अभिजीत गंगोपाध्याय: सरेआम इस्तीफे की घोषणा करने वाले कलकत्ता HC के जज किन मामलों में सुनवाई के कारण विवादों में रहे?
देश के सबसे पुराने हाईकोर्ट में से एक कलकत्ता हाईकोर्ट में फिलहाल 51 जज हैं. मुमकिन है कि आपको कलकत्ता हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस का भी नाम न मालूम हो पर समूचे देश में इस अदालत के एक जज चर्चा का विषय बने हुए हैं. हाईकोर्ट की वेबसाइट के मुताबिक सीनियॉरिटी में 23 नंबर के जज अभिजीत गंगोपाध्याय इस साल 19 अगस्त 2024 को 62 बरस की उम्र में रिटायर होने वाले थे.
रिटायरमेंट से साढ़े पांच महीने पहले रविवार, 4 मार्च को एक विस्फोटक इंटरव्यू देकर उन्होंने अदालत से लेकर भारतीय राजनीति तक में हलचल मचा दी. जस्टिस गंगोपाध्याय ने 5 मार्च को अपने पद से इस्तीफा देने की बात की है. एबीपी आनंदा को दिए एक इंटरव्यू में जस्टिस गंगोपाध्याय ने अपनी आत्मा का हवाला देते हुए कहा कि जज के तौर पर मेरा कार्यकाल समाप्त हो गया है और मैं किसी राजनीतिक दल में शामिल हो कर चुनाव लड़ सकता हूं.
कौन हैं जस्टिस गंगोपाध्याय
अगस्त 1962 में कोलकाता में जन्मे अभिजीत गंगोपाध्याय ने कलकत्ता यूनिवर्सिटी के हाजरा लॉ कॉलेज से कानूनी पढ़ाई की. पश्चिम बंगाल सिविल सेवा में में बतौर ए ग्रेड अधिकारी करियर की शुरुआत की. कहते हैं कि बतौर लैंड रेवेन्यू ऑफिसर जब एक भ्रष्टाचार के खिलाफ उन्होंने कार्रवाई की तो उनको जान से मारने की धमकी दी गई.
आखिरकार, अभिजीत गंगोपाध्याय ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और कलकत्ता चले आए. इसके बाद यहां वे वकालत करने लगे और इंश्यूरेंस कंपंनियों से लेकर नियामक तक के कई मुकदमों को लड़ते रहे. 2 मई 2018 को यानी आज से तकरीबन 6 साल पहले कलकत्ता हाईकोर्ट में एडिशनल जज के तौर पर जस्टिस गंगोपाध्याय की नियुक्ति हुई.
तीन साल बाद वे परमानेंट जज नियुक्त हो गए. कलकत्ता हाईकोर्ट में अधिकतम 72 जज हो सकते हैं जिनमें 54 स्थायी और 18 अतिरिक्त जज के तौर पर नियुक्त हो सकते हैं. फिलहाल, कलकत्ता हाईकोर्ट में 41 जज स्थायी तौर पर काम कर रहे हैं. हाईकोर्ट की वेबसाइट के मुताबिक सीनियॉरिटी में जस्टिस गंगोपाध्याय का नाम 23वें नंबर पर है.
मुकदमे जिनके कारण विवादों में रहें
जस्टिस गंगोपाध्याय हाईकोर्ट में बतौर जज नियुक्ति की बाद ही से विवादों में रहें. पश्चिम बंगाल की तृणमूल कांग्रेस की सरकार के खिलाफ आने वाले भष्टाचार के मामलों पर तो उन्होंने जैसे जंग ही छेड़ दी. इसकी सराहना और आलोचना दोनों हुई.
पहला – मेडिकल कॉलेजों में एडिमशन का मामला
हाल के मुकदमों को अगर याद करें तो उन्होंने कलकत्ता हाईकोर्ट में सीनियॉरिटी में 5वें नंबर के जज सौमेन सेन पर एक राजनीतिक दल के लिए काम करने का आरोप लगाया. ये तब हुआ जब जस्टिस सेन की बेंच ने जज गंगोपाध्याय के आदेश पर रोक लगा दी.
ये पूरा मामला पश्चिम बंगाल के मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन से जुडी अनियमितताओं का था. जस्टिस गंगोपाध्याय ने अपने आदेश में पश्चिम बंगाल पुलिस को मामले से जुड़े दस्तावेज सीबीआई को सौंपने का डायरेक्शन दिया था.
बाद में जस्टिस सौमेन सेन की डिविजन बेंच ने जस्टिस गंगोपाध्याय के आदेश पर रोक लगा दी. एक बड़ी पीठ के आदेशों की अनदेखी करते हुए जस्टिस गंगोपाध्याय ने दोबारा कागजात सीबीआई को सौंपने को कह दिया. साथ ही, दलील दी कि उन्हें बताया नहीं गया था कि उनके आदेश पर रोक लगाई जा चुकी है.
सबसे दिलचस्प तो ये हुआ कि जिस याचिका पर जस्टिस गंगोपाध्याय ने फैसला दिया, उसमें कहीं भी सीबीआई जांच के लिए किसी डायरेक्शन की मांग नहीं की गई थी लेकिन जस्टिस गंगोपाध्याय ने सीबीआई की एक एसआईटी से मामले की जांच कराने का आदेश दे दिया. इसको लेकर बहुत विवाद हुआ.
दूसरा – पश्चिम बंगाल स्कूल घोटाला मामला
जस्टिस गंगोपाध्याय ने कई ऐसे ऑर्डर दिए जिसमें पश्चिम बंगाल में कथित स्कूल घोटाले से लेकर और दूसरे मामलों की जांच सीबीआई और ईडी से कराने की बात की गई. सवाल बार-बार उठा कि जब पहले ही से राज्य सरकार की एजेंसी जांच कर रही है तो मामले को केंद्रीय एजेंसी को भेजने की जरुरत ही क्या है?
मिसाल के तौर पर जस्टिस गंगोपाध्याय ने कथित स्कूल घोटाले में 32 हजार शिक्षकों की नियुक्ति पर रोक लगाते हुए इस मामले की सीबीआई जांच का आदेश दे दिया. बाद में डिविजन बेंच ने जरूर फैसले पर रोक लगा दी लेकिन तब तक ये आदेश आम-आवाम में जा चुका था.
जिनकी नौकरी उस बहाली प्रक्रिया में नहीं हुई थी, ऐसे अभ्यर्थियों ने जस्टिस गंगोपाध्याय के आदेश की सराहना की तो उलट टीएमसी से सहानुभूति रखने वालों ने उन्हें भारतीय जनता पार्टी के हिसाब से फैसला करने वाला कहा.
जस्टिस गंगोपाध्याय पर आरोप लगे कि वे न्यायपालिका के मानदंडों का उल्लंघन करते हैं. राजनीतिक मुद्दों या फिर वैसे मामलों पर जो अदालत के सामने विचाराधीन हैं, मीडिया से उनका बात करना भी सुप्रीम कोर्ट को रास नहीं आया था.
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