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भूख-प्यास याद ही नहीं रही लक्ष्य सिर्फ कारगिल विजय था

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मंदसौर। पाकिस्तान की धोखेबाजी से शुरू हुई कारगिल की लड़ाई 40 दिन तक चली थी। पाकिस्तान ने भारत की जमीन पर कब्जा कर लिया था। पाकिस्तानी सैनिकों के साथ आतंकवादी बंकरों में बैठ गए थे। भारतीय सेना ने अदम्य साहस से दुश्मनों को आज ही के दिन धूल चटाई थी और कारगिल पर तिरंगा लहराया था।

आस-पास से निकल रही थी गोलियां

इस युद्ध में मंदसौर के चंद्रभानसिंह चुंडावत भी लड़े थे। भूतपूर्व सैनिक चुंडवत उस समय नायक की पोस्ट पर राजपुताना राइफल में थे। वे युद्ध की कहानी ऐसे बताते है जैसे आज-कल की ही बात हो। दुश्मन की गोलियों की बीच भारत की सेना डटी रही, मेरे भी आस-पास से गोलियां निकल रही थी, हमारे कुछ अफसर और सैनिक बलिदान हो गए।

टाइगर हिल से दुश्मनों को खदेड़ दिया

जब लड़ाई चल रही थी, तब न तो भूख लग रही थी न ही प्यास का ख्याल था, बस कारगिल विजय का लक्ष्य ही दिख रहा था। 40 दिन चले युद्ध के बाद 26 जुलाई को हमारी जीत हुई। चुंडावत बताते हैं कि मैं उस समय कुपवाड़ा सेक्टर में रिजर्व बटालियन में था। 27 जून 1999 को हम कारगिल पहुंचे। गोरखा रेजिमेंट के एक अधिकारी व उनके साथ जो सैनिक थे वे बलिदान हो गए थे।

हमारी बटालियन वहां पहुंची, दुश्मन सियाचीन के रोड को घेरकर बैठे थे। हमने टाइगर हिल और 3552 पोर्ट पर हमला किया और दुश्मनों को खदेड़ दिया। इस दौरान हमारे 4 आफिसर, 4 जूनियर रेंक के आफिसर शहीद हो गए और 36 अन्य जवान भी घायल हुए थे।

सब कुछ भूलकर सिर्फ मिशन याद था

जंग छिड़ने के शुरूआती तीन-चार दिन तो कुछ भी पता नहीं रहा। खाना-पीना भूलकर हम मिशन पर डटे रहे। चारों तरफ से गोलियां बरस रही थीं। उस समय न खुद का ध्यान था और न ही परिवार की याद आई। सिर्फ भारत माता की रक्षा करना है, यह लक्ष्य याद था। भारतीय सेना साहस के साथ लड़ी और 26 जुलाई 1999 को पाकिस्तान को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया।

विशेष सेवा पदक सहित कई अवार्ड मिले

कारगिल युद्ध लड़ने वाले सैनिक चंद्रभानसिंह चुंडावत को भारत सरकार द्वारा कारगिल युद्ध के लिए विशेष सेवा मेडल दिया गया। इसके साथ ही उन्हें नो अवार्ड मिले है। चुंडावत 31 मार्च 2006 को रिटायर्ड हुए थे। वर्तमान में वे भारतीय स्टेट बैंक मुख्य शाखा मंदसौर में सुरक्षा गार्ड हैं। वे 1989 में भारतीय सेना में शामिल हुए थे।

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