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कभी पराया नहीं लगा बांग्लादेश, पुलिस से लेकर लोगों तक ने की ऐसी मदद; वतन वापसी के बाद रांची के परिवार ने बताए वहां के हालात

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बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन को लेकर जारी हिंसा के बीच वहां रहने वाले भारतीय वापस अपने वतन लौट रहे हैं. जो लोग वहां फंसे हैं उनके परिजन लगातार फोन और विभिन्न माध्यमों से उनकी पल पल की खबर ले रहे हैं. वह उनके वतन वापसी को लेकर केंद्र सरकार से गुहार लगा रहे हैं. झारखण्ड की राजधानी रांची के पहाड़ी मंदिर के समीप रहने वाले सुरेश चौधरी और उनका परिवार भी इन्हीं हालातों से गुजरा. सरकार से गुहार लगाने के बाद बांग्लादेश में फंसा उनके बेटे का परिवार सकुशल वापस अपने वतन लौट आया.

सुरेश चौधरी के बेटे मनीष चौधरी एक प्राइवेट कंपनी में बतौर इंजीनियर कार्यरत है, जिसका प्रोजेक्ट बांग्लादेश में चल रहा है. मनीष पिछले लगभग 2 साल से वहां रह रहे थे, जबकि उनकी पत्नी और दो बच्चों को बंगलादेश गए लगभग एक साल हुए था. वह सभी बांग्लादेश के रांगपुर शहर में रह रहे थे. हिंसा के दौरान उनका परिवार वहां फंस गया. वापस वतन लौटने पर उन्होंने बांग्लादेश हिंसा के बीच गुजरे हुए दिनों के बारे में बताया.

8 दिन तक घर में कैद रहा पूरा परिवार

बांग्लादेश के रांगपुर एमआई से वतन वापस कर अपनी मातृभूमि रांची पहुंचे हिंसा बढ़ने के बाद वहां कर्फ्यू लगाया गया था. लोकल अथॉरिटी और हमारी कंपनी के द्वारा भी हमें यह साफ-साफ निर्देशित था कि हमें अपने घर से बाहर बेवजह नहीं निकलना है. उनका पूरा परिवार करीब आठ दिनों तक रंगपुर स्थित घर में कैद रहा. वह कहते हैं कि उनके पड़ोसी बहुत अच्छे थे और वहां का माहौल भी शांत था. बाबजूद इसके उनका परिवार डर के साए में जी रहा था. मनीष कहते हैं कि वहां के प्रशासन के द्वारा उन लोगों को सुरक्षा के साथ-साथ अन्य सहायता मुहैया कराई जा रही थी. लेकिन बांग्लादेश में हिंदुओं के प्रति उपजी अराजक स्थिति के कारण मन में डर समाया हुआ था.

कर्फ्यू के बीच मिलती थी ढील

हालांकि मनीष चौधरी का परिवार जिस शहर रंगपुर में रह रहा था वहां की स्थिति बांग्लादेश की अन्य शहरों के मुकाबले सामान्य थी. कर्फ्यू के बीच में लोगों को समय-समय पर छूट दिया जाता था, जिस दौरान वे लोग मार्केट अपनी जरूरी सामानों को खरीदने के लिए जाते थे. इस स्थिति के बाद मनीष चौधरी और उनके परिवार लगातार भारतीय दूतावास और झारखंड सरकार के साथ संपर्क में थे. समय-समय पर अधिकारियों के द्वारा उन लोगों से बात कर वहां की वस्तु स्थिति की जानकारी ली जाती थी. इसी बीच मनीष चौधरी और उनका परिवार बांग्लादेश से कोलकाता और फिर वहां से अपने शहर रांची पहुंचा.

लोग बहुत अच्छे, नहीं लगा पराए जैसा

मनीष चौधरी ने कहा कि न्यूज चैनल और सोशल मीडिया के माध्यम से जब बांग्लादेश के दूसरे शहरों की स्थितियों को जाना, तब मन में डर समा गया. क्योंकि मेरे साथ पत्नी और दो छोटे-छोटे बच्चे भी हैं. उनकी पत्नी ने बताया कि उनका वहां के मुस्लिम समाज की महिलाओं से भी मित्रता थी. वह कहती हैं कि उन लोगों को कभी लगा ही नहीं कि वे लोग पराए देश में है. उन्होंने बताया कि उन लोगों का सारा सामान बांग्लादेश के रंगपुर शहर स्थित उनके घर मे ही है, जिसे छोड़ कर वे लोग यहां लौटे हैं. वह कहती हैं कि स्थिति सामान्य होने पर और अगर कंपनी दोबारा उन्हें बांग्लादेश के प्रोजेक्ट के लिए भेजती है तो वे लोग बांग्लादेश जरूर लौटेंगे.

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