पिछले तीन सालों से राजधानी भोपाल में टीबी के सबसे ज्यादा मरीज मिल रहे हैं। इसकी बड़ी वजह यह है कि भोपाल में दूसरे जिलों के लोग भी जांच कराने के लिए आते हैं। दूसरी बात यह है कि टीबी के नए मरीजों की पहचान के लिए जांचें अन्य जिलों के मुकाबले ज्यादा की जाती हैं। अनुमान के अनुसार प्रति लाख आबादी पर टीबी के 216 मरीज होते हैं, लेकिन हकीकत इससे दोगुने मरीज मिल रहे हैं। ऐसे में साफ है कि कई जिलों में जांचों की संख्या कम होने की वजह से नए मरीजों की पहचान नहीं हो पा रही है।
क्षय रोग विशेषज्ञ डॉ मनोज वर्मा की माने तो उन्होंने कहा कि पहले जांच का दायरा बहुत कम था। अब जांच का दायरा बढ़ा है तो क्षय रोगियों की संख्या भी बढ़ी है। पहले भी ये बीमारी होती थी लेकिन उनकी सही जांच नहीं होने से पता नहीं चल पाता है।
डॉ वर्मा ने कहा कि अब नई तकनीकि आने से इलाज भी आसान हुआ है। स्मोकिंग करने वाले खदान पर काम करने वाले मजदूर शुगर रोगी या जिनको 2 हफ्ते से ज्यादा खांसी है। उनकी भी जांच की जा रही है।
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