अयोध्या जाने के लिए मुंडवाया सिर, लाठियां खाई और जेल गए, कारसेवक ने बताया कैसा था श्री राम मंदिर निर्माण संघर्ष
भिंड।आपके जीवन में कुछ घटनाएं ऐसी होती हैं, जिनके आप चश्मदीद गवाह बनते हैं और जो आपके दिल-ओ-दिमाग से कभी हटने का नाम नहीं लेती। 6 दिसंबर, 1992 को दिन दहाड़े अयोध्या में मस्जिद का ढहाया जाना मेरे जीवन की एक ऐसी ही घटना है, जिसें मैं आज तक नहीं भुला सका। मस्जिद का ढांचा ढहने के बाद मची अफरा-तरफ, भीड़ भाड़ में कुचलते लोग, गोलियों की आवाज, चीख-पुकार, आंसू गैस के गोले हर एक मंजर मेरी आंखों के सामने आज दिन तक हैं। इस मंजर को शब्दों में बायां कर पाना हर एक कारसेवक के लिए मुश्किल है।
31 साल पहले अयोध्या में जो घटा उसकी कुछ झलकियां बताते हुए मिहोना में रहने वाले 49 वर्षीय शैलेंद्र सिंह ने यह जानकारी दी। शैलेंद्र सिंह ने बताया कि श्रीराम मंदिर को लेकर छह दिसंबर 1992 में अयोध्या में एक बड़ी जनसभा होने वाली थी। उस समय मेरी उम्र करीब 18 वर्ष रही होगी। मेरे पिता स्व. अरविंद सिंह शासकीय शिक्षक थे। स्वयंसेवक होने के साथ-साथ कवि और साहित्यकार भी थे। संघ परिवार की सीख बचपन से ही मिलना शुरू हो गई थी।
ऐसे पहुंचे थे अयोध्या
शैलेंद्र सिंह बताते हैं कि जैसे ही मुझे पता चला कि अयोध्या में होने वाली सभा में मेरे बड़े भाई अरिदमन सिंह और मेरे चाचा रामेश्वर सिंह जा रहे हैं। वैसे ही मैंने भी चाचा और बड़े भाई से अयोध्या जाने की जिद शुरू कर दी। चार दिसंबर को घर से अयोध्या जाने के लिए बड़े भाई, चाचा के साथ निकला। उत्तरप्रदेश की सीमा में चल रही चेकिंग के चलते मेरे चाचा और भाई एक अलग टोली में हो गए और मैं, भिंड की टोली में शामिल हो गया।
शैलेंद्र सिंह के अनुसार कारसेवकों को रोकने के लिए यूपी की सीमा पर जगह-जगह चेकिंग प्वाइंट लगाए गए थे। बस व निजी वाहनों में बैठे लेागों से पूछताछ की जा रही थी। मिहोना से जलौन यूपी को जोड़ने के लिए अंतियनपुरा पर चेकिंग प्वाइंट लगाया गया था। अयोध्या निकलने से एक दिन पहले मेरे चाचा और बड़े भाई ने मुंडन कराया था। उनका कहना था कि अगर चेकिंग प्वाइंट पर कोई हमसे पूछताछ करेगा तो हम कर्मकांड के लिए प्रयागराज जाने का कह देंगे। ऐसा करके मेरे चाचा और बड़े भाई जालौन होते हुए अयोध्या के लिए निकल गए और मैं, भिंड में एकत्रित हुईं टोलियों के साथ इटावा की ओर बढ़ा।
चंबल नदी के पुल पर बनाई थी दीवार
यूपी में उस समय मुलायम सिंह की सरकार थी। कारसेवकों को रोकने के लिए चंबल नदी के पुल पर दीवार का निर्माण कराया गया था। लेकिन सैंकड़ों की संख्या में मौजूद कारसेवकों ने जय श्री राम का जयकारा लगाते हुए चंबल पुल पर बनी दीवार को ढहा दिया। दीवार ढहने के बाद चेकिंग प्वाइंट पर तैनात पुलिसकर्मियों ने लाठियां बरसाना शुरू कर दीं। आंसू गैस के गोले छोड़े। भगदड़ में कुछ लोग दब गए। लेकिन मैं, पुलिस की पकड़ में आ गया, मुझे पहले इटावा में अस्थाई जेल में रख गया, इसके बाद कानपुर भेज दिया गया।
कानपुर पहुंचने क बाद पांच दिसंबर 1992 को पुलिस ने मेरे साथ अस्थाई जेल में बंद अन्य लोगों को छोड़ दिया। अस्थाई जेल से छोड़ते समय कानपुर के जेलर के द्वारा एक सर्टिफिकेट भी दिया गया।
पलक झपकते ही ढांचा ढह गया
कारसेवक शैलेंद्र सिंह ने बताया कि पांच दिसंबर की शाम मैं, अयोध्या पहुंच गया। अयोध्या में पैर रखने तक की जगह नहीं थी। मुख्य मार्गों से लेकर गली-मोहल्लों में भीड़भाड़ थी। अयोध्या में रहने व खाने की व्यवस्था कारसेवकों के द्वारा की गई थी। इसके बाद आमसभा हुई। इस सभा में भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी सहित अन्य वरिष्ठजन थे। इसके बाद हम श्रीराम मंदिर के दर्शन करने के लिए निकल पड़े।
कारसेवकों में भरपूर उत्साह था। देखते ही देखते कोठारी बंधू मस्जिद के गुबंद पर चढ़ गए। इसके बाद हजारों की संख्या में कारसेवकों ने मस्जिद पर चढ़ना शुरू कर दिया और देखते ही देखते मस्जिद ढह गई। मलबे में हमारे साथ गए हुए मेहगांव के पुत्तू बाबा गुर्जर दब गए। इस वजह से उनकी मौके पर ही मौत हो गई।
मस्जिद ढहने के बाद भगदड़ मच गई, इस वजह से मैं गिर पड़ा। लेकिन वहां पास में ही खड़े एक संत ने मेरा हाथ उठाकर आगे बढ़ा दिया। उस समय आयोध्या में जो भी घटनाएं हुईं, उसकी यादें आज मेरे अंदर जीवंत हैं।
मंदिर बनना सपने जैसा
कारसेवक शैलेंद्र सिंह ने बताया कि 31 साल पहले कारसेवकों ने जिसकी शुरुआत की। उसका नतीजा है कि आज मंदिर का उद्धाटन होने जा रहा है। हम सभी बहुत ही सौभाग्यशाली हैं कि हम अपनी आंखों के सामने इस पल को देख पा रहे हैं। हर एक कारसेवक को पूरा भरोसा था कि एक न एक दिन भव्य श्रीराम मंदिर का निर्माण अवश्य होगा।
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