इंदौर। हिंदू उत्तराधिकारी अधिनियम 1956 में प्रविधान है कि अगर किसी व्यक्ति के पास स्वअर्जित संपत्ति है तो वह व्यक्ति अपने जीवनकाल में किसी भी व्यक्ति को वह संपत्ति दान कर सकता है। यह व्यक्ति अपने जीवनकाल में इस संपत्ति के संबंध में वसीयत भी कर सकता है। वसीयत उसकी मृत्यु के बाद प्रभावित होती है। यह आवश्यक नहीं है कि वसीयत केवल उत्तराधिकारियों के नाम से ही की जाए। अगर स्वयं के द्वारा अर्जित संपत्ति है तो व्यक्ति अपने जीवनकाल में किसी के नाम से भी संपत्ति की वसीयत कर सकता है। यह आवश्यक नहीं कि जिसके नाम संपत्ति की वसीयत की जाए वह उसका सगा संबंधी हो।
पुत्र और पुत्री दोनों को समान रूप से संपत्ति पाने का अधिकारी
वर्ष 2006 में प्रविधान किया गया है कि पैतृक संपत्ति में भी पुत्र और पुत्री का जन्म से वैध वारिस होने के कारण अधिकार होता है। कोई भी महिला या पुत्री अगर संपत्ति में से अपना हिस्सा त्याग करना चाहती है तो वह किसी भी वैध उत्तराधिकारी के पक्ष में त्याग विलेख निष्पादित कर अपना हिस्सा छोड़ सकती है।
– एडवोकेट यश्विनी बौरासी
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