बाघों को माधव राष्ट्रीय उद्यान की पूर्वी रेंज में रखा है। अभी पर्यटन उत्तरी-दक्षिणी क्षेत्र में ही है, इसलिए बाघों के आने के बाद भी सैलानियों की संख्या में कोई इजाफा नहीं हुआ है। अभी तक माधव राष्ट्रीय उद्यान पार्क प्रबंधन ने बाघों के पर्यटन के संबंध में नए रूट को लेकर कोई जानकारी साझा नहीं की है। ऐसे में 27 साल बाद बाघ आने का लाभ नहीं मिल पाया है।
पार्क के अधिकारियों ने बाघों को मार्च के महीने में ही बाड़े से आजाद कर खुले में छोड़ दिया था। बाघ भी यहां के वातावरण में अच्छे से अभ्यस्त हो चुके हैं। इसके बाद भी पर्यटकों को इनसे दूर ही रखा जा रहा है। दूसरी ओर पहले कुछ सैलानी सेलिंग क्लब जाते थे, उनका वहां जाना भी प्रतिबंधित हो गया है। नेशनल पार्क प्रबंधन का पक्ष जानने के लिए जब पार्क डायरेक्टर प्रतिभा अहिरवार को काल किया, तो उन्होंने फोन रिसीव नहीं किया।
टाइगर सफारी और रिजर्व भी अटका
बाघ आने के बाद जोर-शोर से माधव राष्ट्रीय उद्यान को टाइगर रिजर्व बनाने की तैयारी की थी। इसके लिए बफर जोन भी चिन्हित कर लिया था, जिसके बाद माधव राष्ट्रीय उद्यान का कुल दायरा भी बढ़ाकर करीब 1600 वर्ग किमी होता। हालांकि टाइगर रिजर्व बनाने के प्रस्ताव को मप्र राज्य वन्यप्राणी बोर्ड की बैठक में ही टाल दिया। इसके अलावा यहां फ्री रेंज में बाघ छोड़े जाने से पहले टाइगर सफारी बनाने की योजना भी थी, जिसे केंद्र से भी हरी झंडी मिल गई थी, लेकिन यह योजना भी ठंडे बस्ते में चली गई है।
पर्यटकों के लिए सुविधाओं की भी कमी
माधव राष्ट्रीय उद्यान में फिलहाल वाहन (जिप्सी) भी अनुबंधित नहीं की हैं। जब यहां पर पर्यटकों के लिए टाइगरों को देखने की अनुमति भी दे दी जाएगी, तो उन्हें अपने निजी वाहन से ही जाना होगा। दूसरी ओर यहां पर्यटकों के लिए अन्य किसी तरह की सुविधाएं भी नहीं हैं। यह मुद्दा भी पर्यटन संबंधित कई बैठकों में उठ चुका है, लेकिन इस दिशा में भी अभी तक कोई काम नहीं हो पाया है। पर्यटकों के लिए यहां एकमात्र आकर्षण का केंद्र सिर्फ जार्ज कैसल कोठी ही है। इसके अलावा जानवरों में भी यहां अधिकांश सिर्फ नील गाय और हिरण ही दिखाई देते हैं।
ठंडे बस्ते में पर्यटन की अन्य योजनाएं
शिवपुरी में पर्यटन बढ़ाने काे लेकर अन्य योजनाएं भी फिलहाल ठंडे बस्ते में हैं। बलिदानी तात्या टोपे के बलिदान स्थली पर म्यूजियम बनाया जाना है, जिसका काम अभी तक शुरू नहीं हुआ है। कूनो के अहेरा गेट पर भी पर्यटन की दृष्टि से विकास की कई योजनाओं के दावे किए थे, लेकिन वे भी कागजी साबित हुए। इसके अलावा मड़ीखेड़ा में वाटर स्पोर्ट्स शुरू करना हो या फिर नरवर किले पर रोप-वे। यह सभी योजनाएं वर्षों से कागजों में ही चल रही हैं।
Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.