जबलपुर। संस्कारधानी के इतिहास में पहली बार सामूहिक पितृ तर्पण का आयोजन किया जाएगा। यह जानकारी पंडित जयप्रकाश मिश्रा ने दी। उन्हाेंने बताया कि पंडित पुरुषोत्तम तिवारी, पंडित विष्णु शास्त्री व शुभकरण मिश्रा पचमठा मंदिर, गढ़ा में 20 सितंबर को बैठक करेंगे। इन सभी से संपर्क कर पंजीयन कराया जा सकता है।
संपर्क कर पंजीयन कराया जा सकता है
आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से लेकर अमावस्या पंद्रह दिन पितृपक्ष के नाम से विख्यात है। इन पंद्रह दिनों में लोग अपने पितरों यानि पूर्वजों को जल देते हैं व उनकी मृत्युतिथि पर पार्वण श्राद्ध करते हैं। माता-पिता आदि पारिवारिक मनुष्यों की मृत्यु के पश्चात उनकी तृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक किए जाने वाले कर्म को पितृ श्राद्ध कहते हैं। हिन्दू धर्म में माता-पिता की सेवा को सबसे बड़ी पूजा माना गया है। इसलिए हिंदू धर्म शास्त्रों में पितृों का उद्धार करने के लिए पुत्र की अनिवार्यता मानी गई है।
ताकि माता पिता को मृत्यु उपरांत विस्मृत न कर दें…
जन्मदाता माता पिता को मृत्यु उपरांत लोग विस्मृत न कर दें, इसलिए उनका श्राद्ध करने का विशेष विधान बताया गया है। भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या तक के सोलह दिनों को पितृपक्ष कहते हैं जिसमे हम अपने पूर्वजों की सेवा करते हैं। पितृपक्ष भर में जो तर्पण किया जाता है उससे वह पितृप्राण स्वयं आप्यापित होता है।
15 दिन अपना अपना भाग लेकर पितर ब्रह्मांडीय उर्जा के साथ चले जाते हैं
पुत्र या उसके नाम से उसका परिवार जो भी तथा चावल का पिंड देता है, उसमें से अंश लेकर वह अम्भप्राण का ऋण चुका देता है। ठीक आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से वह चक्र उवमुख होने लगता है। 15 दिन अपना अपना भाग लेकर शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से पितर उसी ब्रह्मांडीय उर्जा के साथ वापस चले जाते हैं।
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