताओं नहीं किया। विरोध के बाद पार्टी ने देवेंद्र वर्मा का टिकट कट कंचन तनवे  को उम्मीदवार बना दिया। तो इधर कांग्रेस ने एक बार फिर 2018 में चुनाव हारे कुंदन मालवीय पर ही अपना दावा लगाया है। बता दे कि कुंदन मालवीय कमलनाथ के बेहद करीबी है। उन्हें इसका फायदा मिला और एक बार फिर विधानसभा चुनाव 2023 में कांग्रेस ने खंडवा विधानसभा सीट से उन्हें अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया। खंडवा में अब तंवे और मालवीय के बीच कांटे की टक्कर मानी जा रही है।

बात करें हरसूद विधानसभा क्षेत्र की तो हरसूद विधानसभा क्षेत्र में 35 सालों से भाजपा का कब्जा रहा है। यहां से सात बार डॉक्टर कुंवर विजय शाह विधायक रहे हैं। शाह अलग-अलग सरकारों में अलग-अलग मंत्रालय में मंत्री भी बने हैं। हरसूद विधानसभा क्षेत्र आदिवासी विधानसभा क्षेत्र में आता है। यहां से कांग्रेस हमेशा कमजोर रही है। हालांकि पिछली बार कांग्रेस के प्रत्याशी सुखराम साल्वे ने सरकार में मंत्री रहे विजय शाह को कड़ी टक्कर दी थी। कांग्रेस के साल्वे ने विजय शाह की विनिंग लीड काम करती थी। इस बार फिर मंत्री विजय शाह के सामने कांग्रेस ने सुखराम साल्वे को ही अपना उम्मीदवार बनाया है। राजनीति गलियारों में चर्चा है कि इस बार फिर हरसूद विधानसभा क्षेत्र में कड़ा मुकाबला होने वाला है।

पंधाना विधानसभा क्षेत्र खंडवा जिले का ऐसा विधानसभा क्षेत्र है। जहां पर एक बार जो विधायक बना उसे दूसरी बार टिकट नहीं दिया गया। इसी सिलसिले में पंधाना विधानसभा क्षेत्र के सुपर विधायक कहे जाने वाले इंजीनियर राम दनोरे का टिकट काटकर हाल ही में कांग्रेस का हाथ छोड़ भारतीय जनता पार्टी का दामन सामने वाली नेत्री के छाया मोरे को भाजपा ने उम्मीदवार बनाया है। बता दे कि 2018 के चुनाव में छाया मोरे कांग्रेस के सिंबल पर राम दंगोरे के सामने चुनाव मैदान में थी। तो वहीं 2018 में कांग्रेस से बागी होकर चुनाव लड़ी रूपाली बारे इस बार अपनी प्रतिद्वंद्वी रही छाया मोरे के सामने कांग्रेस से उम्मीदवार है। पंधाना विधानसभा क्षेत्र में भी बेहतर मुकाबला होने की उम्मीद है। हालांकि यहां भाजपा में भीतर घात होने से मुकाबला कमजोर पड़ सकता है।

निमाड़ और मध्य प्रदेश की बॉर्डर पर बसा बुरहानपुर जिला दक्षिण का द्वार कहा जाता है। बुरहानपुर विधानसभा क्षेत्र में इस बार रोचक मुकाबला देखने को मिल रहा है। यहां पर भाजपा ने पूर्व मंत्री अर्चना चिटनीस को अपना उम्मीदवार बनाया है। तो वहीं पूर्व प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान के पुत्र हर्षवर्धन सिंह चौहान को टिकट नहीं मिलने से नाराज होकर वह भाजपा के बागी उम्मीदवार के तौर पर चुनाव मैदान में डेट है। इधर कांग्रेस से पिछली बार बागी होकर निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे विधायक सुरेंद्र सिंह शेरा  को कांग्रेस ने अपने सिंबल से इस बार बुरहानपुर में अपना उम्मीदवार बनाया है। तो वहीं कांग्रेस का एक नाराज धड़ा अपने ही उम्मीदवार के खिलाफ उत्तर आया है। कांग्रेस नेता रहे नफीस मानसा ने बैरिस्टर असदुद्दीन ओवैसी की सियासी जमात All India Majlis-E-Ittehadul Muslimeen यानी एमआईएम  का दामन थाम चुनाव मैदान में अपना दम दिखाना शुरू कर दिया है। बता दे कि बुरहानपुर एक मुस्लिम बहुल क्षेत्र है। यहां पर चारों ही उम्मीदवार अपना-अपना राजनीतिक रसूख रखते हैं। इस वजह से बुरहानपुर के मुकाबले पर पूरे प्रदेश की निगाहें हैं। यहां पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक की भूमिका में नजर आते हैं।

नेपानगर से इस बार भाजपा ने अपना टिकट बदल दिया है। पिछली बार उपचुनाव में कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुई सुमित्रा काल्डेकर को भाजपा ने उम्मीदवार बनाया था। लेकिन इस बार सुमित्रा  कसडेकर  का टिकट काटकर  नेपानगर के पूर्व विधायक स्वर्गीय राजेंद्र दादू की पुत्री मंजू दादू को अपना उम्मीदवार घोषित किया है।  वही कांग्रेस ने गेंदु बाई चौहान को अपना उम्मीदवार बनाया है। बता दे कि नेपानगर भी आदिवासी बहुल सीट है।

बात करें पश्चिमी निमाड़ की तो खरगोन जिले की सभी विधानसभा सीट कांग्रेस के कब्जे में है। खरगोन विधानसभा सीट से विधायक रवि जोशी को ही कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार घोषित किया है। वहीं भाजपा ने पूर्व मंत्री और विधायक रहे  बालकृष्ण पाटीदार को एक बार फिर मौका दिया है। दोनों ही जनता के बीच लोकप्रिय है। और दोनों ही जनप्रतिनिधि लोगों में अपना अच्छा रसूख रखते हैं। खरगोन विधानसभा सीट में भी मुकाबला टक्कर का है।

भीकनगांव विधानसभा सीट से कांग्रेस की विधायक झूमा सोलंकी को कांग्रेस ने फिर से टिकट दिया है। झूमा सोलंकी अपनी विधानसभा सीट में काफी लोकप्रिय  है। उनके सामने बीजेपी ने नंदा ब्राह्मणों को मैदान में उतारा है। बता दे कि पिछली बार भी नंदा ब्राह्मण और झुमा सोलंकी में मुकाबला हुआ था। लेकिन झुमा सोलंकी बाजी मार गई थी। इस बार फिर दोनों ही आमने-सामने है। देखना है कि इस बार कौन मैदान मारता है।

खरगोन जिले की महेश्वर विधानसभा सीट से भाजपा ने राजकुमार मेंव पर भरोसा जताया है। लेकिन बता दे कि मेव का नाम घोषित करने के बाद ही पार्टी कार्यकर्ताओं ने उनका जबरदस्त विरोध किया था। किसी तरह से भाजपा ने इस विरोध को मैनेज किया। इधर महेश्वर से कांग्रेस की विधायक और कांग्रेस सरकार में मंत्री रही तेज तर्रार नेता डॉ विजय लक्ष्मी सधो को अपना उम्मीदवार बनाया है।  महेश्वर में भी मुकाबला टक्कर का है। लेकिन भाजपा में भीतर घात इस मुकाबला को कमजोर कर सकता है।

खरगोन जिले की कसरावद विधानसभा सीट से कांग्रेस नेता सचिन यादव इस बार भी उम्मीदवार है। सचिन यादव मध्य प्रदेश के पूर्व उपमुख्यमंत्री और सहकारिता के जनक कहे जाने वाले सुभाष यादव के छोटे बेटे हैं। सचिन यादव के बड़े भाई अरुण यादव भी कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष और खंडवा के पूर्व सांसद रहे हैं। खुद सचिन कमलनाथ सरकार में मंत्री रहे है। कसरावद विधानसभा सीट यादव परिवार की परंपरागत सीट मानी जाती है। यहां से भाजपा ने आत्माराम पटेल को अपना उम्मीदवार घोषित कर यादव के सामने मुकाबले में खड़ा किया है।

खरगोन जिले की एक और विधानसभा सीट भगवानपुरा से कांग्रेस ने आदिवासी नेता केदार डाबर को उम्मीदवार बनाया है। केदार डाबर पिछली बार कांग्रेस से बागी हो कर निर्दलीय लड़ कर जीते थे। इस बार कांग्रेस ने उन्हें अपने सिंबल पर टिकट देकर चुनाव लाडवा रही है। वहीं भाजपा ने अपने नेता और जिला पंचायत में प्रतिनिधि रहे चंद्र सिंह वास्कले को केदार डाबर के मुकाबले में उतारा है।

जैसा कि हम पहले भी बता चुके हैं खरगोन जिले की बड़वाह विधानसभा सीट से कांग्रेस के विधायक रहे सचिन बिरला ने कमलनाथ सरकार गिरने के बाद भाजपा का दामन थाम लिया था। हालांकि उनका इस्तीफा मंजूर नहीं होने के चलते हुए कांग्रेस के विधायक के तौर पर ही विधानसभा में बने रहे। लेकिन वह भाजपा के मंचों पर और मीटिंग में शामिल होते रहे। हाल ही में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विधिवत रूप से भाजपा की सदस्यता दिलाई और इस बार सचिन बिरला भाजपा के सिंबल से बड़वाह से उम्मीदवार है। वहीं कांग्रेस ने सचिन बिरला के सामने नरेंद्र पटेल को अपना उम्मीदवार बनाया है। बता दे कि नरेंद्र पटेल वरिष्ठ कांग्रेसी है और राजनीतिक परिवार से आते हैं। यहां पर उनका अच्छा होल्ड भी माना जाता है। बड़वाह में भी मुकाबला प्रथम दर्जे का है। दोनों ही कैंडिडेट विधानसभा चुनाव में अपना दमखम झोंक रहे हैं।

वहीं, बड़वानी जिले की बात करें तो बड़वानी में चार विधानसभा सीट है। यहां पर बीजेपी एक सीट पर और कांग्रेस ने तीन सीटों पर अपना कब्जा कर रखा है। सबसे पहले बात करते हैं भाजपा के कब्जे वाली बड़वानी विधानसभा सीट की। बड़वानी विधानसभा सीट से तकरीबन 5 बार विधायक रहे प्रेम सिंह पटेल पिछली बार 2018 में चुनाव जीते थे। वह अकेले इस क्षेत्र के ऐसे प्रतिनिधि हैं जो कमलनाथ सरकार गिरने के बाद बनी सरकार में भाजपा से मंत्री भी रहे। इस बार फिर भाजपा ने उन्हें पर विश्वास जताया है। बता दे कि 2013 में प्रेम सिंह पटेल अपने भतीजे रमेश पटेल से चुनाव हार गए थे। तो वहीं 2018 में उन्होंने अपने भतीजे को फिर से हराकर भाजपा का झंडा लहराया था। इस बार उनका मुकाबला पिछली बार कांग्रेस के बागी रहे राजेंद्र मंडलोई से है।  राजेंद्र मंडलोई और प्रेम सिंह पटेल 2008 में भी आमने-सामने रहे हैं। इस बार कांग्रेस ने फिर से राजेंद्र मंडलोई पर विश्वास जताया है। यहां भी मुकाबला टक्कर का है।

बात करें बड़वानी की राजपुरा विधानसभा सीट की तो यहां से भाजपा ने अंतर पटेल को अपना उम्मीदवार बनाया है। तो वहीं कांग्रेस ने बाला बच्चन को एक बार फिर टिकट देकर मैदान में उतारा है। बता दे कि 2018 में बाला बच्चन अंतर पटेल से बहुत ही करीबी मतों से जीते थे।  बाला बच्चन कांग्रेस की कमलनाथ सरकार में मंत्री भी रहे हैं। इस बार भी मुकाबला कांटे का है। क्योंकि यहां पर बड़वानी जिले के सबसे अधिक निर्दलीय यानी आठ निर्दलीय उम्मीदवार भी मैदान में है। जो कहीं ना कहीं वाला बच्चन का गणित बिगड़ सकते हैं।

बड़वानी जिले की सेंधवा विधानसभा सीट से भाजपा के कद्दावर नेता अंतर सिंह आर्य को भाजपा ने उम्मीदवार बनाया है । बता दे कि अंतर सिंह आर्य भाजपा की पूर्व सरकार मैं मंत्री भी रहे हैं । 2018 में अंतर सिंह आर्य कांग्रेस के ग्यारसी लाल से हार गए थे। हालांकि  इस बार कांग्रेस ने अपने मौजूदा विधायक का टिकट काटकर जायस नेता मोंटू सोलंकी को अपना उम्मीदवार बनाया है। सेंधवा में भी मुकाबला टक्कर का है ।

मध्य प्रदेश और गुजरात की सीमा से सटी हुई पानसेमल विधानसभा सीट से कांग्रेस ने चंद्रभागा किराड़े को अपना उम्मीदवार बनाया है। हालांकि उनका टिकट मिलने के बाद पार्टी कार्यकर्ताओं ने किराडे का जबरदस्त विरोध जताया था । लेकिन यहां टिकट नहीं बदला गया। वहीं भाजपा ने श्याम बर्डे को अपना उम्मीदवार बनाया है।  2018 में चंद्रभागा किराड़े ने भाजपा की देवासी पटेल को हराया था। कांग्रेस को भी यहां अंदरूनी कला का सामना करना पड़ सकता है

Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.