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चंबल के पानी का बगावती तेवर मध्य प्रदेश की राजनीति में भी दिखाता है असर

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मुरैना। कहते हैं कि चंबल का पानी ही ऐसा है कि मनचाही न हो तो बगावत सामने आ जाती है। इसका असर राजनीति में भी दिखता है। शायद ही कोई ऐसा चुनाव बीतता हो जब दलों को चंबल अंचल की किसी न किसी सीट पर बागी का सामना न करना पड़े। बागी दलों के समीकरण बिगाड़ते रहे हैं। दलबदल भी आम बात है।

कई विधायकों ने बदली पार्टी

मुरैना,भिंड और श्योपुर जिलों के कई विधायक टिकट के लिए कई बार पार्टी बदल चुके हैं। इस बार भी दोनों प्रमुख दलों के सामने बागियों को थामने की चुनौती होगी। इसके संकेत मिलने लगे हैं।

कंषाना दो बार बसपा-दो बार कांग्रेस के विधायक रहे

मुरैना के कद्दावर नेता व ऐंदल सिंह कंषाना दो बार बसपा, दो बार कांग्रेस से विधायक रह लिए। कांग्रेस सरकार में मंत्री भी रहे, कमल नाथ सरकार में मंत्री नहीं बन पाए को भाजपा का दामन थाम लिया। उनके प्रतिद्वंद्वी व सुमावली विधायक अजब सिंह कुशवाह भी बसपा और भाजपा से विधायकी के चुनाव लड़ चुके हैं। 2020 के उपचुनाव में कांग्रेस के टिकट पर उन्हें सफलता मिली।

ऐसे भी उदाहरण

मुरैना के पूर्व विधायक परशुराम मुदगल बसपा से भाजपा, रघुराज कंषाना कांग्रेस से भाजपा, अंबाह के पूर्व विधायक सत्यप्रकाश सखबार कांग्रेस से भाजपा, दिमनी के पूर्व विधायक गिर्राज डण्डोतिया कांग्रेस से भाजपा में आ चुके हैं।

विधायक बनने की आस में दिमनी से बसपा के पूर्व विधायक रहे बलवीर सिंह डण्डोतिया 2020 में कांग्रेस में आए, जहां उन्हें टिकट नहीं मिला तो फिर लौटकर बसपा में चले गए और अब दिमनी से बसपा के प्रत्याशी हैं।

दिमनी के वर्तमान विधायक रविद्र भिड़ोसा पहले बसपा के टिकट पर चुनाव लड़े, फिर भाजपा में गए, आखिर 2020 में कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा पहुंच पाए। इसी तरह सबलगढ़ विधायक बैजनाथ कुशवाह ने पहले बसपा के हाथी पर बैठकर किस्मत आजमाई, फिर कांग्रेस में आए और 2018 में सबलगढ़ से विधायक बन गए।

मुरैना जिले में नेताओं की फेहरिस्‍त लंबी

मुरैना जिले में ऐसे नेताओं की फेहरिस्त लंबी है। आगामी चुनाव में भी भाजपा के पूर्व मंत्री सहित कई नेता ऐसा दलबदल कर न सिर्फ चौका सकते हैं, बल्कि चुनावी गणित पूरी तरह गड़बड़ा सकते हैं। इसकी तैयारियों में कुछ नेता जुटे हैं।

भिंड : हर चुनाव में झंडा बदल देते हैं कई नेता

भिंड के पूर्व विधायक नरेंद्र सिंह कुशवाह का वर्ष 2008 में भाजपा से टिकट कटा तो सपा से चुनाव लड़े। 2013 में फिर भाजपा में आ गए, 2018 में टिकट कटा तो फिर सपा में चले गए, अब 2023 के चुनाव के लिए फिर भाजपा में आ गए।

भाजपा से बगावत कर कुशवाह बसपा में गए

वर्तमान विधायक संजीव कुशवाह भाजपा से बागी होकर बसपा के टिकट पर चुनाव लड़े और जीते, शिवराज सरकार में मंत्री व 2023 के टिकट की चाह में भाजपा में आ गए। वहीं लहार से अंबरीश शर्मा 2003 में भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े। 2018 में भाजपा छोड़कर बसपा से चुनाव लड़े और तीसरे नंबर पर रहे, आगामी चुनाव में भाजपा से टिकट पर मैदान में हैं।

मेहगांव से भाजपा के टिकट पर दो बार विधायक रहे राकेश शुक्ला का पिछले चुनाव में टिकट कटा तो दूसरी पार्टी में चले गए और अब भाजपा में आ गए। मेहगांव के पूर्व विधायक व पूर्मं मंत्री राकेश चौधरी शिवराज सरकार में जो ऊंचे पद की चाह में 2013 में कांग्रेस छोड़ भाजपा में चले गए। 2018 में भाजपा ने टिकट दिया, लेकिन जीत नहीं पाए तो फिर लौटकर कांग्रेस में आ गए।

श्‍योपुर में भी यही हाल

श्योपुर का भी यही हाल दिखता है। दो बार भाजपा विधायक रहे बाबूलाल मेवरा 2018 में बसपा से टिकट ले आए, लेकिन जीत नहीं पाए। इसके बाद वह कांग्रेस में आ गए और करीब तीन साल कांग्रेस में बिताने के बाद अब फिर भाजपा में आ गए हैं। पूर्व विधायक बृजराज सिंह चौहान, बाबू जण्डेल का भी यही हाल है।

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