शादी का सर्टिफिकेट एक कानूनी प्रमाण पत्र है जो अपकी शादी को वैधानिक बनाता है। ये सभी धर्म की शादियों के लिए अनिवार्य है। इसके लिए विवाहित जोड़े को रजिस्ट्रार के सामने अपनी शादी के कुछ प्रमाण और गवाह प्रस्तुत करने होते हैं और रजिस्ट्रार शादी का सर्टिफिकेट बनाकर सौंपता है।चूंकि यह एक कानूनी सर्टिफिकेट है, ऐसे में किसी भी सरकारी व्यवस्था का लाभ लेने के लिए आपके पास अपनी शादी का सर्टिफिकेट होना अनिवार्य है।
कानूनन रूप से शादी के प्रमाण के रूप में शादी पंजीकरण होना जरूरी होता है। जागरूकता के अभाव में लोग इसकी अनदेखी कर रहे हैं। अगर आपने अब तक अपनी शादी का पंजीकरण नहीं कराया है तो निबंधन दफ्तर में पंजीकरण करा लें। एआईजी स्टांप श्याम सिंह बिसेन ने बताया कि शादी के एक साल के अंदर विवाह पंजीकरण कराने पर 10 रुपये शुल्क पड़ता है। एक साल बाद पंजीकरण कराने पर प्रति साल 50 रुपये विलंब शुल्क देना होता है। आइये जानते हैं शादी का सर्टिफिकेट कहां-कहां काम आता है।
जरूरी है विवाह पंजीकरण
- विवाह पंजीकृत होने पर विरासत में मिली संपत्ति का वितरण आसान हो जाता है।
- कई मुकदमे ऐसे हुए, जिनमें पति की मौत की बाद दूसरी महिला पत्नी के रूप में खड़ी होकर संपत्ति पर दावा करने लगी।
- विवाह पंजीकरण बैंक या बीमा का दावा करने में सहायक होता है।
- पति या पत्नी को विदेश ले जाने पर यही प्रमाणपत्र मान्य होता है।
इस तरह करें आवेदन
विवाह पंजीकरण के लिए igrsup.gov.in पर आनलाइन आवेदन करना होता है। इसके बाद निबंधन दफ्तर से मिली तारीख पर वहां जाकर बायोमेट्रिक करानी होती है। आवेदन के साथ विवाह का कार्ड, यह न होने पर हलफनामा, निवास का प्रमाण जैसे आधार कार्ड, पहचान पत्र या बैंक पास बुक की छाया प्रति लगानी होती है।
हिंदू मैरिज एक्ट 1955 के तहत कैसे होगी शादी?
एडवोकेट बताते हैं कि स्पेशल मैरिज एक्ट और हिंदू मैरिज एक्ट में होने वाली शादी के प्रावधान अलग हैं। हिंदू मैरिज एक्ट के तहत होने वाली शादी में पहली शर्त यह है कि कपल हिंदू होने चाहिए। शादी हिंदू रीति रिवाज से होती है। दोनों शादी की योग्यता रखते हैं मसलन पहले से शादीशुदा न हों और दोनों प्रोहिबिटेड रिलेशनशिप में न हों यानी वर्जित संबंध में न हों। साथ ही स्पिंड रिलेशनशिप में भी दोनों नहीं होने चाहिए यानी माता की ओर से तीन पीढ़ी और पिता की ओर से पांच पीढ़ी में शादी वर्जित है और वह शादी अमान्य होती है।
हाई कोर्ट में भारत सरकार के वकील बताते हैं कि शादी के वक्त सप्तपदी की प्रथा होनी चाहिए और साथ ही अग्नि के सात फेरे और सात वचन की अनिवार्यता है। अगर लड़की और लड़के की उम्र 18 साल से कम है और शादी कराई जाती है तो वैसी स्थिति में शादी अमान्य करार दिए जाने योग्य है, हालांकि शादी अमान्य नहीं है। यानी जब कपल बालिग हो जाएं तो कोई भी बालिग होने पर शादी को अमान्य घोषित करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है। अगर बालिग होने के बाद शादी को अमान्य घोषित करने के लिए अर्जी दाखिल नहीं की जाती है तो फिर वह शादी मान्य हो जाती है। हिंदू मैरिज एक्ट की शादी इलाके के मैरिज ऑफिसर के सामने रजिस्टर्ड कराई जाती है। इस दौरान लड़की चाहे तो अपना सरनेम बदलवा सकती है।
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