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श्राद्ध पक्ष में इसलिए नहीं किए जाते हैं शुभ कार्य, जानें क्या है धार्मिक कारण

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हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व है और इस दौरान पूर्वजों के प्रति सम्मान प्रकट किया जाता है। पौराणिक मान्यता है कि पितृ पक्ष में तर्पण और पिंडदान करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। इस साल पितृ पक्ष 29 सितंबर 2023 से शुरू हो रहा है। पंडित चंद्रशेखर मलतारे के मुताबिक, श्राद्ध पक्ष का संबंध मृत्यु से है और इस कारण से इसे अशुभ काल माना जाता है। पितरों की याद में इस दौरान परिजन शोकाकुल अवधि में रहते हैं और इस कारण से शुभ कार्य या मांगलिक कार्यों की मनाही होती है।

पितृ पक्ष में कौए, श्वान और गाय का पूजन

पितृ पक्ष में पितरों की आत्मिक शांति के लिए ब्राह्मण भोज के साथ-साथ गाय, श्वान और कौए के लिए भी ग्रास निकालने की परंपरा है। पौराणिक मान्यता है कि गाय में 33 लाख देवी-देवताओं का वास होता है, इसलिए गाय का विशेष धार्मिक महत्व है। धार्मिक मान्यता है कि श्वान और कौए पितरों के वाहक होते हैं, यही कारण है कि श्वान और कौए के लिए भी ग्रास निकाला जाता है।

16 दिन का होता है श्राद्ध पक्ष

पंडित चंद्रशेखर मलतारे के मुताबिक, श्राद्ध पक्ष भाद्र शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक होता है। इन 16 दिनों की अवधि में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है। ऐसा माना जाता है पितृपक्ष में नई चीजों की खरीदारी करने से पितर नाराज होते हैं। पितृपक्ष में खरीदी गई चीजें पितरों के लिए समर्पित माना जाती है, इसलिए उन वस्तुओं में प्रेतों का अंश होता है।

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‘इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।’

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