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वायनाड लैंडस्लाइड को ‘राष्ट्रीय आपदा’ घोषित किए जाने की मांग, कब-कब दिया जाता है ये टैग, इससे फायदा क्या होगा?

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केरल में भारी बारिश के बाद हुए भूस्खलन के कारण 300 से ज्यादा लोगों की जान चली गई है. शनिवार (10 अगस्त) को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वायनाड के लैंडस्लाइड प्रभावित इलाकों का दौरा किया था. शाम को बैठक में पीएम ने कहा कि ये त्रासदी सामान्य नहीं हैं. सैकड़ों परिवारों के सपने उजड़ गए. इस बीच वायनाड त्रासदी को नेशनल डिजास्टर घोषित करने की मांग फिर उठी है. नेता प्रतिपक्ष और वायनाड के पूर्व सांसद राहुल गांधी ने भी यह मांग दोहराई है. आइए जानते हैं कि किसी आपदा को राष्ट्रीय आपदा कब-कब घोषित किया जाता है और इससे फायदा क्या होगा.

प्रधानमंत्री के वायनाड दौरे से एक दिन पहले शुक्रवार (9 अगस्त) को केरल सरकार ने वायनाड त्रासदी को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की मांग की थी. इसके अलावा राहुल गांधी ने वायनाड दौरे को लेकर PM मोदी को धन्यवाद करने के साथ-साथ X पर लिखा, ‘मुझे भरोसा है कि जब प्रधानमंत्री लैंडस्लाइड से हुई तबाही खुद देखेंगे, तो वह इसे राष्ट्रीय आपदा घोषित कर देंगे.’ राहुल गांधी संसद में भी वायनाड लैंडस्लाइड को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की मांग कर चुके हैं.

वायनाड त्रासदी को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने में क्या अड़चन है?

आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 में ‘डिजास्टर’ को किसी भी क्षेत्र में आपदा, दुर्घटना या गंभीर घटना के रूप में परिभाषित किया गया है, जो नेचुरल या मैन-मेड कारणों से या दुर्घटना या लापरवाही से उत्पन्न हुई है. मानव निर्मित आपदा परमाणु, जैविक और रासायनिक हो सकती है. वहीं, प्राकृतिक आपदा में भूकंप, बाढ़, भूस्खलन, चक्रवात, सुनामी, शहरी बाढ़, लू शामिल हैं.

वायनाड त्रासदी को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने में सबसे बड़ी चुनौती है कि किसी भी गाइडलाइन में ‘प्राकृतिक आपदा’ को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने का कोई प्रावधान नहीं है. यह मुद्दा साल 2013 में उठा था, जब कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन UPA की सरकार थी. तब विपक्ष ने एक प्राकृतिक आपदा को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की मांग की थी. उस पर तत्कालीन गृह राज्यमंत्री मुल्लापल्ली रामचंद्रन ने संसद में पूछे गए सवाल पर जवाब में कहा कि सरकार के दिशानिर्देशों के तहत प्राकृतिक आपदा को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने का कोई नियम नहीं है.

हालांकि, केंद्र सरकार मामले दर मामले के आधार पर आपदा की प्रकृति, त्रासदी से निपटने में राज्य की क्षमता और राहत मदद का स्तर जैसे फैक्टर्स को ध्यान में रखकर किसी घटना को ‘सीवियर नेचर’ वाली आपदा घोषित कर सकती है. जैसे 2013 में केदारनाथ में आई बाढ़ को उसकी तीव्रता और परिमाण के आधार पर गंभीर स्वरूप वाली आपदा घोषित किया था.

‘राष्ट्रीय आपदा’ घोषित होने से क्या फायदा मिलता है?

तत्कालीन गृह राज्यमंत्री मुल्लापल्ली रामचंद्रन ने 2013 में अपने जवाब में कहा था कि प्राकृतिक आपदाओं के मामले में बचाव और राहत के लिए संबंधित राज्य सरकार मुख्य रूप से जिम्मेदार होती है. इसके लिए स्टेट डिजास्टर रेस्पॉन्स फंड (SDRF) भी बनाया गया है. आपदाओं में पीड़ितों को राहत पहुंचाने के लिए राज्य सरकार इस फंड का इस्तेमाल कर सकती हैं.

अगर केंद्र सरकार को आपदा ‘सीवियर नेचर’ की लगती है तो उसकी ओर से नैशनल डिजास्टर रेस्पॉन्स फंड (NDRF) से फंड दिया जाता है. इसके अलावा केंद्र और राज्य के बीच 3:1 के योगदान पर एक आपदा राहत कोष (CRF) भी बनाया जाता है. रिपोर्ट के मुताबिक, अगर यह फंड भी काफी नहीं रहता तो राष्ट्रीय आपदा आकस्मिक निधि (NCCF) से भी अतिरिक्त मदद पर विचार किया जाता है, जो पूरी तरह से केंद्र सरकार की तरफ से दी जाती है.

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