समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने लखनऊ के बजाय दिल्ली का सियासी अखाड़ा भले ही अपने लिए चुन लिया हो, लेकिन फोकस उत्तर प्रदेश के समीकरण को साधने का है. यूपी में 37 लोकसभा सीटों के साथ सपा के सबसे बड़ी पार्टी बनने के बाद अखिलेश अब अपने मुस्लिम वोटबैंक को लेकर किसी तरह का कोई रिस्क लेने के मूड में नहीं है. मोदी सरकार के द्वारा वक्फ एक्ट में बदलाव के लिए गए विधेयक पर अखिलेश यादव ने जिस तरह के तेवर संसद में दिखाए हैं, वह मुसलमानों से जुड़े किसी मुद्दों पर पहली बार नजर आया है.
अखिलेश यादव ने वक्फ संशोधन विधेयक का सिर्फ विरोध ही नहीं किया बल्कि वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों को शामिल करने और जिलाअधिकारी को पावर देने पर भी सवाल खड़े किए हैं. इतना ही नहीं अखिलेश ने कहा कि सरकार विधेयक के जरिए मुसलमानों के मामले में हस्ताक्षेप करना चाहती है. मुस्लिमों से जुड़े मुद्दे पर अखिलेश पहली बार अपने पिता मुलायम सिंह यादव की तरह खुलकर स्टैंड लेते नजर आए हैं. इसीलिए कहा जा रहा है कि वक्फ बोर्ड के बहाने अखिलेश ने बड़ा सियासी दांव चला है, जिसके एजेंडे में मुस्लिम वोटबैंक है.
मुलायम का M-Y समीकरण
सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव अपने इसी तेवर और मुस्लिम सियासत के जरिए उत्तर प्रदेश के मुसलमानों के बीच मजबूत पकड़ बनाए रखने में कामयाब रहे. सीएम रहते हुए मुलायम सिंह यादव ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद को बचाने के लिए कारसेवकों पर गोली चलवा दी थी. इस स्टैंड से मुल्ला मुलायम तक कहा जाने लगा. मुलायम ने 90 के दशक में जनता दल से अलग समाजवादी पार्टी का गठन किया था, जिसके बाद उनका सियासी आधार मुस्लिम और यादव बने. एमवाई समीकरण के चलते मुलायम सिंह यादव तीन बार यूपी के मुख्यमंत्री बने और एक बार अखिलेश यादव यूपी की सत्ता पर विराजमान हुए.
मुस्लिमों के मुद्दे पर अखिलेश नहीं रहे मुखर
अखिलेश यादव को भले ही विरासत में सियासत मिली हो, लेकिन वो अपनी छवि को मुलायम सिंह से अलग बनाने में जुटे थे. इसके चलते ही अखिलेश मुस्लिमों से जुड़े मुद्दे पर मुखर होते हैं लेकिन बहुत ज्यादा मुखर नहीं रहते हैं. वो सपा के कद्दावर मुस्लिम चेहरा रहे आजम खान पर खुलकर स्टैंड नहीं लेते रहे हैं. पिछले दस सालों में मुसलमानों से जुड़े कई ऐसे मामले सामने आए, लेकिन अखिलेश यादव खुलकर सामने नहीं आ सके. सीएए और एनआरसी का मुद्दा रहा हो या फिर मुस्लिमों के घर पर चले बुलडोजर का. इसके बाद भी मुस्लिमों का वोट सपा को एकमुश्त मिलता रहा है.
सपा को मिला मुस्लिमों का साथ
2022 यूपी विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव में मुसलमानों का 85 फीसदी वोट सपा को मिला है. इसके चलते ही विधानसभा में सपा की ताकत बढ़ी है और लोकसभा में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई है. यूपी के सियासी इतिहास में मुस्लिमों ने इतनी भारी मात्रा में किसी भी दल को वोट नहीं दिया. ऐसे में मोदी सरकार वक्फ एक्ट में बदलाव के लिए कदम उठा रही है तो अखिलेश अपने पिता मुलायम सिंह के सियासी नक्शेकदम पर चलते नजर आ रहे हैं. वक्फ बिल पर अखिलेश यादव ने खुलकर मुसलमानों के साथ खड़े होकर सियासी संदेश देने की कवायद की है.
अखिलेश यादव ने वक्फ बिल पर क्या कहा
लोकसभा में वक्फ विधेयक बिल पर चर्चा के दौरान अखिलेश यादव ने कहा कि यह बिल बहुत सोची समझी रणनीति के तहत लाया जा रहा है. इस विधेयक के जरिए सरकार मुस्लिमों के धर्म मामलों में हस्तक्षेप करना चाहती है, इस विधेयक के तहत वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम को शामिल करने की कोशिश है, जिसका कोई औचित्य नहीं है. उन्होंने कहा कि इतिहास के पन्नों को अगर हम पलटते हैं तो देखेंगे कि यूपी के एक जिलाधिकारी को इतना अधिकार दे दिया गया, जिसकी वजह से आने वाली पीढ़ी को भी भुगतना पड़ा. मैं सदन में उन जिलाधिकारी का नाम नहीं लेना चाहता हूं.’ साथ ही अखिलेश ने कहा कि इस विधेयक के पीछे सच्चाई यह है कि, बीजेपी अपने हताश, निराश चंद कट्टर समर्थकों के तुष्टीकरण के लिए ये विधेयक लाई है.
अखिलेश कर रहे वक्फ बिल का विरोध
वक्फ विधेयक के लोकसभा में पेश होने से पहले ही अखिलेश यादव ने अपने मुस्लिम सांसदों के साथ फोटो शेयर करके साफ कर दिया था कि वक्फ बिल का खुलकर विरोध करेंगे. उन्होंने कहा कि वक्फ बोर्ड का संशोधन बस एक बहाना है, रक्षा, रेल, नज़ूल लैंड की तरह जमीन बेचना निशाना है. वक़्फ बोर्ड की जमीनें, डिफ़ेंस लैंड, रेल लैंड, नज़ूल लैंड के बाद ‘भाजपाइयों के लाभार्थ योजना’ की शृंखला की एक और कड़ी मात्र हैं. बीजेपी क्यों नहीं खुलकर लिख देती, ‘भाजपाई-हित में जारी’. अखिलेश यादव ने आगे कहा उन्हें इस बात की लिखकर गारंटी दी जाए कि वक़्फ बोर्ड की जमीनें बेची नहीं जाएंगी. बीजेपी रियल स्टेट कंपनी की तरह काम कर रही है. उसे अपने नाम में ‘जनता’ के स्थान पर ‘ज़मीन’ लिखकर नया नामकरण कर देना चाहिए. भारतीय जमीन पार्टी.
अखिलेश यादव की रणनीति
अखिलेश यादव वक्फ के बहाने मुसलमानों के साथ ऐसी ही नहीं खड़े बल्कि सपा की सियासी मजबूरी भी है. उत्तर प्रदेश में 22 फीसदी के करीब मुस्लिम है. ऐसे में मुस्लिम मतदाता अगर सपा से छिटका तो अखिलेश यादव के भविष्य की राजनीति के लिए सियासी संकट खड़ा हो सकता है. इसकी वजह यह है कि सपा का सियासी आधार मुस्लिम वोटों पर टिका है और अगर यह वोट छिटकर बसपा या फिर किसी मुस्लिम पार्टी के साथ जाता है तो निश्चित तौर पर अखिलेश की टेंशन बढ़ सकती है. कांग्रेस भी मुसलमानों को साधने की कवायद में है. सपा का मिला वोट शेयर देखें तो आधे से ज्यादा वोट सिर्फ मुस्लिमों के हैं. इसीलिए अखिलेश यादव को मुस्लिमों को साधे रखना मजबूरी बन गया है.
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