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शक्तिकांत दास ने दिखाई अपनी ‘शक्ति’, अमेरिका का नाम लेकर क्या दिए संकेत?

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रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की मॉनेटरी पॉलिसी के फैसलों का ऐलान गवर्नर शक्तिकांत दास ने कर दिया है. जहां एक ओर महंगाई अनुमान के आंकड़ों को जस का तस रखा है. वहीं दूसरी ओर जीडीपी के अनुमान में पिछली बार के मुकाबले 20 बेसिस प्वाइंट का इजाफा कर वित्त वर्ष 2025 के लिए 7.20 फीसदी का दिया है. दिलचस्प बात तो ये है कि आरबीआई ने अपने ग्रोथ के अनुमानित आंकड़ें को वित्त वर्ष 2024 के रियल जीडीपी के आंकड़ों से कम रखा है.

वहीं लगातार 8वीं बार आरबीआई ने पॉलिसी रेट में कोई बदलाव नहीं किया है. वो भी ऐसे समय में जब यूरोपियन सेंट्रल और कनाडा सेंट्रल बैंक ने ब्याज दरों में कटौती की है. इसके अलावा संकेत ये भी मिल रहे हैं कि अमेरिकी फेड रिजर्व भी ब्याज दरों में कटौती का ऐलान जल्द कर सकता है. सवाल ये है कि आखिर आरबीआई ब्याज दरों में कटौती क्यों नहीं कर रहा है? इस पर आरबीआई गवर्नर ने अपनी पॉलिसी स्पीच में साफ संकेत दे दिए हैं.

उन्होंने कहा कि ये जरूरी नहीं कि दुनिया के एडवांस देश जो करेंगे वो हमें भी करना जरूरी है. आरबीआई पॉलिसी को लेकर जो फैसले लेगा वो डॉमेस्टिक ग्रोथ, महंगाई के आंकड़ों को देखते हुए लेगा. आइए समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर यूएस फेड का नाम लेकर आरबीआई गवर्नर ने आने वाले महीनों में ब्याज दरों को लेकर किस तरह के संकेत दिए. साथ ही उन्हें ये सब बातें कहने की जरुरत क्यों पड़ी?

सिर्फ नजर रखें, फॉलो ना करें

गुरुवार को यूरोपियन सेंट्रल बैंक ने ब्याज दरों में 0.25 फीसदी की कटौती कर दी है. उससे पहले कनाडा के सेंट्रल बैंक ने भी ब्याज दरों में कटौती की थी. उम्मीद की जा रही है कि जून या जुलाई के महीने में फेड भी ब्याज दरों में कम से कम 0.25 फीसदी की कटौती कर सकता है. ऐसे में भारत के लोगों में सवाल उठने शुरू हो गए हैं कि आखिर भारत में ब्याज दरों में कटौती कब कम होगी? देश के आम लोगों को ऊंची ब्याज दरों से कब राहत मिलेगी? इन्हीं तमाम शंकाओं का निवारण करने के लिए आरबीआई गवर्नर को उस रुख की ओर जाना पड़ा, जो आज तक कोई गवर्नर नहीं गया.

उन्होंने संकेत दिया कि दुनिया की एडवांस इकोनॉमीज के सेंट्रल बैंकों के रुख पर नजर बनाए रखना जरूरी है, लेकिन उन्हें फॉलो करना जरूरी नहीं. उन्होंने कहा कि ये माना जाता है कि भारत का सेंट्रल यूएस फेड के फैसलों को फॉलो करता रहा है. लेकिन भारत की गोथ रेट और महंगाई दर अपनी गति से घट-बढ़ रही है. ब्याज दरों में कटौती का फैसला भी इन्हीं आधारों पर होना जरूरी है. ना कि एडवांस देशों के सेंट्रल बैंकों की ओर से लिए फैसलों के आधार पर.

पहले भी दिखाया था ऐसा ही रुख

आरबीआई गवर्नर ने पिछले साल भी कुछ ऐसा ही रुख अपनाने की कोशिश की थी. जब दुनियाभर के सेंट्रल बैंक फरवरी 2023 के बाद भी ब्याज दरों में इजाफा कर रहे थे, लेकिन आरबीआई ने फरवरी के बाद से अब तक ब्याज दरों में कोई बढ़ोतरी नहीं की. संकेत साफ था कि जो रुख दुनिया के बाकी सेंट्रल बैंक अपना रहे हैं, वो रुख भारत भी रखे ये जरूरी नहीं है.

भारत अपनी परिस्थितियों के अलावा महंगाई और ग्रोथ रेट के आउटलुक के आधार पर ही फैसला लेगा. आंकड़ों को देखें तो यूएस फेड ने फरवरी 2023 से लेकर जुलाई 2023 तक लगातार 4 महीने तक 0.25 फीसदी पॉलिसी रेट में इजाफा किया था. इसका मलब है कि लगातार चार बार में ब्याज दरों में 1 फीसदी का इजाफा किया. जुलाई के बाद फेड ने ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं किया.

अगर बात यूरोपियन सेंट्रल बैंक की करें तो फरवरी 2023 में ईसीबी ने ब्याज दरों में 50 बेसिस प्वाइंट इजाफा किया था, उसके बाद मार्च में भी 0.50 फीसदी की बढ़ोतरी की गई. मई से लेकर सितंबर 2023 तक 4 बार ब्याज दरों में और बढ़ोतरी की गई. इसका मतलब है कि फरवरी से लेकर सितंबर तक ब्याज दरों में 6 बार इजाफा किया गया और 2 फीसदी की बढ़ोतरी की गई. लेकिन भारतीय रिजर्व बैंक ने ऐसा बिल्कुल भी नहीं किया.

ब्याज दरों को लेकर ये भी मिले संकेत

वहीं दूसरी ओर ब्याज दरों में कटौती को लेकर दो और बड़े संकेत मिलते हुए दिखाई दिए. अप्रैल पॉलिसी की मीटिंग तक 6 में से सिर्फ 1 मेंबर ब्याज दरों में कटौती के पक्ष में था. जिसकी संख्या में इस बार इजाफा होता हुआ दिखाई दिया. इसका मतलब है कि ब्याज दरों में कटौती पक्ष में दो लोगों ने स्टैंड लिया. जानकारों का कहना है कि अगस्त के महीने में इसकी संख्या में इजाफा देखने को मिल सकता है. वहीं सबसे बड़ी बात ये देखने को मिली कि आरबीआई एमपीसी की मीटिंग में आने वाले महीनों में पॉलिसी रेट को लेकर उदार रुख अपनाने के संकेत मिले हैं. मतलब साफ है कि अक्टूबर या फिर दिसंबर के महीने में ब्याज दरों में कटौती देखने को मिल सकती है.

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