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भाजपा और कांग्रेस के प्रमुख चेहरों में एक भी महिला नहीं

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भोपाल। मप्र विधानसभा चुनाव में महिलाओं की भूमिका को निर्णायक माना जा रहा है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की लाड़ली बहनों-भांजियों पर धनवर्षा करने की योजनाओं पर भाजपा चुनावी लाभ की आस में गदगद है। कांग्रेस भी सरकार बनने पर उन्हें मालामाल करने का प्रलोभन दे रही है। विडंबना है कि वोटों की खातिर महिलाओं पर इतना अपनत्व और स्नेह लुटा रहे दोनों राष्ट्रीय दलों के प्रदेश संगठन में महिलाओं का प्रतिनिधित्व निराशाजनक है। दोनों दलों के नेतृत्व की प्रथम पंक्ति में एक भी महिला नेता नहीं है।

भाजपा ने किसी अन्य महिला नेता को मप्र की राजनीति में उमा भारती का स्थान नहीं दिया।

अतीत में उमा भारती भाजपा में यह हैसियत रखती थीं, यद्यपि पिछले 18 वर्षों में केंद्र सरकार में मंत्री बनने के बावजूद वह क्रमशः अपना जादू खो चुकी हैं। भाजपा ने किसी अन्य महिला नेता को प्रदेश की राजनीति में उमा भारती का स्थान नहीं दिया। यही हाल कांग्रेस का है। महिलाओं पर बड़ी-बड़ी बातें करने वाली पार्टी के प्रदेश संगठन में एक भी बड़ी महिला नेता नहीं है। नेता प्रतिपक्ष और उपमुख्यमंत्री रहीं जमुना देवी के निधन के बाद कोई भी महिला नेत्री इस मुकाम तक नहीं पहुंच सकी। इन हालात में यह देखना दिलचस्प होगा कि दोनों दल टिकट वितरण में महिलाओं को कितना तवज्जो देते हैं।

विधानसभा में दस प्रतिशत प्रतिनिधित्व भी नहीं

महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी देखें तो 230 सीटों वाले मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा ने पिछले विधानसभा चुनाव में 23 और कांग्रेस ने 28 महिलाओं को टिकट दिए थे। इनमें से 22 विधायक बनीं। वर्ष 2018 में भाजपा से 14 और कांग्रेस से सात और बसपा से एक महिला जीतकर विधानसभा में पहुंचीं।

राज्‍यसभा में बढ़ाया महिलाओं का प्रतिन‍िध‍ित्‍व

यह बात भी ध्यान देनी होगी कि भाजपा ने मध्य प्रदेश से कविता पाटीदार और सुमित्रा वाल्मीकि को राज्यसभा सदस्य बनाकर मप्र से राज्यसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाया है। लोकसभा में भी मप्र से महिला सांसदों की कम संख्या है। 29 में से मात्र संध्या राय, रीति पाठक, साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और हिमाद्री सिंह चार सांसद हैं।

सीमित भागीदारी की अनेक वजहें

महिलाओं की सीमित भागीदारी की कई वजहें सामने आती रही हैं। सामान्य तौर पर राजनीति में भागीदारी को समाज में सम्मानित दृष्टि से नहीं देखा जाता, वहीं अमूमन परिवार के सदस्य भी महिला को राजनीति में आगे बढ़ाने के लिए न प्रेरित करते हैं, न सक्रियता में सहयोग करते हैं।

जानकारों की यह है राय

जानकार मानते हैं कि राजनीति में वर्चस्व बनाए रखने के लिए पुरुष भी महिलाओं को आगे बढ़ने से रोकते हैं, बाधाएं खड़ी करते हैं। हालांकि मध्य प्रदेश में 50 प्रतिशत आरक्षण महिलाओं को दिया गया है, लेकिन उनकी जमीनी हकीकत बेहद निराशाजनक है। चुनाव जीतकर जनप्रतिनिधि बनीं महिलाएं सिर्फ कठपुतली रह जाती हैं। एक-दो मामलों को छोड़ दें, तो लगभग सभी मामलों में पुरुष ही बतौर जनप्रतिनिधि काबिज रहते हैं।

यह भी है दुखद पहलू

एक दुखद पहलू यह भी है कि सत्ता या संगठन में जब महिलाओं को बड़ी जिम्मेदारी मिली, तो उन्होंने भी महिलाओं को आगे बढ़ाने में रुचि नहीं दिखाई। भाजपा को मध्य प्रदेश में संघर्ष के दौर में विजयाराजे सिंधिया की मजबूत छत्रछाया मिली, लेकिन उनके बाद उमा भारती तक कोई महिला नेत्री का नाम का बड़ा नाम सामने नहीं आता। उमा भारती प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं। उनके बाद बीजेपी से कोई महिला नेत्री में शीर्ष स्थान हासिल नहीं कर सकी हैं।

जमुना देवी के बाद कांग्रेस में कोई बड़ा चेहरा नहीं

कांग्रेस में भी जमुना देवी कभी मुख्यमंत्री पद की दावेदार हुआ करती थीं, उनके जाने के बाद महिला नेत्री के रूप में कोई बड़ा चेहरा कांग्रेस में आज तक उभर कर सामने नहीं आ सका है। मध्य प्रदेश से राष्ट्रीय स्तर पर जिन महिलाओं का नाम चर्चित हुआ, उनमें सबसे पहला नाम सुमित्रा महाजन का है। महाजन लोकसभा स्पीकर रहीं। इससे पहले वे केंद्र सरकार में अलग-अलग विभागों की मंत्री भी रहीं। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में भी वे मंत्री रह चुकी हैं। इंदौर से लगातार नौ बार लोकसभा चुनाव जीतकर रिकार्ड बनाया।

कैबिनेट में भी पर्याप्त स्थान नहीं

कैबिनेट में देखा जाए तो 31 सदस्यों में मात्र तीन महिला सदस्य हैं। यशोधरा राजे सिंधिया, उषा ठाकुर और मीना सिंह ही मंत्री हैं। यह संख्या कमल नाथ सरकार में और कम हुआ करती थी। तब मात्र दो महिलाएं विजय लक्ष्मी साधौ और इमरती देवी ही मंत्री थीं।

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