शिवपुरी। शिवपुरी में घर से भागा छात्र वापस लौट आया है। वह शुक्रवार की देर रात जीआरपी पुलिस को शिवपुरी रेलवे स्टेशन पर मिला। जीआरपी पुलिस ने उसे कोतवाली पुलिस के सुपुर्द कर दिया। छात्र ने अंग्रेजी समझ में न आ पाने के कारण घर से भागने का निर्णय लिया था। बच्चा घर से निकलने के बाद करीब 30 घंटे तक बाहर रहा, इस दौरान उसने सिर्फ दस रुपये खर्च किए और बिस्किट के पैकेट में यह समय व्यतीत किया।
समझ में नहीं आई अंग्रेजी तो घर से भागा
गुरुवार को चंद्रा कालोनी निवासी दुर्ग सिंह धाकड़ का कक्षा 7 में अध्यनरत 14 वर्षीय बेटा अरूण धाकड़ ट्यूशन जाते समय घर से भाग गया था। इस दौरान अरूण ने घर पर एक पत्र भी छोड़ा जिसमें उसने भागने के कारणों का उल्लेख किया था। शुक्रवार की देर रात वह शिवपुरी रेलवे स्टेशन पर जीआरपी पुलिस को मिल गया।
जीआरपी पुलिस ने आधी रात को जब रेलवे स्टेशन पर छोटे से बच्चे को अकेला देखा तो संदेह के आधार पर बच्चे से पूछताछ की। पूछताछ के दौरान इस बात का खुलासा हुआ कि बच्चा घर से भागा हुआ है, उसकी पहचान अरूण धाकड़ के रूप में हुई। इसके बाद जीआरपी पुलिस ने कोतवाली पुलिस को मामले की सूचना दी तथा बच्चे को पुलिस के सुपुर्द कर दिया।
इस तरह घर से बाहर 30 घंटे बिताए
नईदुनिया से बात करते हुए अरूण के पिता दुर्ग सिंह धाकड़ ने बताया कि उन्हें अरूण ने बताया कि वह यहां से सबसे पहले शिवपुरी रेलवे स्टेशन पहुंचा और रात को ट्रेन में सवार होकर ग्वालियर चला गया। ग्वालियर में उसने पूरी रात रेलवे स्टेशन पर काटी और पूरे दिन भी वह वहीं रहा। इस दौरान वह काफी डरा हुआ था, इसलिए शाम को शिवपुरी आने वाली ट्रेन में सवार हो गया और रात को शिवपुरी आ गया। डर के कारण घर नहीं आया।
दुर्ग सिंह के अनुसार बच्चा अपने बैग में घर से 20 हजार रुपये ले गया था जो उसने घर आकर वापस कर दिए हैं। दुर्ग सिंह के अनुसार बेटे ने बताया कि उसका मन पढ़ाई में तो लगता है परंतु उसे अंग्रेजी बहुत अच्छे से समझ में नहीं आती है, इसलिए वह प्रश्न-उत्तर समझ नहीं पाता है। दुर्ग सिंह के अनुसार उसने अपने बेटे को आश्वासन दिया है कि वह इस साल किसी तरह उस स्कूल में काट ले, अगले साल वह उसे हिंदी माध्यम के स्कूल में भर्ती करवा देंगे।
यह बच्चे का नहीं, शिक्षक की असफलता है
पीजी कालेज की अंग्रेजी विभाग की सहायक प्राध्यापक पल्लवी शर्मा का कहना है कि यदि कोई बच्चा अंग्रेजी को समझ नहीं पा रहा है, वह अंग्रेजी में बार-बार फेल हो रहा है तो यह उस बच्चे का फेल्युअर नहीं है। यह उस शिक्षक का फेल्युअर है जो बच्चे को पढ़ा रहा है। एक व्यक्ति तभी एक अच्छा शिक्षक होता है जब वह क्लास में अंतिम बेंच पर बैठे हुए बच्चे को अपना विषय समझा पाए।
इसी तरह अंग्रेजी पढ़ाने वाले शिक्षकों को यह समझना होगा कि उन्हें अच्छी अंग्रेजी आती है यह तभी साबित होगा जबकि वह अपने छात्र को सिखा और समझा पाएंगे। अगर बच्चा अंग्रेजी को समझने और सीखने में सफल नहीं हो रहा है तो यह बच्चे का नहीं स्कूल मैनेजमेंट और वहां के सिस्टम का फेल्युअर है। स्कूल प्रबंधन को चाहिए कि वह सबसे पहले यह तय करें कि अंग्रेजी भाषा बच्चे के सीखने में बाधक न बने, तभी वह सक्सेस हैं अन्यथा स्कूल प्रबंधन की विफलता है। वह शिक्षकों को जाब पर रखते समय इस बात का ध्यान रखें कि वह बच्चों को सिखाने और समझाने में कितना सक्षम है, न कि उसकी योग्यता और डिग्री क्या है।
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