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कार से 440 किलोमीटर का सफर करके बेहद दुर्लभ समूह का खून देने आया महाराष्ट्र का फूल कारोबारी

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महाराष्ट्र के शिरडी के एक फूल कारोबारी ने कार से करीब 440 किलोमीटर का सफर किया और दुर्लभतम ‘‘बॉम्बे” समूह का रक्तदान करके 30 वर्षीय महिला मरीज की जान बचाने में मदद की। अधिकारियों ने मंगलवार को यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि शिरडी में फूलों का थोक कारोबार करने वाले रवींद्र अष्टेकर शनिवार (25 मई) को इंदौर पहुंचे और एक स्थानीय अस्पताल में गंभीर हालत में भर्ती महिला के लिए ‘‘बॉम्बे” समूह का रक्तदान किया।

अष्टेकर ने बताया, ‘‘जब मुझे वॉट्सऐप पर रक्तदाताओं के एक समूह के जरिये इस महिला की गंभीर स्थिति के बारे में पता चला तो मैं अपने एक दोस्त की कार से करीब 440 किलोमीटर का सफर तय करके इंदौर पहुंचा। मुझे जाहिर तौर पर अच्छा महसूस हो रहा है क्योंकि मैं महिला की जान बचाने में अपनी ओर से कुछ योगदान कर सका।”

उन्होंने बताया कि वह पिछले 10 साल के दौरान अपने गृहराज्य महाराष्ट्र के साथ ही गुजरात, उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश के अलग-अलग शहरों में पहुंचकर जरूरतमंद मरीजों के लिए आठ बार रक्तदान कर चुके हैं। इंदौर की सामाजिक संस्था ‘दामोदर युवा संगठन’ के ब्लड कॉल सेंटर के प्रमुख अशोक नायक ने महिला मरीज के लिए दुर्लभतम ‘‘बॉम्बे” समूह का रक्त जुटाने में मदद की। उन्होंने बताया कि महिला के लिए इस समूह के रक्त की दो इकाइयां नागपुर से हवाई मार्ग के जरिये इंदौर मंगाई गईं, जबकि मरीज की बहन ने इंदौर में इसकी एक इकाई का रक्तदान किया।

इंदौर के शासकीय महाराजा यशवंतराव चिकित्सालय (एमवायएच) के ‘ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन’ विभाग के प्रमुख डॉ. अशोक यादव ने बताया कि एक अन्य अस्पताल में प्रसूति संबंधी रोग के ऑपरेशन के दौरान महिला को गलती से ‘‘ओ” पॉजिटिव समूह का खून चढ़ा दिया गया था जिससे उसकी हालत बिगड़ गई और किडनी को भी नुकसान पहुंचा। उन्होंने बताया, ‘‘हालत बिगड़ने पर महिला को जब इंदौर के रॉबर्ट्स नर्सिंग होम भेजा गया, तब उसका हीमोग्लोबिन स्तर गिरकर चार ग्राम प्रति डेसीलीटर के आस-पास पहुंच गया था, जबकि एक स्वस्थ महिला का हीमोग्लोबिन स्तर 12 से 15 ग्राम प्रति डेसीलीटर होना चाहिए।”

यादव ने बताया कि ‘‘बॉम्बे” समूह का चार इकाई रक्त चढ़ाए जाने के बाद महिला की हालत पहले से बेहतर है। उन्होंने कहा कि अगर महिला को इस दुर्लभ समूह का रक्त समय पर नहीं चढ़ाया जाता, तो उसकी जान को निश्चित तौर पर खतरा हो सकता था। “बॉम्बे” रक्त समूह की खोज वर्ष 1952 में हुई थी। इस बेहद दुर्लभ रक्त समूह के लोगों को केवल इसी समूह के व्यक्ति खून दे सकते हैं।

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