खरगोन खरगोन जिले में सर्वाधिक कपास उत्पादन को देखते हुए कलेक्टर शिवराज सिंह वर्मा के निर्देश पर कृषि विभाग द्वारा कृषि तकनीक कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। इसी के तहत उच्च सघनता उत्पादकता (हाई डेंसिटी प्रोडक्शन) को लेकर कपास बुआई का नवाचार हुआ है। इस साल लगभग 500 एकड़ रकबे में फसल लगाई गई है। किसानों ने 16 से 20 क्विंटल प्रति एकड़ उत्पादन का लक्ष्य रखा है। इस तरह की खेती फिलहाल गुजरात, महाराष्ट्र और चीन में हो रही है। इस तकनीक की शुरुआत निमाड़ के खरगोन जिले से की गई है।
पिछले साल सीमित संख्या में इस विधि से बुआई की थी। 12-16 क्विंटल प्रति एकड़ उत्पादकता रही। कृषि विभाग ने इसके लिए नागपुर से सात वैरायटी का बीज मंगवाया है। उप संचालक कृषि एमएल चौहान का कहना है कि कलेक्टर के निर्देशन में सघन कपास उत्पादकता कार्यक्रम चलाया जा रहा है। विभाग को उम्मीद है कि यदि किसानों को अच्छा मुनाफा होता है तो अगले कुछ सालों में इसका रकबा तेजी से बढ़ेगा। जिले में लगभग सवा दो लाख हेक्टेयर में बीटी काटन की बुवाई होती है। कपास की उत्पादकता बढ़ाने पर किसान इस पद्धति की तरफ तेजी से बढ़ेंगे।
चीन, महाराष्ट्र व गुजरात में देखी तकनीक
महाराष्ट्र, गुजरात व चीन में इस तरह की खेती होती है। मोहम्मदपुर के किसान मोहनसिंह सिसोदिया बताते हैं कि जिला मुख्यालय पर 16 जून के किसान सम्मेलन के कृषि तकनीकी प्रशिक्षण कार्यक्रम में जानकारी मिली थी। 2021 में राजकोट गुजरात में 15 किसानों के दल ने यह तकनीक देखी थी। वहां 50 फीसदी रकबे में सघन कपास की बुवाई कर रहे हैं। लगभग 17.86 क्विंटल उत्पादकता देखी। चीन में भी ऐसी बुआई पर वहां कपास की सर्वाधिक कपास उत्पादकता है। प्रति एकड़ 12 हजार पौधे पर 4.80 लाख डेंडू (प्रति पौधा 40 डेंडू) लगते हैं। 4 लाख डेंडू पर 16 क्विंटल उत्पादन होता है।
निगरानी क्षेत्र के 50 से ज्यादा गांवों में शुरुआत
खरगोन जिले में बैजापुरा, मोहम्मदपुर, डाभिया, रसगांगली, मोंगरगांव, सिपटान, लाखी, गोवाडी, बिलखेड़, सुरपाला सहित 50 से ज्यादा गांव में नवाचार किया गया है। कृषि विभाग किसानों के साथ निगरानी कर रहा है। प्लांट ग्रोथ रेगुलेटर (पीजीआर) की जा रही है।
जानिए, क्या है सघन कपास उत्पादकता
कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक काम फैलाव व ऊंचाई वाली वैरायटी के ज्यादा मात्रा में पौधों की बुवाई होती है। जिले में कतार की दूरी 90 सेमी व पौधे की दूरी 20 सेमी रखकर बुवाई की गई हैं। एक एकड़ में लगभग 14 हजार पौधे लगते हैं। 45, 65 व 85 दिन की फसल में प्लांट ग्रोथ रेगुलेटर (पीजीआर) करते हैं, जिससे अच्छी बढ़वार व फ्लोरिंग होती है। क्षेत्र में तीन दशक पहले तक खंडवा-2 व लाल काड़ी का कपास ऐसे ही बोया जाता रहा है। तब मुश्किल से दो-तीन क्विंटल प्रति एकड़ उत्पादकता होती थी।
चार क्विंटल तक बढ़ती है उत्पादकता कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि वैज्ञानिक डा. जीएस कुलमी का कहना है कि कपास की हाई डेंसिटी प्रोडक्शन (एसडीपी) खेती महाराष्ट्र व गुजरात में भी होती है, वहां 16-23 क्विंटल प्रति एकड़ तक उत्पादन मिल रहा है। इसमें प्रति एकड़ चार पैकेट बीज लगता है, जबकि उत्पादकता 4 क्विंटल तक बढ़ जाती है। अभी 12 से 16 क्विंटल प्रति एकड़ उत्पादकता है।
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