इंदौर। कनाड़िया पुलिस थाने में दर्ज एक प्रकरण में पुलिस की गंभीर चूक सामने आई है। मामले को गंभीर बताने के चक्कर में पुलिस ने प्रकरण में वे धाराएं भी लगा दीं, जिनका कोई आधार ही नहीं था। जिला न्यायालय ने इस पर गंभीर नाराजगी जताते हुए टिप्पणी की कि ऐसी धाराओं को लेकर विचारण न सिर्फ निरर्थक है, अपितु न्यायालय के मूल्यवान समय का अपव्यय भी है। बेहतर होगा कि इन धाराओं को विचारण से पहले ही हटा लिया जाए। याचिकाकर्ता के वकील ने ब्लैकमेलिंग का आरोप भी लगाया है।
कनाड़िया थाना पुलिस ने करीब दो वर्ष पहले राजीव अग्निहोत्री की शिकायत पर अशोक जैन नामक व्यवसायी के खिलाफ धारा 420, 465, 467, 468, 471 और 201 में प्रकरण दर्ज किया था। आरोप था कि जैन ने अग्निहोत्री की संपत्ति हड़पने की नीयत से फर्जी अनुबंध बनाया और भुगतान भी नहीं किया।
प्रकरण में कई तथ्य छुपाए गए
पुलिस की कार्रवाई को चुनौती देते हुए जैन ने जिला न्यायालय में याचिका दायर की। उनकी ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विनय सराफ ने कोर्ट को बताया कि मामला फर्जी दस्तावेज का नहीं, अपतिु जमीन की कीमत बढ़ने का है। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश गंगाचरण दुबे ने 37 पेज के फैसले में माना कि शिकायतकर्ता ने प्रकरण में कई तथ्य छुपाए हैं। पुलिस ने उन धाराओं में प्रकरण दर्ज किया, जिनमें प्रकरण दर्ज करने का कोई आधार ही नहीं था।
कोर्ट ने मात्र एक धारा को विचारण में रखा
फर्जी अनुबंध की एफएसएल की रिपोर्ट से स्पष्ट है कि जिस दस्तावेज को जैन का बताते हुए प्रकरण दर्ज किया गया था, वह शिकायतकर्ता के ही थे। बावजूद इसके कूटरचित दस्तावेज तैयार करने की धारा लगाई गई। न्यायालय ने प्रकरण में मात्र धारा 420 में विचारण को यथावत रखा है।
Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.