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जय फिलिस्तीन नारे के बाद क्या ओवैसी को फिर लेनी होगी शपथ? रद्द होगी सदस्यता? जानें संविधान में क्या प्रावधान

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18वीं लोकसभा के पहले सत्र के दौरान सांसदों के शपथ ग्रहण के दूसरे दिन AIMIM के राष्ट्रीय अध्यक्ष और सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने शपथ ग्रहण की और उसके बाद सदन में ही जय फिलिस्तीन का नारा लगा दिया. सबसे पहले उन्होंने जय भीम बोला. फिर जय मीम, जय तेलंगाना, जय फिलस्तीन का नारा लगाया. फिलिस्तीन को लेकर ओवैसी के नारे के बाद राजनीति गरमा गई है. सवाल उठता है कि यह नारा लगाने के बाद क्या ओवैसी को दोबारा शपथ लेनी होगी? या वह लोकसभा के लिए अयोग्य हो जाएंगे? आइए जानते हैं कि संविधान में ऐसे मामलों के लिए क्या प्रावधान हैं.

भाजपा ने संविधान के अनुच्छेद 102 के तहत ओवैसी को लोकसभा के लिए अयोग्य बताने की मांग की है. इसके बाद स्पीकर ने उनके नारे को रिकॉर्ड से हटा दिया पर अब दो वकीलों ने राष्ट्रपति से असदुद्दीन ओवैसी के खिलाफ राष्ट्रपति से शिकायत की है.

राष्ट्रपति से की गई अयोग्य ठहराने की मांग

हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी के खिलाफ एडवोकेट विनीत जिंदल ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से शिकायत करने का दावा किया गया है. उन्होंने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में लिखा है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 103 के तहत उन्होंने राष्ट्रपति के समक्ष एक शिकायत दर्ज कराई है. इसमें विदेशी राज्य फिलिस्तीन को लेकर निष्ठा दिखाने के लिए असदुद्दीन ओवैसी को अनुच्छेद 102 (4) के तहत अयोग्य ठहराने की मांग की है. सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट हरिशंकर जैन ने भी राष्ट्रपति से असदुद्दीन ओवैसी के खिलाफ शिकायत की है. उन्होंने भी ओवैसी को अयोग्य ठहराने की मांग की है.

संविधान के अनुच्छेद 102 में अयोग्य ठहराने की व्यवस्था

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 102 में संसद के दोनों सदनों के सदस्यों की अयोग्यता के नियम बताए गए हैं. अनुच्छेद 102 (डी) में कहा गया है कि अगर कोई सदस्य किसी विदेश राज्य के प्रति निष्ठा जताता है तो उसकी सदस्यता निरस्त की जा सकती है. संविधान के अनुच्छेद 103 में बताया गया है कि यदि अनुच्छेद 102 के तहत कोई अयोग्य पाया जाता है, तो उस सांसद की सदस्यता पर अंतिम फैसला राष्ट्रपति लेंगे.संविधान के इसी नियम को लेकर भाजपा और अन्य ने ओवैसी की सदस्यता रद्द करने की मांग की है.

दूसरे देश के प्रति निष्ठा दिखाने पर जा सकती है सदस्यता

सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी कुमार दुबे बताते हैं कि संविधान के अनुच्छेद 102 के तहत सदस्यों की अयोग्यता की कुछ शर्तें हैं. इसमें से एक शर्त यह भी है कि अगर भारत के अलावा किसी दूसरे देश के प्रति किसी सदस्य की आस्था या विश्वास हो तो उस परिस्थिति में कोई सदस्य अयोग्य होता है. इसके अलावा लोकसभा सचिवालय के नियम के अनुसार शपथ का मजमून पहले से तय है. उसकी भाषाएं तो अलग-अलग हो सकती हैं पर प्रतिज्ञा का फॉर्मेट एक ही है, वह चाहे हिन्दी-अंग्रेजी या आठवीं अनुसूची में शामिल किसी अन्य भाषा में ही क्यों न हो. लेकिन अगर कोई सदस्य अगर दूसरे देश के प्रति आस्था दिखाता है तो उसे स्पीकर अयोग्य घोषित कर सकते हैं.

एडवोकेट अश्विनी कुमार दुबे कहते हैं कि जहां तक असदुद्दीन ओवैसी का मामला है, तो इसमें यह देखने की जरूरत है कि उनका जय फिलिस्तीन बोलना क्या दूसरे देश के प्रति उनकी आस्था दिखा रहा है. क्या संसद में जय फिलिस्तीन बोलने से भारत की अखंडता और अक्षुणता पर असर पड़ेगा? क्या यह दूसरे देश के प्रति निष्ठा और उस देश के प्रति ज्यादा वफादारी दिखा रहा है? या फिर लोकसभा में जय फिलिस्तीन बोलना केवल एक तरीका था अपनी बात कहने का कि हम फिलिस्तीन के साथ हैं.

क्या असदुद्दीन ओवैसी को फिर लेनी पड़ेगी शपथ?

जहां तक लोकसभा में एआईएमआईएम के प्रमुख ओवैसी के दोबारा शपथ लेने का मुद्दा है तो इसका एक उदाहरण इसी साल राज्यसभा में सामने आया था. 2024 में ही राज्यसभा के लिए चुनी गईं सांसद स्वाति मालीवाल ने ओवैसी की ही तरह शपथ पूरी होने के बाद अलग से इंकलाब जिंदाबाद का नारा लगाया था. राज्यसभा के सभापति ने तब स्वाति मालीवाल से कहा था कि उनको दोबारा शपथ लेनी पड़ेगी.

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