भोपाल। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में अब तक भाजपा और कांग्रेस के अलावा तीसरी कोई बड़ी पार्टी भले ही पैर जमाने में सफल नहीं हो सकी है, लेकिन यहां अन्य दल इन दो पारंपरिक प्रतिद्वंद्वियों को नुकसान पहुंचाने में पीछे नहीं हैं। पिछले चुनाव में भाजपा विरोधी वोट एकजुट होकर कांग्रेस में चला गया था, तो भाजपा को नुकसान हुआ।
2023 की तैयारी में जुटी कांग्रेस के सामने तीसरे मोर्चे यानी छोटे दलों से वोटों का बिखराव रोकने की चुनौती है। इस चुनाव में बहुजन समाज पार्टी एक बार फिर पूरी ताकत से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही हैं। भीम आर्मी और आम आदमी पार्टी भी कांग्रेस के लिए चुनौती बनेगी। इसकी वजह भी साफ है कि पिछले चुनाव में बसपा का वोटबैंक कांग्रेस के पास चला गया था, जिससे उसका वोट प्रतिशत और सीट, दोनों ही बढ़ गए थे। इस बार बसपा-आप के साथ- साथ छोटे दल भी कांग्रेस के वोटबैंक में सेंधमारी करेंगे। पिछले चुनाव में भाजपा को 109 और कांग्रेस को 114 सीटें मिली थी और बसपा की सीट चार से घटकर दो बची थी।
BSP की कमजोरी ने BJP की उम्मीदों पर चोट पहुंचाई
2003 में 13 प्रतिशत वोट लेकर अन्य दलों ने 13 सीटें जीती थीं। 2008 के चुनाव में 17 प्रतिशत वोट लेकर 13 सीट पर कब्जा किया था। 2013 में साढ़े आठ प्रतिशत वोट ही मिले और सीटें चार मिलीं। अन्य दलों को 2018 में 18 प्रतिशत वोट मिले और सात सीटों पर उसका कब्जा रहा। कांटे के मुकाबले में भाजपा सत्ता से भले ही दूर रह गई, लेकिन उसे वोट 41.02 प्रतिशत मिले थे। जबकि, सरकार बनाने का जादुई आंकड़ा जुटाने में सफल रही कांग्रेस को 40.89 प्रतिशत वोट मिले थे। परिणाम के विश्लेषण में स्पष्ट हुआ कि बसपा की कमजोरी ने भाजपा की उम्मीदों पर चोट पहुंचाई थी और सरकार बनाने से रोक दिया था। बसपा को 2013 में 6.29 और 2018 में 5.01 प्रतिशत वोट मिले थे, जो कमी आई वह कांग्रेस के खाते में चले गए।
दो अप्रैल 2018 को एट्रोसिटी एक्ट के विरोध में जो आंदोलन हुआ था, उस दौरान भाजपा सरकार ने अनुसूचित जाति के युवाओं पर हजारों एफआइआर दर्ज करवाई थी। कांग्रेस ने वादा किया कि उनकी सरकार बनी तो वे इन मामलों को वापस ले लेंगे। इसी उम्मीद में हमारा वोट कांग्रेस के पक्ष में चला गया था। जब कांग्रेस 15 महीने सरकार में रही तो उसने वादा नहीं निभाया। प्रदेश के कमजोर वर्ग ने भाजपा और कांग्रेस दोनों सरकारों की तुलना की है इसलिए 2023 में हमारा वोटबैंक और विधानसभा में सीट दोनों में ही वृद्धि होगी।
रमाकांत पिप्पल, प्रदेश अध्यक्ष बहजुन समाज पार्टी
काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती
अलग-अलग राजनीतिक कारणों से भले ही उधार के जनाधार से कांग्रेस ने 2018 में कुछ सीटों पर वोट पा लिया हो, लेकिन काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती। अब अन्य दलों की राजनीतिक विश्वसनीयता और अस्तित्व का भी प्रश्न है, इस कारण ये दल फिर उठ खड़े हुए हैं। कांग्रेस की कमल नाथ सरकार की खराब छवि और भीतरी घमासान भी तीसरे दलों को मजबूत कर रहा है।
रजनीश अग्रवाल, प्रदेश मंत्री भाजपा
कांग्रेस हर चुनौती से निपटने तैयार
सत्ता विरोधी लहर 2018 से अधिक है। हमें पूरा विश्वास है कि छोटे राजनीतिक दल भाजपा के समर्थन में सामने नहीं आएंगे, क्योंकि कहीं न कहीं आमजन के साथ वे भी ठगी के शिकार हुए हैं। भाजपा काले धन, प्रशासन और अन्य संसाधनों का काफी दुरुपयोग करेगी मगर कांग्रेस उन सभी चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार है।
केके मिश्रा, प्रदेश कांग्रेस मीडिया विभाग अध्यक्ष
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