कई बार आपने महसूस किया होगा कि आप जिस टॉपिक पर ऑफिस में अपने दोस्तों के साथ डिस्कस करते हैं. उसी से रिलेटेड विज्ञापन आपके लैपटॉप और फोन पर इंटरनेट ब्राउज़ करने के दौरान दिखाई देने लग जाते हैं. आपने कभी इसके बारे में शायद आज से पहले सीरियस होकर नहीं सोचा होगा.
इसलिए हम आपको डिस्कशन वाले टॉपिक पर दिखने वाले विज्ञापनों की पूरी कहानी बताने जा रहे हैं. जिसके बाद आप जब भी कोई डिस्कशन करेंगे तो अपनी इलेक्ट्रिक डिवाइस को शायद अपने से दूर रखकर ही आप कोई जरूरी डिस्कशन करना पसंद करें.
डिजिटल ट्रैकिंग और डेटा एनालिटिक्स
आजकल वेबसाइट्स, ऐप्स, और सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स आपकी ऑनलाइन गतिविधियों पर नज़र रखते हैं. जब आप किसी वेबसाइट पर जाते हैं, कुछ सर्च करते हैं या किसी प्रोडक्ट के बारे में जानकारी लेते हैं, तो आपका डेटा ट्रैक होता है और कंपनियां उसे अपने विज्ञापन अभियान में इस्तेमाल करती हैं.
माइक्रोफोन एक्सेस
कभी-कभी आपके डिवाइस के ऐप्स (जैसे सोशल मीडिया ऐप्स) को माइक्रोफोन तक एक्सेस होता है. यदि आपने अनुमति दी है, तो संभव है कि आपकी बातें सुनी जा रही हों और उस आधार पर विज्ञापन दिखाए जा रहे हों. हालांकि, यह एक विवादित और चिंताजनक मुद्दा है, क्योंकि कंपनियां आमतौर पर इस बात से इनकार करती हैं कि वे माइक्रोफोन का इस तरह उपयोग करती हैं.
समान इंटरनेट नेटवर्क
यदि आप और आपके सहकर्मी एक ही नेटवर्क का उपयोग कर रहे हैं, तो आपकी गतिविधियों के आधार पर आपकी रुचियों को पहचाना जा सकता है और उसी प्रकार के विज्ञापन दिखाए जा सकते हैं.
Cookies और Cross-Device Tracking
कुकीज का इस्तेमाल करके ब्राउज़िंग डेटा को स्टोर किया जाता है. अगर आपने किसी डिवाइस पर कुछ सर्च किया है और दूसरी डिवाइस में लॉगिन किया है, तो क्रॉस-डिवाइस ट्रैकिंग की मदद से भी आपको वही विज्ञापन दिख सकते हैं. कई कंपनियां रीमार्केटिंग तकनीक का उपयोग करती हैं, जिसमें उन्होंने आपके द्वारा देखे गए उत्पाद या सेवाओं के आधार पर आपको बार-बार विज्ञापन दिखाए जाते हैं.
इसलिए, यह जरूरी नहीं कि आपके मोबाइल का माइक्रोफोन सुन रहा हो. यह आपकी डिजिटल गतिविधियों और डेटा एनालिटिक्स का परिणाम हो सकता है.
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