चंद्रयान 3 का लैंडर अब से कुछ देर बाद शाम 6.04 मिनट पर चंद्रमा की सतह पर उतरकर इतिहास बनाने वाला है। वैज्ञानिक पक्ष के अलावा धार्मिक पक्ष से भी चंद्रमा का हिंदू ज्योतिष में विशेष स्थान रहा है। हिंदू ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा के एक महत्वपूर्ण ग्रह माना गया है और इस प्रमुख नवग्रहों में स्थान दिया गया है। पौराणिक मान्यता है कि चंद्रमा का हर जातक पर सबसे अधिक प्रभाव होता है। जातक की कुंडली में चंद्रमा की स्थिति मनुष्य के जीवन पर विशेष प्रभाव डालती है।
चंद्रमा को स्त्री ग्रह की मान्यता
ज्योतिष के मुताबिक, चंद्रमा को एक स्त्री गुण वाला ग्रह माना गया है, जो मन, सुख-शांति, धन-संपत्ति, माता, ममता जैसे कारकों को प्रभावित करता है। ज्योतिष में चंद्रमा को कर्क राशि का स्वामी माना गया है। वहीं, नक्षत्रों में रोहिणी, हस्त और श्रवण नक्षत्र के स्वामी हैं। सभी नौ ग्रहों में सबसे तेज गति चंद्रमा की ही है, इसलिए चंद्रमा का राशि परिवर्तन सबसे तेज गति से होता है। एक राशि में चंद्रमा करीब सवा दो दिन रहते हैं।
चंद्रदेव के परिवार को लेकर ये मान्यता
हिंदू ज्योतिष के मुताबिक, चंद्रमा को महर्षि अत्रि और देवी अनुसूया का पुत्र माना गया है और बुध को चंद्रमा का पुत्र बताया गया है। पौराणिक मान्यता है कि चंद्रमा के दो अन्य भाई ऋषि दुर्वासा और दत्तात्रेय हैं। चंद्रदेव का विवाह दक्ष प्रजापति की नक्षत्र रुपी 27 कन्याओं से हुआ और इन सभी से उन्हें प्रतिभाशाली पुत्रों की प्राप्ति हुई थी।
रोहिणी को ज्यादा प्रेम करते थे चंद्रदेव
धर्म ग्रंथों के मुताबिक, चंद्र देव दक्ष प्रजापति की 27 कन्याओं में से सबसे अधिक प्रेम रोहिणी से करते थे, जिससे बाकी 26 पत्नियां दुखी होकर पिता के पास शिकायत करने पहुंच गई। तब गुस्से में दक्ष प्रजापति ने चंद्रदेव को शाप दे दिया, जिससे वे क्षय रोग का शिकार हो गए। शाप की वजह से चंद्रमा का तेज क्षीण होने लगा। ऐसे में शाप से मुक्ति के लिए चंद्र देव ने भगवान विष्णु के कहने पर 108 महामृत्युंजय मंत्र का जप किया और शाप से मुक्ति मिली। जिस स्थान पर चंद्र देव ने तपस्या की थी, वह आज सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है।
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