ये वनकर्मियों की जान-पहचान वाले परिचित बताए गए हैं। राशि भी इन लोगों के खातों में पहुंच चुकी है। चौंकाने वाली बात यह है कि इन्हीं मजदूरों को पिछले कई साल से अलग-अलग प्रोजेक्ट में काम करना दर्शाया है। इन्हें के बैंक खातों का इस्तेमाल होता है। हालांकि पर्यावरण शाखा पौधारोपण से जुड़ी जानकारी छिपाकर मामला दबाने में लगे है।
2018 से वन विभाग और विश्वविद्यालय मिलकर पौधारोपण करने में लगे है। तक्षशिला और आइईटी परिसर में पौधे लगाए जाते हैं। हर साल हजारों की संख्या में पौधे रोपे जाते है। 2022-23 प्रोजेक्ट के आधार पर चार हजार पौधे खंडवा रोड स्थित तक्षशिला परिसर में लगे। भले ही ढ़ाई हजार गड्ढे मजदूरों से करवाए है, लेकिन शेष डेढ़ हजार गड्ढों की खुदाई जेसीबी से हुए है।
पौधे लगने से पहले ही पर्यावरण शाखा ने भुगतान के लिए बिल-वाउचर बना दिए। झाबुआ और धार जिले के मजदूरों को कागज पर बताया है। जबकि नियमानुसार रोजगार की दृष्टि से इंदौर जिले के मजदूरों से काम करवाना था। जानकारी होने के बावजूद अधिकारियों ने पर्यावरण शाखा के जिम्मेदारों को रोका नहीं।
यहां तक कि पौधे की फैंसिंग भी नहीं हुई है। वैसे पूरे मामले में विश्वविद्यालय प्रशासन की भी गलती है, जिन्होंने प्रोजेक्ट से जुड़े कार्यों की तरफ बिलकुल ध्यान नहीं दिया है। डीएफओ नरेंद्र पंडवा का कहना है कि इस मामले में पूरे प्रोजेक्ट रिपोर्ट मांगी है। जल्द ही समिति बनाकर जांच करवाई जाएगी।
Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.