भोपाल। विधानसभा चुनाव में इस बार सत्ताधारी विधायकों के साथ-साथ कांग्रेस विधायकों को भी नाराजगी का सामना करना पड़ रहा है। उत्तर प्रदेश की सीमा से सटे बुदेलखंड और विंध्य सहित चंबल-ग्वालियर क्षेत्र में भाजपा और कांग्रेस को अपने विधायकों के प्रति लोगों की नाराजगी सताने लगी है। मौजूदा विधायकों की जनता से दूरी, संवादहीनता और अलोकप्रियता प्रमुख कारण है।
भाजपा तो अपने विधायकों को पिछले एक साल से उनके कमजोर परफार्मेंस को लेकर आगाह कर रही है और टिकट काटने की चेतावनी भी कई बार दे चुकी है पर ज्यादा संकट कांग्रेस के सामने है, क्योंकि पिछले 20 सालों से कांग्रेस ने नए चेहरों को महत्व ही नहीं दिया है। नया नेतृत्व तैयार न होने से धर्मसंकट यह है कि मौजूदा विधायक का टिकट काटें, तो दे किसको।
विभिन्न समाजों का भी है प्रभाव
वैसे पार्टी की रणनीति यह है कि वह कमजोर विधायकों का टिकट काटेगी। 230 विधायकों वाली विधानसभा में 55 विधानसभा क्षेत्र उत्तर प्रदेश की सीमा से लगे हुए हैं। भाषा-बोली, संस्कृति और राजनीतिक दृष्टि से भी इस इलाके में यूपी का असर दिखाई पड़ता है। कुछ इलाकों में इसी वजह से समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का थोड़ा-बहुत प्रभाव भी है।
खास बात ये है कि अनुसूचित जाति वर्ग के साथ साथ यहां कुर्मी-पटेल और यादव वोट भी बड़ी संख्या में हैं। ज्यादातर विधायक भी इन्हीं वर्ग से आते हैं। ओबीसी वर्ग की कई जातियों के लोग वहां मौजूदा विधायक के खिलाफ खड़े हैं। इससे निपटने के लिए दोनों दल अपने स्थानीय चेहरों में बदलाव करने पर विचार कर रहे हैं।
सर्वे में कई विधायकों की स्थिति खराब
भाजपा-कांग्रेस ने पिछले एक साल के दौरान जो सर्वे कराए हैं, उसमें विधायकों के प्रति भारी नाराजगी सामने आई है। उसकी वजह ये है कि चुनाव जीतने के बाद इन विधायकों ने क्षेत्र की जनता के साथ संपर्क नहीं रखा। कहीं जातिगत कारणों से मौजूदा विधायक अलोकप्रिय हो गए हैं तो कहीं अन्य कारणों ने विधायक के खिलाफ माहौल खड़ा कर दिया है। दोनों ही दलों को यह समझ नहीं आ रहा है कि इस संकट से कैसे निपटा जाए।
भाजपा ने अपने सर्वे में यह जानने का प्रयास भी किया है कि किन कारणों से लोगों में नाराजगी है। कुछ विधानसभा क्षेत्रों में नाराजगी के एक जैसे कारण सामने आए हैं, जैसे विधायक बनते ही उनके परिवारजन ठेकों में शामिल हो गए। कुछ विधायकों के क्षेत्र में उनके रिश्तेदारों ने लोगों को दबंगई दिखाई।
निर्वाचित जनप्रतिनिधि चाहे वे किसी भी दल के हों, जनता उनका निर्वाचन बड़ी उम्मीदों के साथ करती है। लिहाजा उनका भी यह कर्तव्य है कि वे अपने मन-वचन, कर्म और अपने आचरण से उनकी उम्मीदों को आत्मसात करते हुए पूरा करें। यदि ऐसा नहीं होता है तो उनके खिलाफ एंटी इनकंबेसी होना स्वाभाविक है। -केके मिश्रा, अध्यक्ष, कांग्रेस मीडिया विभाग
भाजपा विधायकों के लिए एंटी इनकंबेंसी नहीं प्रो इनकंबेंसी है, क्योंकि वे लगातार जनता के बीच रहते हैं, जनता से सतत उनका संपर्क व संवाद रहता है। शिवराज सरकार की जनहितैषी योजनाओं का वह अपने क्षेत्र की जनता को निरंतर लाभ दिला रहे हैं, जिससे लोगो के जीवन स्तर में बदलाव आया है। -नरेंद्र सलूजा, प्रदेश प्रवक्ता भाजपा
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