इंदौर। हुकमचंद मिल के हजारों मजदूर और उनके स्वजन का संघर्ष आखिर रंग ले आया। बुधवार देर रात खत्म हुई केबिनेट की मिटिंग में मिल के मजदूरों के बकाया 174 करोड रुपये पर 44 करोड़ रुपये ब्याज के रूप में देने के प्रस्ताव पर मुहर लग गई। इसकी खबर मिलते ही मिल मजदूरों में हर्ष की लहर चली। गुरुवार दोपहर मजदूर बड़ी संख्या में मिल परिसर में जमा हुए। उन्होंने मुख्यमंत्री और महापौर को धन्यवाद दिया।
12 दिसंबर 1991 को हुकमचंद मिल बंद होने के बाद से ही मिल के 5895 मजदूर और उनके स्वजन अपने अधिकार के लिए भटक रहे हैं। छह अगस्त 2007 को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने मजदूरों के पक्ष में 228 करोड़ 79 लाख 79 हजार 208 रुपये का मुआवजा तय किया था, लेकिन इस रकम में से अब भी 174 करोड़ रुपये बकाया है। यह रकम मजदूरों को मिल की जमीन बेचकर दी जाना थी लेकिन मिल की जमीन बिक ही नहीं सकी। इसके चलते मजदूरों को भुगतान नहीं हो सका।
कुछ माह पहले नगर निगम ने तय किया था कि वह मध्य प्रदेश गृह निर्माण मंडल के साथ मिलकर मिल की साढे 42 एकड़ जमीन पर आवासीय और व्यवसायिक प्रोजेक्ट लाएगा। गृह निर्माण मंडल मिल के मजदूरों को उनका बकाया 174 करोड़ रुपये देने को तैयार भी था लेकिन मजदूर इस रकम पर ब्याज की मांग कर रहे थे। उनका कहना था कि इतने वर्षों में शहर में जमीन की कीमत कई गुना बढ़ चुकी है।
गृह निर्माण मंडल तैयार नहीं था
मजदूरों ने 174 करोड़ रुपये पर 88 करोड़ रुपये ब्याज की गणना की थी, लेकिन गृह निर्माण मंडल ब्याज का भुगतान करने को तैयार नहीं था। मंडल का कहना था कि उसे प्रोजेक्ट से होने वाले लाभ में से एक बड़ा हिस्सा नगर निगम को देना है। ऐसी स्थिति में उसके लिए ब्याज का भुगतान संभव नहीं है। महापौर पुष्यमित्र भार्गव भी मजदूरों और गृह निर्माण मंडल के बीच आपसी सहमति के प्रयास कर रहे थे।
हाल ही में मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने भी मजदूरों को आश्वासन दिया था कि सरकार बहुत जल्दी उनके हित में कोई निर्णय लेगी। महापौर भार्गव ने बताया कि बुधवार देर रात खत्म हुई मंत्री परिषद की बैठक में मिल मजदूरों के बकाया 174 करोड़ रुपये पर 44 करोड़ रुपये देने के प्रस्ताव को स्वीकृति मिल गई है। हुकमचंद मिल मजदूर-कर्मचारी-अधिकारी समिति के नरेंद्र श्रीवंश और श्रमिक नेता हरनामसिंह धालीवाल ने इसकी पुष्टि की है।
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