Chanakya Niti। आचार्य चाणक्य, भारतीय इतिहास और राजनीति के मशहूर व्यक्तित्वों में से एक थे। चाणक्य ने अपने विचारों व सिद्धांतों में मोक्ष का महत्वपूर्ण स्थान दिया है। आचार्य चाणक्य ने मोक्ष को एक आध्यात्मिक बोध के रूप में परिभाषित किया है, जो व्यक्ति को संयम, स्वाधीनता और आनंद की स्थिति तक पहुंचाता है। उनके अनुसार, मोक्ष एक आदर्श स्थिति है, जिसे प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को आत्म-नियंत्रण, दानशीलता, विचार शक्ति और नैतिकता का पालन करना चाहिए।
वाचः शौचं च मनसः शौचमिन्द्रियनिग्रहः ।
सर्वभूते दया शौचं एतच्छौत्रं पराऽर्थिनाम् ।।
आचार्य चाणक्य के मुताबिक, वाणी की पवित्रता, मन की शुद्धि, इंद्रियों का संयम, प्राणिमात्र पर दया, धन की पवित्रता, मोक्ष प्राप्त करने वाले के लक्षण होते हैं। कूटनीतिक चालों से शत्रु को मात देने वाले आचार्य चाणक्य अंतर्मन से उतने ही सरल और सहज थे। महान उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए लघु स्वार्थों को छोड़ने की उन्होंने शिक्षा ही नहीं दी, उन्हें अपने आचरण में भी विशिष्ट स्थान दिया । अध्यात्म उनके जीवन का आधार था।
अनुभव के लिए पवित्रता आवश्यक
आचार्य ने अनुभव के लिए पवित्रता को सबसे आवश्यक माना है। उन्होंने कहा है कि जो वाणी और मन से पवित्र होगा और जो दूसरों को दुखी देखकर दुखी होता होगा, वही विवेकवान हो सकता है। उन्होंने कहा कि परोपकार की भावना हो लेकिन इंद्रियों पर संयम न हो तो अपने लक्ष्य को पाया नहीं जा सकता। एक स्थिति प्राप्त करने के बाद मार्ग से भटकने का भय बना रहता है। संयमी तो वहां स्वयं को संभाल लेता है, जहां इंद्रिय लोलुप उलझ जाता है। बिना विवेक के सत्य का ज्ञान नहीं होता और उसके बिना बंधनमुक्त भी नहीं हुआ जा सकता।
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