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दिव्यांग जनों के लिए डिजिटल सुविधा अब भी बड़ी चुनौती, भारत में इस समस्या का हल कब तक?

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यह कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि डिजिटलीकरण के चलते पूरी दुनिया आज इंसान की मुट्ठी में है. ब्लौक चेन तकनीक, रोबोटिक्स और आर्टिफिशियिल इंटेलिजेंस दक्षता के नए आयाम छू रहे हैं. ये सब कुछ लोगों की बौद्धिक क्षमता को भी चुनौती देते नजर आ रहे हैं. ऐसे परिदृश्य में यह तथ्य चकित करने वाला है कि पूरी इंटरनेट दुनिया का महज तीन फीसदी भी दिव्यांगों के लिए सुगम्य (Accessible) नहीं है. इस मामले में भारत की स्थिति और भी चिन्ताजनक है.

हाल ही में प्रकाशित दिव्यांग जन सशक्तीकरण विभाग की वार्षिक रिपोर्ट (2023-24) बताती है कि केन्द्र सरकार की केवल 95 वेबसाइटें इस लिहाज से सुगम्य हैं. विभिन्न राज्य-सरकारों की करीब 6,700 वेबसाइटों में से मात्र 676 वेबसाइटें ही सुगम्य हैं. इनमें से भी मात्र 400 वेबसाइटें ही प्रयोग लायक हैं, जोकि सम्पूर्ण वेबसाइटों का केवल 7 फीसदी है.

वेब सुगम्यता क्या है?

हैरान करने वाले आंकड़ों को जानने के बाद यह समझना आवश्यक हो जाता है कि वास्तव में वेब सुगम्यता (Web-Accessibility) क्या है. डिजिटल परिवेश में समावेशी स्थायित्व सुनिश्चित करने के लिए यह किस प्रकार आवश्यक है. वेब एक्सेसिबिलिटी का अर्थ वेबसाइटों डिजिटल समाधानों और-तकनीकी सेवाओं का इस प्रकार का समावेशी निर्माण एवं प्रबन्धन है जिससे दिव्यांगजन भी सामान्यजन की भांति ही इन संसाधनों का बिना किसी समस्या के प्रभावी उपयोग कर सकें.

इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि दिव्यांग आत्मनिर्भर रूप से डिजिटल परिदृश्य को समझ सकें, उसका इस्तेमाल कर सकें. अपना महत्वपूर्ण योगदान भी दे सकें.

डिजिटल सुगम्यता का वर्तमान परिदृश्य: दावे एवं वास्तविकता

पिछले कुछ सालों में, दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम की कार्यान्वयन योजना में बजट आवंटन लगातार कम होता जा रहा है. 2022-23 से 2023-24 तक के बजट में यह कटौती आश्चर्यजनक रूप से 37.5 फीसदी थी. जहां 2022-23 में सरकार ने इसके लिए 240.39 करोड़ रुपए आवंटित किए थे वहीं 2023-24 में इसे घटाकर 150 करोड़ कर दिया था. यहां तक कि 2024-25 में इसमें 9.78 फीसदी की दोबारा कटौती गई वहीं इस वर्ष केवल 135.33 करोड़ रुपए ही दिव्यांगों के बजट के लिए आवंटित किए गए.

‘सुगम्य भारत अभियान’ जिसके तहत डिजिटल सुगम्यता को बढ़ाने के लिए भी कार्य किया जाता है, उसे भी (एसआईपीडीए) के बजट से ही पूंजी आवंटित होती है. यानी दिव्यांग जन अधिकार अधिनियम के लिए कार्यान्वयन योजना के बजट में कमी करने से सुगम्य-भारत अभियान को भी अपेक्षाकृत कम पूंजी ही मिल पाएगी. इसके अतिरिक्त महत्वपूर्ण समस्य़ा आवंटित राशि के पूर्ण उपयोग की भी है. सुगम्य भारत अभियान के तहत डिजिटल सुगम्यता को निम्न सारणी द्वारा समझा जा सकता है.

ये आंकड़े दर्शाते हैं कि 2020 से ही सुगम्य भारत अभियान के तहत केन्द्रीय एवं राज्यीय वेबसाइटों को सुगम्य बनाने के लिए पूंजी का आवंटन तथा व्यय स्थिर है. इसके अलावा केन्द्र सरकार की सुगम्य वेबसाइटों में भी 2020 से अब तक कोई वृद्धि नहीं हुई है. 2020 से लेकर अभी तक केन्द्र सरकार की सुगम्य वेबसाइटों की संख्या 95ही है. राज्य एवं केन्द्रशासित प्रदेशों की वेबसाइटों को सुगम्य बनाने की गति भी बेहद मंद है.

कई समस्याएं अब भी बरकरार हैं

चिंताजनक विषय यह भी है कि जिन वेबसाइटों को सुगम्य बनाने का दावा किया गया है उनमें से भी कई वेबसाइटों में छवि-आधारित (image-based) कैपचा, असुगम्य पेज ले-आउट तथा इनऑपरेबल एलिमेंट आदि समस्याएं विद्यमान हैं.

उदाहरण के लिए आधार-कार्ड जिसका उपयोग करीब भारत का प्रत्येक नागरिक कहीं-न-कहीं करता ही है, की वेबसाइट में “एक्सेसिबिलिटी स्टेटमेंट” उपलब्ध होने के बावजूद कैपचा सुगम्य नहीं है. परिणामस्वरूप दृष्टिबाधितों तथा दृष्टिबाधित-बधिर दिव्यांगों को लॉग-इन करने तथा ई-आधार तक पहुंचने में समस्या का सामना करना पड़ता है. अनेकानेक शिकायतों के बाद वेबसाइट पर ऑडियो कैप्चा लाया तो गया किन्तु उसे चालू करने का बटन कीबोर्ड के माध्यम से सुगम्य नहीं बनाया गया है.

इसी प्रकार यू.जी.सी की राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (एन.ई.टी.) के लिए राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (NTA) की वेबसाइट छवि-आधारित कैपचा के कारण असुगम्य बनी हुई है, जो स्क्रीन रीडर उपयोगकर्ताओं को स्वतंत्र रूप से अपने यू.जी.सी. नेट-जे.आर.एफ के फॉर्म भरने और उस परीक्षा के परिणामों की जांच करने में भी बाधा उत्पन्न करती है. इसके अतिरिक्त, अधिकांश निजी-कम्पनियां जो सेवा प्रदाता के रूप में कार्य कर रही हैं उनके वेबसाइटें और ऐपलिकेशन आदि भी सुगम्य नहीं हैं.

हाल ही मे दिव्यांग व्यक्तियों के लिए मुख्य आयुक्त न्यायालय ने भारत के अग्रणी मोबिलिटी प्लेटफ़ॉर्म “ओला” के विरुद्ध कई निर्देश जारी किए, ताकि दिव्यांग व्यक्तियों के लिए उनके एप्लिकेशन और सेवाओं को अधिक सुगम्य बनाया जा सके. इसके अतिरिक्त विभिन्न फिंटेक कम्पनियों जैसे – क्रेड तथा जिरोधा ऑनलाइन समाचार पत्रों जैसे- द हिन्दू और इंडियन एक्सप्रेस तथा ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म – जैसे अमेजन तथा फ्लिपकार्ट आदि की सुगम्यता का मुद्दा भी न्यायालय के समक्ष है.

अन्तर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय डिजिटल सुगम्यता कानूनों का विहंगम अवलोकन

संयुक्त राष्ट्र का दिव्यांगजन अधिकार घोषणापत्र जिसका सदस्य भारत भी है, के अनुच्छेद 9 में वर्णित है कि सरकारें दिव्यांगजनों के लिए सुगम्य सूचना एवं संचार तकनीक सुनिश्चित करेंगी. 2014 में यू.एन.सी.आर.पी.डी. समिति ने सुगम्यता पर सामान्य टिप्पणी 2 जारी की इसमें इसपर विशेष बल दिया गया कि विभिन्न राष्ट्र सुगम्यता से सम्बन्धित मुद्दों पर प्रभावी रूप से अपना ध्यान केन्द्रित करें. इसके अतिरिक्त, सतत विकास लक्ष्य के “लक्ष्य 9.8” का उद्देश्य सभी के लिए सूचना और संचार प्रौद्योगिकी सेवाओं तक सार्वभौमिक पहुंच सुनिश्चित करना है.

भारत भी विभिन्न कानूनों एवं नियमावलियों द्वारा अपनी वेबसाइटों एवं एप्लिकेशन्स की सुगम्यता को सुनिश्चित करने का प्रयास करता आ रहा है. 2009 में भारत सरकार ने ‘भारतीय सरकारी वेबसाइटों को सुगम्य बनाने के लिए दिशा-निर्देश’ (गाइडलाइन्स फॉर इंडियन गवर्नमेंट वेबसाइट्स) को लागू किया. इसका संशोधित संस्करण 2019 तथा 2023 में क्रमशः जारी किया गया. इसके अतिरिक्त, 2013 में सार्वभौमिक इलेक्ट्रॉनिक सुगम्यता पर राष्ट्रीय नीति का निर्माण हुआ इसके उपखंड 6.4.2 के अनुसार, महज सरकारी अथवा दिव्यांगजन सम्बन्धी वेबसाइटें ही नहीं अपितु सभी नागरिक-केन्द्रित वेबसाइटें सुगम्य होनी चाहिये.

2015 में प्रारम्भ सुगम्य भारत अभियान के पांचवें उद्देश्य के अनुसार सभी सार्वजनिक वेबसाइटें सुगम्यता के अन्तर्राष्ट्रीय मानकों (W3C के दिशानिर्देश WCAG 2.0) के अनुरूप होनी चाहिये. 2016 में भारत सरकार ने दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम पारित किया. इसकी धारा 40 एवं 42 यह अनिवार्य बनाती है कि सभी सूचना एवं संचार तकनीकि सेवाएं सार्वभौमिक डिजाइन पर आधारित होंगी तथा दिव्यांग के उपयोग के अनुकूल होंगी. दिव्यांगजन अधिकार नियम 2017 में भी यह वर्णित है कि प्रत्येक प्रतिष्ठान सूचना एवं संचार से सम्बद्ध कुछ निश्चित मानकों का अनुपालन करेगा. 2023 में इन नियमों में संशोधन हुआ तथा सूचना एवं संचार प्रौद्यौगिकि हेतु भारतीय सुगम्यता मानकों को लागू किया गया.

अनुराधा भसीन बनाम भारत संघ के ऐतिहासिक मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर बल दिया था कि इंटरनेट तक पहुंच अन्य संवैधानिक रूप से संरक्षित अधिकारों को साकार करने के लिए उत्प्रेरक का कार्य करती है. न्यायालय का यह कथन दिव्यांगों के लिए और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि इंटरनेट तक पहुंच एवं सुगम्य इंटरनेट उनके लिए महज एक सुविधा ही नहीं है अपितु यह उनके जीवन का अनिवार्य अंग है.

सुगम्य डिजिटल संस्कृति बनाने के लिए उपाय

वेब यद्यपि अनंत संभावनाओं का प्रवेश द्वार है. तथापि असुगम्य वेब के कारण दिव्यांग एक प्रकार से डिजिटल जगत् से बहिष्कृत ही हैं. वास्तव में भारत को डिजिटल-समावेश हेतु पर्याप्त वित्त-पोषण, सुगम्यता मानकों का प्रभावी क्रियान्वयन, समय-समय पर उचित ढंग से सुगम्यता ऑडिटिंग, सतत निगरानी तथा वेब-संसाधनों में नियमित सुधार को प्राथमिकता देनी चाहिये.

वेब सुगम्यता के मानकों का पालन कर व्यवसाय की पहुंच और व्यापक हो सकती है, ब्रांड की प्रतिष्ठा में वृद्धि हो सकती है. एस.ई.ओ. तथा वेब-प्रदर्शन में सुधार हो सकता है तथा उपयोगकर्ता के बेहतर अनुभवों के कारण ग्राहक को अधिक सन्तुष्ट किया जा सकता है. हमें यह सदैव स्मरण रखना चाहिये कि डिजिटल-सुगम्यता की यात्रा एक साझी जिम्मेवारी है तथा इस यात्रा को पूर्ण भी साझे कर्तव्यों से ही किया जा सकता है.

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