इंटरनेशनल डेस्कः पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने नेताओं को हमेशा के लिए चुनाव लड़ने से रोकने के अपने पहले के आदेश को वापस लेते हुए सोमवार को सांसदों की आजीवन अयोग्यता को समाप्त कर दिया। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला नवाज शरीफ के लिए बड़ी राहत लेकर आया है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने पहले नवाज शरीफ के आजीवन चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी थी।
डॉन की रिपोर्ट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) सुप्रीमो नवाज शरीफ और इस्तेहकाम-ए-पाकिस्तान पार्टी (आईपीपी) प्रमुख जहांगीर तरीन को चुनाव लड़ने की इजाजत दे दी है। सुप्रीम कोर्ट ने समीउल्लाह बलूच मामले में अपने ऐतिहासिक फैसले को रद्द करते हुए घोषणा की कि अनुच्छेद 62 (1) (एफ) के तहत अयोग्य ठहराए जाने पर किसी भी व्यक्ति को जीवन भर चुनाव लड़ने से नहीं रोका जा सकता है।
सीजेपी काजी फैज ईसा की अध्यक्षता वाली सात सदस्यीय बड़ी पीठ जिसमें न्यायमूर्ति सैयद मंसूर अली शाह, न्यायमूर्ति याह्या अफरीदी, न्यायमूर्ति अमीनुद्दीन खान, न्यायमूर्ति जमाल खान मंदोखाइल, न्यायमूर्ति मुहम्मद अली मजहर और न्यायमूर्ति मुसर्रत हिलाली शामिल थे – ने सुनवाई की। जिसका शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर सीधा प्रसारण किया गया। पीठ ने 6-1 के बहुमत से फैसला सुनाया क्योंकि न्यायमूर्ति याह्या अफरीदी शीर्ष अदालत के पिछले फैसले का समर्थन करते हुए अपने साथी न्यायाधीशों से असहमत थे।
2017 में नेशनल असेंबली ने पास किया कानून
बता दें कि कानूनी उलझन तब पैदा हुई जब संसद ने चुनाव अधिनियम 2017 में संशोधन पारित किया। जिसमें एक राजनेता की अयोग्यता अवधि को जीवनकाल के बजाय पांच साल तक सीमित कर दिया गया, जो कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के विपरीत था, जिसे अनुच्छेद 62(1) (एफ) के तहत अयोग्यता माना गया था। पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि चूंकि चुनाव कार्यक्रम जारी किया गया था, इसलिए जल्द से जल्द आदेश जारी करना “आवश्यक” था।
सुप्रीम कोर्ट कोर्ट ने कहा “ऐसा कोई कानून नहीं है जो संविधान के अनुच्छेद 62(1)(एफ) में उल्लिखित घोषणा करने के लिए प्रक्रिया और कानून की अदालत की पहचान और ऐसी घोषणा की अवधि का प्रावधान करता हो। शीर्ष अदालत ने कहा कि इसके तहत अयोग्यता, संविधान के अनुच्छेद 10 ए द्वारा गारंटीकृत निष्पक्ष सुनवाई और उचित प्रक्रिया के मौलिक अधिकार की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए है।
16 साल बाद आया फैसला
शीर्ष न्यायालय ने पिछले महीने पूर्व पीएमएल-एन विधायक सरदार मीर बादशाह खान क़ैसरानी द्वारा दायर याचिका पर पिछली सुनवाई के दौरान चुनाव अधिनियम, 2017 में अयोग्यता की अवधि और शीर्ष अदालत के फैसले के संबंध में विरोधाभासों पर ध्यान दिया था। क़ैसरानी ने 2007 में एक फर्जी डिग्री पर अपनी आजीवन अयोग्यता को चुनौती दी थी। सीजेपी ने गत चार जनवरी को पिछली सुनवाई में टिप्पणी की थी कि किसी को भी संसद से जीवन भर के लिए अयोग्य ठहराना ‘‘इस्लाम के खिलाफ‘’ है, उन्होंने कहा कि अदालत इस बात पर स्पष्टता मांग रही थी कि क्या संशोधन के अनुसार किसी विधायक के लिए अयोग्यता की अवधि पांच साल थी।
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