इस साल शनिवार, 14 अक्टूबर को अश्विन अमावस्या है। यूं तो हर महीने अमावस्या की तिथि पड़ती है, लेकिन हिन्दू धर्म में अश्विन माह के कृष्ण पक्ष में आने वाली अमावस्या विशेष महत्व रखती है। इस अमावस्या को अश्विन अमावस्या, विसर्जनी अमावस्या और सर्वपितृ अमावस्या के नाम से जाना जाता है। अश्विन अमावस्या के साथ ही श्राद्ध की भी समाप्ति हो जाती है और पूर्वज अपने लोक वापस लौट जाते हैं। अश्विन अमावस्या के दिन अपने ज्ञात-अज्ञात पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है।
अश्विन अमावस्या: तिथि और मुहूर्त
अश्विन अमावस्या तिथि का आरंभ 13 अक्टूबर को रात्रि 21:53 बजे से होगा और समापन 14 अक्टूबर को रात 23:27 बजे होगा। उदया तिथि के अनुसार 14 अक्टूबर को सर्व पितृ अमावस्या मनाई जाएगी। इस दिन श्राद्ध-तर्पण के लिए तीन मुहूर्त बताये गये हैं, जो सुबह 11:44 बजे से दोपहर 3:35 बजे तक रहेंगे। इस अवधि में किसी भी समय पूर्वजों के लिए पूजा, तर्पण, दान आदि किया जा सकता है।
अश्विन अमावस्या: महत्व
अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को पितृ विसर्जनी अमावस्या कहा जाता है। इस दिन श्राद्ध पक्ष का समापन होता है और पितृ लोक से आए हुए पितृजन अपने लोक लौट जाते हैं। इस दिन श्राद्ध कर्म, ब्राह्मण भोजन और दान आदि से पितर तृप्त होते हैं और अपने परिवार के लोगों को आशीर्वाद देकर जाते हैं। इस दिन के श्राद्ध-पूजन से कुंडली में मौजूद पितृदोष से मुक्ति मिलती है और पितृ ऋण खत्म होता है।
अमावस्या के दिन क्या करें?
- इस दिन नदी, जलाशय या कुंड आदि में स्नान करें और सूर्य देव को अर्घ्य देने के बाद पितरों के निमित्त तर्पण करें।
- संध्या के समय दीपक जलाएँ और दरवाजे पर कुछ खाद्य पदार्थ जैसे पूड़ी-मिठाई आदि रखें। इसका तात्पर्य ये होता है कि पितरों को अपने लोक जाने का रास्ता दिखे और वे भूखे ना जाएं।
- यदि आपने पूरे पितृपक्ष में तर्पण नहीं भी किया हो, या किसी पूर्वज की मृत्यु की तिथि ज्ञात ना हो, तो इस दिन तर्पण करने से उन सभी पितरों को मुक्ति मिल जाती है।
- इस दिन पितरों की शांति के लिए दान दें और गरीबों को भोजन कराएं। इससे उनके पुण्य में वृद्धि होती है और परलोक की यात्रा सुगम होती है।
- अमावस्या का श्राद्धकर्म के साथ-साथ तांत्रिक साधना के लिए भी बहुत महत्व है। इस दिन रात्रिकाली पूजा से देवी शीघ्र प्रसन्न होती हैं। इसके अगले ही दिन से शारदीय नवरात्रि भी शुरु हो जाती है।
डिसक्लेमर
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