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बाजार को तबाह कर सकता है गिरता रुपया, हो सकते हैं ये 5 बड़े नुकसान

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ग्लोबल टेंशन और अमेरिकी टैरिफ का असर भारतीय रुपये के कमजोर करता जा रहा है. अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया ऑल-टाइम लो पर पहुंच गया है. सोमवार को रुपया 88.33 पर पहुंच गया जो कि बीते शुक्रवार के 88.30 रुपये से भी ज्यादा है. रुपये का गिरना देश की इकोनॉमी को आने वाले समय में काफी डेंट पहुंचा सकता है. आइए समझते हैं कि इससे देश को 5 बड़े नुकसान क्या हो सकते हैं.

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जब से भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाया है. तभी से इंडियन करेंसी की चाल बदल गई है. यूं कहें कि रुपये के बुरे दिन आ गए हैं तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी. आंकड़े बता रहे हैं कि भारतीय करेंसी अपने सबसे बुरे वक्त से गुजर रही है. इसके गिरने के पीछे का प्रमुख कारण टैरिफ तो है ही इसके अलावा, आयातकों की ओर से लगातार हेजिंग मांग और डेट व इक्विटी दोनों से एफपीआई की सेलिंग ने दबाव बढ़ा दिया है.

एक्सपर्ट का कहना है कि जीएसटी काउंसिल के आगामी फैसले से कुछ राहत मिल सकती है. वहीं, कोटक सिक्योरिटीज के मुद्रा एवं कमोडिटी अनुसंधान प्रमुख अनिद्य बनर्जी ने कहा कि अगर हाजिर ब्याज दर 88.50 के करीब पहुंचती है, तो आरबीआई के हस्तक्षेप की उम्मीद है. अगर अमेरिकी टैरिफ वापस नहीं लिया गया तो समस्या बढ़ सकती है देश को तगड़ा नुकसान झेलना पड़ सकता है.

रुपये के कमजोर होने के नुकसान

किसी भी देश की करेंसी अगर कमजोर होती है तो उसका व्यापार करना महंगा हो जाता है. इंटरनेशनल मार्केट में चीजों के दाम बेशक कम हो जाएं लेकिन उस देश के लिए वह बढ़िया खबर नहीं मानी जाती है. कुछ ऐसा भी अभी फिलहाल भारत के साथ भी है. अगर रुपये में गिरावट बरकरार रही तो बाजार को तगड़ा डेंट लग सकता है.

  1. महंगाई- भारत कच्चे तेल जैसी प्रमुख वस्तुओं का आयात करता है, इसलिए कमजोर रुपया इन आयातों को और महंगा बना देता है, जिससे ईंधन की कीमतें बढ़ जाती हैं और परिवहन व अन्य वस्तुओं की लागत बढ़ जाती है. रुपये के कमजोर होने का सीधा असर महंगाई पर पड़ेगा. इससे हाई इंफ्लेशन का खतरा गहराता जाता है.
  2. हाई इंपोर्ट कॉस्ट-रुपये के कमजोर होने से व्यवसायों और ग्राहकों को इलेक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी और कच्चे माल जैसी आयातित चीजों की बढ़ी हुई कीमत चुकानी पड़ती है. इससे कंपनियों का मुनाफा कम हो सकता है और ग्राहकों की खरीदने की ताकत घट सकती है.
  3. ट्रेड डेफिसिट बढ़ना- कमजोर रुपया आयात को और महंगा बना देता है और अगर आयात की मांग ज्यादा बनी रही, तो देश का ट्रेड डेफिसिट बढ़ सकता है. इससे रुपये पर और दबाव बढ़ने का खतरा रहता है.
  4. फॉरेन इन्वेस्टमेंट का निकलना- गिरता रुपया अक्सर इस बात का संकेत देता है कि विदेशी निवेशक भारतीय शेयर और बॉन्ड मार्केट से पैसा निकाल रहे हैं. इससे रुपया और बाजार दोनों पर दबाव बढ़ जाता है.
  5. बढ़ता कॉर्पोरेट ऋण- अगर रुपया कमजोर होता है तो जिन भारतीय कंपनियों ने विदेशी मुद्रा में कर्ज लिया है, उन्हें चुकाने के लिए ज्यादा रुपये देने पड़ते हैं. इससे उनकी फाइनेंशियल स्थिति और मुनाफा दोनों पर असर पड़ता है, और शेयर की वैल्यू भी गिर सकती है.

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