इंदौर। तेज गर्मी के मौसम में इंदौर में चुनावी समर ठंडा पड़ा है। यहां न नेताओं में और न ही मतदाताओं में, चुनाव को लेकर उत्साह है। न मुद्दे हैं और न माहौल है, न आरोप हैं, न प्रत्यारोप। ऐसा इसलिए भी है, क्योंकि परिणाम का संकेत सबको है। एक दल पहले ही बहुत ज्यादा प्रभावी है और दूसरा मैदान में भी नहीं है। मध्य प्रदेश की भौगोलिक स्थिति में मालवा-निमाड़ और इसमें इंदौर का विशेष राजनीतिक महत्व है। इंदौर लोकसभा सीट दशकों से मतों के लिहाज से कांग्रेस के लिए कभी उर्वरा नहीं रही। बीते नौ लोकसभा चुनाव से यहां कमल खिल रहा है, फिर भी कांग्रेस चुनौती देते हुए मैदान में नजर आती थी।
मगर इस बार कांग्रेस का कोई प्रत्याशी नहीं है। पार्टी ने अक्षय बम को टिकट दिया था, लेकिन वह भाजपा में शामिल हो गए। इस घटना ने इंदौर में तो कांग्रेस को मैदान के बाहर किया ही, देशभर में पार्टी के बिखरने की गूंज सुनाई दी।
जितने दिन वह प्रत्याशी रहे, तब भी कोई राजनीतिक प्रहार उन्होंने या कांग्रेस के किसी नेता ने भाजपा प्रत्याशी पर नहीं किया। अब तो इंदौर के हालात ऐसे हैं कि कांग्रेस के निशाने पर भाजपा प्रत्याशी शंकर लालवानी के बजाए अपने ही पूर्व नेता अक्षय बम हैं। स्थानीय मुद्दों की बात कोई नहीं कर रहा।
कांग्रेस में इस कदर हताशा का भाव है कि शहर के नगर निगम में हुए बड़े घोटाले के खिलाफ भी बड़ा प्रदर्शन पार्टी नहीं कर सकी। भाजपा का विरोध तो छोड़िए, प्रत्याशी विहीन होने के बाद कांग्रेस ‘नोटा’ को प्रचारित करने का जो अभियान चला रही है, उसमें भी बड़े नेता नजर नहीं आते। दूसरी ओर भाजपा प्रत्याशी शंकर लालवानी भी प्रचार में बेमन से घूमते दिखते हैं।
प्रभावी वक्ता की उनकी छवि कभी नहीं रही, लेकिन रैली भी पहले सी भीड़ भी नहीं दिखती। बतौर सांसद पांच साल बिता चुके हैं, लेकिन अपने सांसद के कार्यों के लिए पीठ थपथपाने से ज्यादा वोट भाजपा पीएम मोदी के नाम पर मांग रही है।
उत्साह का अभाव मतदाता और प्रत्याशी तक ही सीमित नहीं है बल्कि दोनों दलों में भी नजर आता है। विधानसभा चुनाव में जहां पीएम मोदी ने भी इंदौर में रोड शो किया था, अन्य कई बड़े नेता इंदौर आए थे वहीं इस बार किसी बड़े नेता की सभा शहर में नहीं हुई। कांग्रेस के स्थानीय नेता दूसरे शहरों में अपने ‘गुट’ के बड़े नेता के प्रचार में जुटे हैं।
लोकसभा सीट का गणित
इंदौर लोकसभा सीट की परिधि में आठ विधानसभा आती हैं। शहर की पांच विधानसभा क्षेत्रों के अलावा देपालपुर, राऊ और सांवेर सीट इसमें शामिल हैं। कुछ माह पूर्व हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने इन सभी पर बड़े अंतर से जीत दर्ज की थी। इनमें से वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी की राऊ विधानसभा सहित कुछ सीटें पहले कांग्रेस के पास थीं, जिन्हें भाजपा ने अपनी प्रभावी रणनीति से कब्जे में किया।
दूसरा बड़ा बदलाव कांग्रेस नेताओं द्वारा भाजपा में शामिल होना रहा। पार्टी के लोकसभा प्रत्याशी अक्षय बम से पहले पूर्व विधायक संजय शुक्ला, पूर्व विधायक विशाल पटेल, प्रदेश उपाध्यक्ष स्वप्निल कोठारी सहित बड़ी संख्या में कांग्रेस नेताओं ने भाजपा का दामन थामा।
अपणे कई करनो मुद्दा ना से
राजनीतिक मुद्दों पर चर्चा चुनाव के मौसम का प्रिय शगल होता है। मगर शहर के बाजार और बैठक के ठीयों पर फिलहाल राजनीतिक संवाद गायब हैं। बाजारों में लोग अन्य दिनों की तरह अपने व्यापार में व्यस्त नजर आते हैं। सड़कें सूनी हैं और प्रचार सामग्री या प्रचार का शोर सुनाई नहीं देता। इंदौर के प्रमुख व्यापारिक केंद्र राजवाड़ा में एक दुकानदार ललित त्रिवेदी कहते हैं, फुटपाथ पर कब्जे और यातायात शहर की समस्या है। और भी कई मुद्दे हैं, लेकिन कोई बोलने वाला नहीं।
कांग्रेस अपनी ही उलझनों से नहीं निकल पा रही। व्यापारी अपने काम में ध्यान दे रहा है, उसी में भला है। दुकान पर खरीदारी करने पहुंची रेणुका शास्त्री, शारदा शर्मा सहित कुछ महिलाओं से जब चुनाव और मुद्दों पर संवाद किया तो उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा कि राजनीति में दिलचस्पी नहीं।
पूछा कि मतदान तो करतीं होंगी तो मालवी लहजे में कहने लगीं, ‘अपणे कई करनो चुनावी मुद्दा ना से। खाता में हर महीना लाड़ली बहना का रुपया अई जाय बस। जरूरत की खरीदी हम इनाज पैसा से करी लां।‘ इसी तरह छावनी चौराहे पर खरीदारी कर रहे प्रीतेश दवे और पत्नी दीपिका दवे कहते हैं, इंदौर में कोई बड़ा मुद्दा नहीं है। वैसे भी चुनाव एकतरफा है।
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